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CAA का विरोध (?)... एक नज़रिया !


"मैडम जी, म्हूं काले कॉम पे नीं आऊँगा (कल मैं काम पर नहीं आऊँगी)।"- गृह-सहायिका ने मेरी पत्नी को अग्रिम सूचना दी।
"क्यों रूपा? कोई ज़रूरी काम है कल? कल तो मेरे यहाँ मेहमान आ रहे हैं और कल ही तुझे छुट्टी लेनी है।"
"हाँ मैडम जी, काले कईं है के म्हने जलूस में जाणों है (क्या है कि कल मुझे जुलूस में जाना है)।"
"अरे, काहे का जुलूस है?"
"अरे, वो कईं के, सर्कार कोई नियो कानूण बणायो है नी, कईं के विणें शीशिए-वीशिए (अरे वह कुछ सरकार ने कोई नया क़ानून बनाया है न, क्या कहते हैं उसे, शीशिए-वीशिए)!"
मैं भी पास में ही खड़ा था, समझ गया कि CAA के बारे में कह रही है। पत्नी जी भी समझ गई थीं, मुस्करा कर उन्होंने पूछा उससे- "तू जानती है क्या होता है शीशिये?"
"नईं जी, म्हने तो नी पतो, पण वो कशी पार्टी वाड़ा आया, जोईज के र्या  के सर्कार खोटो काम कर्यो ए (नहीं जी, मुझे तो नहीं पता, किन्तु वह किसी पार्टी वाले आये थे, उन्होंने ही बताया कि सरकार ने ग़लत काम किया है)।"
   सुन कर हम दोनों को हँसी आई, पर उसे स्वीकृति दे दी। उसे CAA के बारे में कुछ बताने की कोशिश की ज़रूर, किन्तु समझाने से कोई लाभ हुआ नहीं, क्योंकि रूपा जैसे नादानों को यह नेता लोग और उनके गुर्गे इतनी कुशलता से पट्टी पढ़ाते हैं कि हमारा उसको ज्ञान देना कोई मायने नहीं रखता था।
    यह तय है कि ऐसे जुलूसों में गुमराह करने वाले कतिपय राजनीतिबाजों के साथ रूपा जैसे लोगों की भीड़ ही अधिक हुआ करती है। इनके साथ नारे लगाते कुछ ऐसे तथाकथित बुद्धिजीवी भी होते हैं जो अपने निहित स्वार्थ के चलते इन लोगों से चिपके रहने में अपना भविष्य तलाशते हैं।
   यह तो हुई CAA के विरोधियों की राजनीति की बात! अब मैं अपनी बात इस विषय में कहना चाहूँगा।
    पहले NRC और अब CAA  के विरोध का सबसे असरदार, किन्तु घिनौना दाँवपेच लगा कर लोगों को यूँ भरमाया जा रहा है कि इनके जरिये सरकार मुसलमानों को देश की नागरिकता से वंचित करना चाहती है। अब इन दोनों मुद्दों से सम्बन्धित समस्त जानकारी की प्रतियाँ तो भारत के हर नागरिक को वितरित की नहीं जा सकतीं और ऐसा करना संभव हो भी जाय तो भी सामान्य जन तो इसे समझ ही नहीं सकते। सरकार की इसी विवशता का लाभ उठा कर प्रभावी ढंग से जनता को भ्रमित करने का कुप्रयास किया जा रहा है। CAA तो अपने-आप में एकदम स्पष्ट है, किन्तु हाँ,  NRC के प्रावधानों का सरलीकरण किया जाना आवश्यक है।
  हमारे देश के मुस्लिम भाई जो इस धरती पर पैदा हुए हैं, जिनके पूर्वजों ने हिन्दुओं के साथ कन्धे से कन्धा मिला कर देश की आज़ादी के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष किया है, जो आज भी देश के प्रति वफ़ादारी रखते हैं, जिस कौम ने हमें ए. पी. जे. अब्दुल कलाम, अशफाक उल्ला खान व  मौलाना अबुल कलम आज़ाद, जैसे नायाब देशभक्त हीरे दिये हैं, उस कौम के किसी भी वाशिन्दे से देश की नागरिकता छीनने के बारे में सोचा भी कैसे जा सकता है?
  अब सवाल यह उठता है कि जब तक संविधान के अन्तर्गत हमारा यह देश धर्मनिरपेक्ष है, क्या कोई भी सरकार इस तरह का कदम उठा सकती है? क्या वास्तव में कोई ऐसा प्रावधान प्रत्यक्ष या परोक्ष में CAA अथवा NRC में रखा गया है? मेरी जानकारी के अनुसार इस तरह का कोई भी उद्देश्य इनमें  छिपा हुआ नहीं है। दुखद स्थिति है कि प्रधानमंत्री, गृहमंत्री व शासन के अन्य सक्षम नेता भली-भाँति समझाने का निरन्तर प्रयास कर रहे हैं, किन्तु उकसाया हुआ विरोध थमने का नाम ही नहीं ले रहा है।
   CAA के तहत प्रावधान रखा गया है कि पाकिस्तान, बांग्ला देश व अफ़गानिस्तान से प्रताड़ित व्यक्ति (हिन्दू, सिक्ख, जैन, ईसाई व बौद्ध) यदि भारत आकर यहाँ की नागरिकता चाहते हैं तो उन्हें नागरिकता दी जायगी। इसका विरोध करने वालों का कुतर्क यह है कि नागरिकता इन धर्मों को ही क्यों, मुसलमानों को क्यों नहीं नहीं?
  तो अतिबुद्धिमान महापुरुषों, उपरोक्त तीनों देश मुस्लिम देश हैं और वहाँ उपरोक्त पाँच धर्मों के लोगों को विधर्मी होने के कारण प्रताड़ित किया जा रहा है। वहाँ उनके स्वधर्मी मुसलमानों को प्रताड़ित नहीं किया जा रहा है।... तो फिर वहाँ से आये/ आने वाले मुसलमानों को भारत की नागरिकता क्यों और कैसे दी जा सकती है। कोई मुसलमान तो अपनी इच्छा से, भारत की भौगोलिक, आर्थिक या सांस्कृतिक सम्पन्नता के लोभ में आकर ही यहाँ बसना चाह सकता है या फिर किसी दूषित इरादे से। तो मित्रों, भारत विश्वमान्य शरणगाह नहीं है कि अपात्र को भी यहाँ बसा लिया जाय। इस  व्यावहारिक व नैतिक रूप से बनाये गए कानून में अनौचित्य कहाँ से नज़र आ रहा है? भाइयों, समझो इस बात को कि संविधान का धर्मनिरपेक्षता वाला तत्व भारत के नागरिकों के हित में सन्निहित है, बाहरी लोगों के लिए यह अप्रभावी है।
   मेरे दृष्टिकोण से कुछ न्यायविदों को सम्मिलित कर एक सर्वमान्य कमेटी बनाई जानी चाहिए जो CAA व NRC का विश्लेषण कर अपना निष्कर्ष सार्वजनिक रूप से जनता के समक्ष उद्घोषित करे, तो कुछ हठधर्मी व स्वार्थपरक विभूतियों को छोड़ कर अन्य सभी देशवासियों को वस्तुस्थिति समझ में आ जायगी। छिछले व दुर्भावनाग्रस्त विरोध के कारण सरकार द्वारा अपना कदम पीछे हटाना वांच्छनीय व श्रेयस्कर नहीं है।
   जिन लोगों को कश्मीर से धारा 370 को हटाए जाने वाला पुनीत कार्य भी नागवार गुज़रा है, उन्हें तो सम्भवतः सरकार का हर सही कार्य ग़लत ही नज़र आएगा। ईश्वर उन्हें सद्बुद्धि दे!... आमीन!

                             
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