भाग्यशाली होते हैं वह लोग, जिनके बच्चे (बेटा/बिटिया) उन्हें बहुत प्यार करते हैं।.....लेकिन मेरा यह उद्बोधन उन लोगों के लिए है जिन्हें यह शिकायत रहती है कि उनके बच्चे उन्हें प्यार नहीं करते, उनका ख़याल नहीं रखते। कई बार तो उनको प्यार न पाने से अधिक शिकायत इस बात की होती है कि उनकी अपेक्षा के अनुरूप उनका ख़याल नहीं रखा जाता है। बच्चों से प्यार पाने की मानसिक आवश्यकता तो समझ में आती है, लेकिन समग्र रूप से वैसा ही प्यार उन्हें आजीवन मिलता रहे जैसा उन्होंने उनसे तब पाया था जब वह कम उम्र के थे, तो ऐसी अपेक्षा वांछनीय नहीं हो सकती। मेरा यह कथन पुत्र हो या पुत्री, दोनों के सन्दर्भ में है। बच्चे की किशोरावस्था से पहले उसका संसार अधिकांश रूप से घर में ही केन्द्रित रहता है। किशोरावस्था से प्रारंभ होकर युवावस्था तक की वय में उसका एक और संसार बन जाता है- उसके दोस्तों का। युवावस्था की दहलीज में पाँव रखने के कुछ ही समय में उसका विवाह हो जाता है तब उसका एक और नया संसार निर्मित होता है। इन सब संसारों के अलावा चाहे-अनचाहे एक और संसार भी उसके अस्तित