Skip to main content

याराना (लघुकथा)


    शहर के पास का जंगल, फल-फूलों से लदे वृक्षों का इलाका! यहाँ टोनू और मिन्कू रहते थे अपने समाज के कुछ अन्य बन्दरों के साथ। दोनों बहुत पक्के दोस्त थे, लेकिन पिछले कुछ दिनों से उनकी दोस्ती में दरार आ गई थी। इस दरार का कारण थी कुछ ही दिन पहले पास के जंगल से अपने परिवार के साथ यहाँ आ बसी रिमझिम! गुलाबी होठों, मदमस्त आँखों वाली, छरहरे बदन की थी बन्दरिया रिमझिम। हाँ, उसकी चाल हिरणी जैसी नहीं थी, बस उछलती-कूदती रहती थी बन्दरों की तरह और यह भी कि वह जितनी सुन्दर थी, उतनी ही आलसी भी थी, कभी-कभी तो दो-दो दिन तक नहाती ही नहीं थी। अब जैसी भी थी वह, मिन्कू के मन को बहुत भाती थी। रिमझिम  को भी मिन्कू पसन्द था। उधर टोनू को अब मिन्कू आँखों देखे नहीं सुहाता था, क्योंकि वह भी रिमझिम को चाहने लगा था।
    आज जब मिन्कू और रिमझिम दो पेड़ों पर इधर से उधर कूदते हुए अठखेलियाँ कर रहे थे कि अचानक टोनू आ गया। आते ही उसने मिन्कू को एक करारा थप्पड़ मारा। मिन्कू अकस्मात हुए इस प्रहार से घबरा कर बोला- "क्यों मारा तुमने मुझे?"
   "मैं रिमझिम से प्यार करता हूँ। आज से तू कभी इसके पास आने की कोशिश भी मत करना।"
रिमझिम डर कर पास के एक दूसरे पेड़ पर चढ़ गई।
   मिन्कू शारीरिक रूप से उन्नीस था टोनू से, बोला- "लेकिन वह मेरी दोस्त है और तू भी तो मेरा दोस्त है। तू भी खेला कर हमारे साथ।"
  "नहीं, मुझे नहीं खेलना तेरे साथ। बहुत हो गया, अब आगे से तुझे रिमझिम के साथ नहीं देखूँगा मैं।" -टोनू ने मिन्कू की पूँछ पकड़ कर धमकी वाली आवाज़ में कहा।
    थोड़ी ही दूरी पर एक पेड़ पर बैठे बुज़ुर्ग बन्दर माधू ने इन्हें लड़ते देखा तो आवाज़ देकर दोनों को अपने पास बुलाया। दोनों झगड़ा छोड़ कर माधू के पास आये। रिमझिम भी उनके पीछे-पीछे चली आई। दोनों के झगड़े की वज़ह जान कर माधू ने पहले तो उन्हें फटकारा और फिर गम्भीर स्वर में उन्हें समझाया- "देखो बच्चों, अगर तुम यूँ ही झगड़ोगे तो मैं इस बच्ची को इसके परिवार के साथ वापस इसके जंगल में भिजवा दूंगा।"
   "पर अंकल, रिमझिम मेरी दोस्त है।" -मिन्कू ने कहा, फिर धीरे से पुनः बोला- "मैं उससे प्यार भी करने लगा हूँ। यह टोनू जबरदस्ती ही बीच में अपनी टांग फँसा रहा है।"
  "देखो, तुम दोनों ने यह इन्सानों वाली हरकत दुबारा की तो मैं तुम्हारा उनकी बस्ती में जाना बन्द करा दूँगा। उनको देख कर तुम भी बिगड़ने लगे हो। रिमझिम के साथ तुम दोनों में से वही रहेगा जिसे वह पसन्द करती है। यह इन्सानों में ही कुछ कमीने होते हैं जो अपनी पसन्द की मादा के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश करते हैं। हम सभ्य जानवर हैं, हमारे यहाँ यह शहरीपन नहीं चलेगा, समझे!"
 टोनू और मिन्कू दोनों खामोश थे और बन्दरिया-सुलभ लाज के कारण रिमझिम मुँह फेर कर खड़ी हो गई थी।
  माधू ने कहना जारी रखा- "बच्चों, इन्सानों की बात बताऊँ तो कुछ ही ऐसे इन्सान होते हैं जो सच्चा प्यार करते हैं। कई आदमी तो अक्सर अपनी हवस से ही प्यार करते हैं। ज़मीन, दौलत और औरत के लिए वह एक-दूसरे के खून तक के प्यासे हो जाते हैं। कहते हैं कि हमारी नस्ल में से ही कुछ बन्दरों का रूप धीरे-धीरे बदला और बाद में वह इन्सान बन गये। उन्होंने भौतिक विकास तो बहुत किया, किन्तु भीतर से बद से बद्तर होते चले गये, कपट समाता गया उनके दिलों में। हमारी तरह अब उनमें नैसर्गिक प्यार और सच्चाई नहीं रही।"
   माधू ने अपनी बात समाप्त की। रिमझिम ने देखा, टोनू मिन्कू की तरफ डबडबाई आँखों से देखते हुए चुपचाप वहाँ से जा रहा था। इससे अन्जान मिन्कू के चेहरे पर संतुष्टि की चमक थी। उसने माधू को प्रणाम किया और रिमझिम को साथ चलने का इशारा कर वहाँ से लौटने को हुआ।
    रिमझिम बहुत कुछ समझी, कुछ नहीं भी समझी, लेकिन जो कुछ समझी उसके आधार पर मिन्कू से बोली- "नहीं मिन्कू! मैं तुम दोनों की दोस्ती के बीच नहीं आऊँगी। माधू काका की बात मेरी समझ में आ गई है। मैं आज... अभी जा रही हूँ मेरे अपने जंगल में। भूल जाओ मुझे ... अलविदा!"
   अवाक मिन्कू ने रिमझिम को जाते तो देखा, किन्तु उसकी भीगी पलकें नहीं देख पाया।

                                                            ********* 

Comments

Popular posts from this blog

बेटी (कहानी)

  “अरे राधिका, तुम अभी तक अपने घर नहीं गईं?” घर की बुज़ुर्ग महिला ने बरामदे में आ कर राधिका से पूछा। राधिका इस घर में झाड़ू-पौंछा व बर्तन मांजने का काम करती थी।  “जी माँजी, बस निकल ही रही हूँ। आज बर्तन कुछ ज़्यादा थे और सिर में दर्द भी हो रहा था, सो थोड़ी देर लग गई।” -राधिका ने अपने हाथ के आखिरी बर्तन को धो कर टोकरी में रखते हुए जवाब दिया।  “अरे, तो पहले क्यों नहीं बताया। मैं तुमसे कुछ ज़रूरी बर्तन ही मंजवा लेती। बाकी के बर्तन कल मंज जाते।” “कोई बात नहीं, अब तो काम हो ही गया है। जाती हूँ अब।”- राधिका खड़े हो कर अपने कपडे ठीक करते हुए बोली। अपने काम से राधिका ने इस परिवार के लोगों में अपनी अच्छी साख बना ली थी और बदले में उसे उनसे अच्छा बर्ताव मिल रहा था। इस घर में काम करने के अलावा वह प्राइमरी के कुछ बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाती थी। ट्यूशन पढ़ने बच्चे उसके घर आते थे और उनके आने का समय हो रहा था, अतः राधिका तेज़ क़दमों से घर की ओर चल दी। चार माह की गर्भवती राधिका असीमपुर की घनी बस्ती के एक मकान में छोटे-छोटे दो कमरों में किराये पर रहती थी। मकान-मालकिन श्यामा देवी एक धर्मप्राण, नेक महिल...

तन्हाई (ग़ज़ल)

मेरी एक नई पेशकश दोस्तों --- तन्हाई मौसम बेरहम देखे, दरख़्त फिर भी ज़िन्दा है, बदन इसका मगर कुछ खोखला हो गया है।   बहार आएगी कभी,  ये  भरोसा  नहीं  रहा, पतझड़ का आलम  बहुत लम्बा हो गया है।   रहनुमाई बागवां की, अब कुछ करे तो करे, सब्र  का  सिलसिला  बेइन्तहां  हो  गया  है।    या तो मैं हूँ, या फिर मेरी  ख़ामोशी  है यहाँ, सूना - सूना  सा   मेरा   जहां  हो  गया  है।  यूँ  तो उनकी  महफ़िल में  रौनक़ बहुत है, 'हृदयेश' लेकिन  फिर भी तन्हा  हो गया है।                          *****  

दलित वर्ग - सामाजिक सोच व चेतना

     'दलित वर्ग एवं सामाजिक सोच'- संवेदनशील यह मुद्दा मेरे आज के आलेख का विषय है।  मेरा मानना है कि दलित वर्ग स्वयं अपनी ही मानसिकता से पीड़ित है। आरक्षण तथा अन्य सभी साधन- सुविधाओं का अपेक्षाकृत अधिक उपभोग कर रहा दलित वर्ग अब वंचित कहाँ रह गया है? हाँ, कतिपय राजनेता अवश्य उन्हें स्वार्थवश भ्रमित करते रहते हैं। जहाँ तक आरक्षण का प्रश्न है, कुछ बुद्धिजीवी दलित भी अब तो आरक्षण जैसी व्यवस्थाओं को अनुचित मानने लगे हैं। आरक्षण के विषय में कहा जा सकता है कि यह एक विवादग्रस्त बिन्दु है। लेकिन इस सम्बन्ध में दलित व सवर्ण समाज तथा राजनीतिज्ञ, यदि मिल-बैठ कर, निजी स्वार्थ से ऊपर उठ कर कुछ विवेकपूर्ण दृष्टि अपनाएँ तो सम्भवतः विकास में समानता की स्थिति आने तक चरणबद्ध तरीके से आरक्षण में कमी की जा कर अंततः उसे समाप्त किया जा सकता है।  दलित वर्ग एवं सवर्ण समाज, दोनों को ही अभी तक की अपनी संकीर्ण सोच के दायरे से बाहर निकलना होगा। सवर्णों में कोई अपराधी मनोवृत्ति का अथवा विक्षिप्त व्यक्ति ही दलितों के प्रति किसी तरह का भेद-भाव करता है। भेदभाव करने वाला व्यक्ति निश्चित रूप स...