एक अंदेशा मेरे जेहन में .....
अच्छी है पार्टी, अच्छा है नेतृत्व,
और किये भी हैं, कुछ तो अच्छे काम।
पर ले डूबे इस सरकार को शायद,
सवर्णों का गुस्सा, पेट्रोल के दाम।
और किये भी हैं, कुछ तो अच्छे काम।
पर ले डूबे इस सरकार को शायद,
सवर्णों का गुस्सा, पेट्रोल के दाम।
...यहाँ मुझे शायर बशर साहब का एक कलाम याद आ रहा है -
'उन्हें कामयाबी में सुकून नज़र आया
तो वो दौड़ते गए,
हमें सुकून में कामयाबी दिखी
तो हम ठहर गए ...!
ख्वाहिशों के बोझ में बशर
तू क्या क्या कर रहा है...
इतना तो जीना भी नहीं
जितना तू मर रहा है...!'
तो वो दौड़ते गए,
हमें सुकून में कामयाबी दिखी
तो हम ठहर गए ...!
ख्वाहिशों के बोझ में बशर
तू क्या क्या कर रहा है...
इतना तो जीना भी नहीं
जितना तू मर रहा है...!'
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