संगठन में शक्ति है, यह कथन यूँ ही नहीं बना है। कई संगठनों ने शक्ति-प्रदर्शन कर अपनी वाजिब-गैरवाजिब मांगें समय-समय पर सरकार से मनवाई हैं। बहुत अधिक सहनशील होना शालीनता नहीं अपितु कायरता का परिचायक है। यदि धौलपुर में एससी-एसटी सम्बन्धी वर्तमान शेखचिल्ली क़ानून का विरोध कर सर्वसमाज के लोगों द्वारा गिरफ़्तारी दी जा सकती है तो राजस्थान के हर शहर में क्यों नहीं, भारत के हर शहर में क्यों नहीं यह ज़ज्बा दिखाया जा सकता है? क्यों सवर्णों की धमनियों में खून पानी से भी पतला हो गया है? सत्य के लिए, न्याय के लिए, संघर्षरत होने की आग हम अपने दिलों में जिंदा क्यों नहीं रख पा रहे हैं?
कुम्भकर्णी सरकार को जगाने के लिए मात्र एक दिन का भारत-बंद यथेष्ट नहीं है। गन्दी राजनीति से उगे वर्तमान नेताओं ने, चाहे वह किसी भी दल के हों, सवर्णों को अपनी जेब की चिल्लर समझ रखा है। हम सभी को धौलपुर के जांबाजों से प्रेरणा ले कर 'जेल भरो' आन्दोलन प्रारंभ कर देना चाहिए। यह आन्दोलन इतना बड़ा रूप ले कि सरकार को अपना ध्यान चुनावों से हटाकर नई जेलों के निर्माण में लगाना पड़े।
हम किसी के हक़ का लेना नहीं चाहते, हमारी संस्कृति तो देने की है, बस केवल इतना चाहते हैं कि हमसे शांतिपूर्वक जीने का हमारा हक़ छीनने की कोशिश मत करो। इस न्यायसंगत बात को नहीं समझा गया तो आन्दोलन होगा, ज़रूर होगा। यह भी निश्चित है कि हमारा आन्दोलन पूर्णतः अहिंसक होगा, लेकिन इतना लम्बा होगा कि सरकारें हिल जाएँगी।
नेताओं द्वारा सवर्णों को भी, तो दलितों को भी योजनाबद्ध तरीके से मूर्ख बनाया जा रहा है, ठगा जा रहा है। तात्कालिक स्वार्थ के चलते भले ही तथाकथित दलित वर्ग को एससी-एसटी एक्ट में किया गया संशोधन लुभावना लगे, लेकिन इस वर्ग के ही बुद्धिजीवी लोग भी इसको उचित नहीं मानेंगे।
यहाँ मैं यह अवश्य कहना चाहूँगा कि देश के सुदूर क्षेत्रों में, कुछ गांवों में दलितों पर कुछ दुर्बुद्धि सवर्णों द्वारा किये गए जातिगत भेदभाव व दुर्व्यवहार की घटनाओं की जानकारी हमें समाचार पत्रों के माध्यमों से यदा-कदा मिलती है। इस तरह की घटनाओं से भी कुछ नेताओं को पोषण मिलता है। इन घटनाओं की समुचित जांच की जाकर ऐसे अपराधियों को कठोरतम दण्ड दिया जाये। सामजिक समरसता स्थापित करने तथा न्यायहित के लिए भी यह कार्य प्राथमिकता से करना सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
हिन्दू-समाज को विखंडित करने का जो कुटिल प्रयास नेताओं द्वारा किया जा रहा है, उसके लिए इतिहास उन्हें कभी क्षमा नहीं कर सकेगा। इन नेताओं के कर्मों के दुष्प्रभाव को भविष्य में जब इनकी संतानें स्वयं भोगेंगी, तब वह अपने इन पूर्वजों के चित्रों पर पत्थर अवश्य फेकेंगी।
ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण भविष्य से देश को बचाने का दायित्व वर्त्तमान पीढ़ी के हर युवक का है।
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