सन् 2012 में दामिनी (निर्भया) का बस में बलात्कार और फिर निर्मम हत्या, सन् 2017 में मासूम प्रद्युम्न की विद्या के मंदिर (विद्यालय ) में क्रूरतापूर्ण हत्या, सन् 2019 में डॉ. प्रियंका (हैदराबाद) के साथ हुआ हादसा, धर्मांध भोले-भाले लोगों को अपने जाल में फँसा कर व्यभिचार का नंगा तांडव करने वाले भ्रष्ट बाबा...और ऐसे सभी दुराचारों के प्रति धृतराष्ट्रीय नज़रिया रखने वाले, अपने राजनैतिक स्वार्थ के चलते इन्हें पोषित करने वाले, राजनेताओं को जब मैं देखता हूँ तो मन व्याकुल होकर पूछता है- 'जिसे देवभूमि कहा जाता था, क्या यही राम और कृष्ण की वह धरती है?'
...इन सबसे प्रेरित हैं मेरे यह उद्गार... 'कविता मैं कैसे लिखूं?'
दामिनी की चीख अभी भी, गूँजती हवाओं में,
प्रद्युम्न की मासूम तड़पन, कौंधती निगाहों में,
नींद में कुछ चैन पाऊं, वो ख़्वाब नहीं मिलते,
कविता मैं कैसे लिखूँ , अलफ़ाज़ नहीं मिलते।
डॉक्टर को अपवित्र किया,जला दिया हैवानों ने,
हर बस्ती को नर्क बनाया,कुछ पागल शैतानों ने।
लहू से भीगी धरती पर, फूल खिला नहीं करते,
कविता मैं कैसे लिखूँ , अल्फ़ाज़ नहीं मिलते।
तुलसी और रैदास जैसे सत्पुरुषों के देश में,
घूमते अब कई भेड़िये, बाबाओं के भेश में,
दर्द मेरा कर सकें बयां, वो साज़ नहीं मिलते,
कविता मैं कैसे लिखूँ , अलफ़ाज़ नहीं मिलते।
बेड़ियों में जकड़ा हुआ, न्याय तो मदहोश है,
दम भरता विकास का,शासन क्यों खामोश है?
जहन में उठते सवालों के जवाब नहीं मिलते,
कविता मैं कैसे लिखूँ, अलफ़ाज़ नहीं मिलते।
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