सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

एक नन्ही कविता

चलते-चलते बस यूँ ही 😊...      कल अचानक तपती दुपहर में, ठंडी-भीनी    फुहार   आ  गई, बारिश नहीं, यह तुम आई थी,  जलते दिल  में  बहार आ गई।   ***

'एक पत्र दोस्तों के नाम'

     मेरे प्यारे दोस्तों, मैं अपने एक सहयोगी राजनैतिक मित्र के साथ मिल कर पिछले एक माह से एक नई राजनैतिक पार्टी बनाने की क़वायद कर रहा था। आपको जान कर खुशी होगी कि हम अपने इस अभियान में सफल हो गए हैं, खुशी होनी भी चाहिए😊। न केवल पार्टी की संरचना को मूर्त रूप दिया जा चुका है, अपितु इसका नामकरण भी किया जा चुका है।   मित्रों, हमारी इस नई राष्ट्रीय पार्टी का नाम है- 'अवापा'! कैसा लगा आपको हमारी पार्टी का नाम, बताइयेगा अवश्य। हमारी पार्टी का मुख्य उद्देश्य देशसेवा तो है ही, एक और महत्वपूर्ण उद्देश्य यह भी है कि जो राजनेता देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत हैं, जिन्हें अन्य पार्टियों द्वारा तिरस्कृत किया गया है, उचित अवसर नहीं दिया गया है, उन्हें हमारी इस पार्टी में सही स्थान दिया जाए। हाँ, सही समझा आपने! यदि आप में से किसी भी शख़्स को किसी पार्टी से निराशा हासिल हुई है तो आपका स्वागत करेगी हमारी यह नई पार्टी, आपके जीवन में नई आशा का संचार करेगी।     कल के अखबार में निम्नांकित समाचार जब मैंने देखा तो सिद्धू जी की राजनीतिगत पीड़ा देख मन विह्वल हो उठा।                 मैं सिद्धू जी को भी आमन

विधर्मी (लघुकथा)

    हमारी भारतीय संस्कृति व हिन्दू धर्म की महान विरासत को कलंकित करने वाली कुछ लोगों की रूढ़िवादी सोच पर प्रहार करती मेरी यह लघुकथा!                                                                             *****                                                                                              एक सप्ताह से गम्भीर रक्ताल्पता के रोग के कारण अस्पताल के जनरल वॉर्ड में भर्ती वृद्धा विमला देवी के बैड के पास रखी बैंच पर उनका पुत्र मोहित व पुत्रवधु रोहिणी, दोनों बैठे थे। विमला जी सोई हुई थीं, सो पति-पत्नी परस्पर वार्तालाप में मग्न थे। सहसा विमला जी की नींद खुली और कराहते हुए उन्होंने पीने के लिए पानी माँगा। मोहित ने उठ कर टेबल पर रखी बोतल उठाई, किन्तु उसमें पानी नहीं था। तुरंत ही वह नई बोतल लेने के लिए बाहर निकला। विमला देवी को बहुत तेज प्यास लग रही थी। कुछ क्षण तो उन्होंने सब्र रखा, लेकिन प्यास के मारे गला शुष्क हो जाने से उनकी घबराहट बढ़ गई। बेचैनी के मारे वह कराहने लगीं।     पास वाले बैड पर सो रहे मरीज के पास बैठा एक युवक, जो यह सब देख-सुन रहा था, अपनी पानी की बोतल रोहिणी को दे क

'महरी' (लघु कथा)

                                                            नंदिनी ने बाहर की तरफ का एक कमरा एक साल से घर की महरी जमना को दे रखा था। जमना के काम से नंदिनी बहुत खुश थी। आठवें दर्जे तक शिक्षित जमना का पति चार कि.मी. दूर अपने गाँव में मजदूरी करता था। जमना सप्ताह के छः दिन नंदिनी के यहाँ रहती थी और एक दिन अपने पति के साथ रहने के लिए गाँव चली जाती थी। वह एक दिन भी नंदिनी के लिए पहाड़ बन जाता था, क्योंकि जमना के होते नंदिनी को घर का पत्ता भी नहीं हिलाना पड़ता था। कल सुबह जब जमना ने अपने पति की बीमारी का कारण बता कर दो माह की छुट्टी चाही, तो नंदिनी को बहुत अखरा था। उसने नाराज़ होकर उसका हिसाब चुकता कर कह दिया था- "तुम अपने  पति को सम्हालो, मैं दूसरी महरी रख लूंगी।"     जमना नंदिनी की ओर देखती रह गई थी और उदास स्वर में बोली थी- "जैसी आपकी इच्छा मेमसाब, अब घरवाला बीमार हो तो उसको तो सम्हालना ही पड़ेगा न! हम दोनों के अलावा और कोई घर में है भी तो नहीं जो उनकी तीमारदारी करे। मैं कल आकर मेरा सामान ले जाऊँगी।", यह कह कर वह अपने गाँव चली गई थी।    नंदिनी उसके काम से इतनी संतुष्ट थी कि

'हरे जख्म' (कहानी)

                                                                                                                                                                                          (1)    विदिशा ने देखा, चन्दन क्लास ख़त्म होने के बाद उसके पीछे-पीछे चला आ रहा था। वह कैन्टीन की तरफ मुड़ गई। कैन्टीन में काउन्टर पर एक चाय का आर्डर कर पेमेन्ट करके वह एक टेबल पर आ गई। कैन्टीन में इस समय एक लड़का और दो लड़कियाँ एक अन्य टेबल पर बैठे हुए थे। अभी चाय आई ही थी कि सामने वाली कुर्सी पर चन्दन आकर बैठ गया। उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और चाय का सिप लेने लगी।       कुछ पलों की ख़ामोशी के बाद चन्दन हल्की मुस्कराहट के साथ बोला- "विदिशा, आखिर तुम मुझसे यूँ उखड़ी-उखड़ी क्यों रहती हो?"    " आज भी तुम मेरे पीछे-पीछे यहाँ चले आये हो।  तुम बार-बार मेरे पास आने का मौका क्यों ढूंढते रहते हो चन्दन?"  -विदिशा ने अपना प्रश्न दागा।    "मैंने तुम्हें आज तक नहीं बताया, लेकिन आज बता देना चाहता हूँ। विदिशा, मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ, तुम्हारे बिना नहीं रह सकता। तुम समझती क्यों नहीं? तुम नहीं