सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

प्रवंचना (लघुकथा)

    वह धनवान था, परोपकारी था, दानशील था, किन्तु अहंकारी नहीं था। वह अपने दान का किसी प्रकार का विज्ञापन नहीं करता था। उसने हर रविवार को निर्धारित एक घंटे में दस हज़ार रुपया दान में देना निर्धारित कर रखा था। जितने याचक आते, निर्धारित राशि में से प्रत्येक को उसकी आवश्यकता व अपने विवेक के अनुसार वह दान देता था। राशि बच जाने पर वह उस शेष राशि को अगले रविवार को दी जाने वाली दान-राशि में मिला देता था। कभी तीन-चार तो कभी पांच-छः याचक हर रविवार को आ जाते थे।    इस रविवार कुछ अधिक याचक आये। सोलह हज़ार रुपया दान में गया। याचक-गण के बाहर निकलने के दो मिनट बाद ही दान-दाता को अपने बंगले की बाउण्ड्री की ओट से कुछ लोगों की आवाज़ें सुनाई दीं। वह धीमे क़दमों से बाउण्ड्री के निकट गया।   एक व्यक्ति की आवाज़- "लेकिन इतना सारा आपको क्यों दें, हमारे पास क्या बचेगा? थोड़ा तो वाजिब मांगो।" "तुम सबको मैंने ही तो बताया था कि यह आदमी हर रविवार को इस समय दान देता है, तुम्हें कहाँ पता था?"- दूसरे व्यक्ति की आवाज़ आई। दान-दाता ने आवाज़ पहचानी, यह एक सप्ताह पूर्व ही निष्कासित किया गया उसका सेवक था।

हकीकत तो यह है...

                                                                     हम स्वयं को इस बात का दिलासा कतई नहीं दे सकते कि हमारे तो 23 सैनिक ही शहीद हुए हैं जबकि उधर 43 चीनी सैनिक हताहत हुए हैं, क्योंकि एक बहादुर इन्सान की मौत के मुकाबले हज़ारों कीड़े-मकोड़ों की मौत भी कोई मायने नहीं रखती।

'नई चुनौती'

                                                                  अभी-अभी की ताज़ा खबर है कि लद्दाख में भारतीय व चीनी सैनिकों के पीछे हटने की प्रक्रिया के दौरान हुई एक झड़प में हमारी सेना का एक अफ़सर तथा दो सैनिक शहीद हो गये हैं। एक ओर दोनों देशों के फौजी उच्चाधिकारियों के मध्य स्थिति को सामान्य बनाने की प्रक्रिया के लिए बातचीत हो रही है वहीं दूसरी ओर लद्दाख में इस तरह की दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना होना चिंता का विषय है।    हमारा शान्तिप्रिय देश जहाँ एक ओर कोरोना के कारण उत्पन्न हुई विषम परिस्थितियों से जूझ रहा है तो दूसरी ओर सीमाओं पर विस्तारवादी चीन और आतंकपोषी पाकिस्तान जैसे कुटिल दुश्मनों के साथ एक नया नाम नेपाल का भी जुड़ गया है। वह नेपाल, जिसकी संस्कृति हमारे देश के अधिक निकट की रही है, गुमराह हो कर सम्भवतः चीन की शह पर ही हमें आँखें दिखाने लगा है।    स्थिति गम्भीर होती जा रही है। हमने देश के तीन सपूतों को खो दिया है। राजनैतिक स्तर पर हमारी सरकार व सीमा पर डटी हमारी बहादुर सेना, दोनों ही, स्थिति के समाधान के लिए मोर्चे पर डटी हुई हैं। अब हमें अपने स्तर पर यह सोचना चाहिए कि हम अपनी

तुम क्यों चले गये?

   टीवी में कहा जा रहा है कि अभी वर्षा हो रही है, लेकिन यह वर्षा नहीं है। यह तो आसमान रो रहा है क्योंकि तुम अपनी दीर्घ और अंतिम यात्रा पर जा रहे हो।   तुम ने यह निर्णय क्यों लिया, यह बताने के लिए तुम अब इस दुनिया में नहीं हो, लेकिन यह रहस्य लम्बे समय तक रहस्य नहीं रहेगा। कोई यूँ ही ऐसा कठोर निर्णय नहीं ले लेता। बहुत मुश्किल होता है अपने परिवार को बिलखता छोड़ कर यूँ चले जाने का निश्चय कर लेना, अपने लाखों प्रशंसकों को निराश छोड़ कर चले जाना। अपने सपनों को पूरा होते देखने का इन्तज़ार न कर किन परिस्थितियों के कारण तुम इस खूबसूरत दुनिया को छोड़ कर चले गये? आखिर इसके पीछे कुछ तो कारण रहा होगा सुशांत? अच्छा होता तुम बता कर जाते। तुम्हारे जाने के बाद कई लोग दर्द के, तो कई लोग घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं, किन्तु एक बात तो सभी लोग मान रहे हैं कि तुम एक प्रतिभाशाली अभिनेता मात्र नहीं थे, तुम एक बेहतरीन इंसान भी थे।   कुछ तो विपरीत स्थितियाँ रही ही होंगी कि पर्याप्त काम मिलने के बावज़ूद तुम्हें ऐसा कठोर निर्णय लेना पड़ा। रुपहले परदे के पीछे के घिनौने सच को उजागर करते हुए इंडस्ट्री की बोल्ड अभिनेत्र

'वह मानव तो नहीं था...'

        मेरे एक मित्र का अभी फोन आया, बोला- "भई, केरल में गर्भवती हथिनी के साथ इतनी भयङ्कर वारदात हो गई और आपने अभी तक इस विषय में कुछ भी नहीं लिखा? न ब्लॉग पर, न प्रतिलिपि पर और न ही फेसबुक पर! आप तो हर तरह के विषयों पर लिखा करते हो।   कैसे हो आजकल आप? आपका स्वास्थ्य तो ठीक है न?"   प्रिय मित्रों! आप ही बताएँ, क्या जवाब देता मैं उन्हें?   मेरे मित्र ने सही कहा है। मैंने मनुष्यों के विषय में लिखा है तो नरपिशाचों पर भी लिखा है, किन्तु उस लाचार और निरीह मूक प्राणी के विषय में लिखने में मेरी लेखन-क्षमता अपंग हो रही है। माँ सरस्वती मेरी लेखनी में आने को उद्यत नहीं हैं।... सृष्टिकर्ता ने स्वर्ग में देवता, पाताल में राक्षस और पृथ्वी पर मनुष्य व पशु-पक्षियों की रचना की है (यह बात पृथक है कि पृथ्वी पर यदा-कदा देवता तो कई बार राक्षस (नरपिशाच) भी दिखाई दे जाते हैं)। मैं समझ नहीं पा रहा कि विस्फोटक भरा अनानास खिला कर उस निरीह हथिनी के प्राण लेने वाले उस अधमतम अस्तित्व को ईश्वर ने किस लोक में रचा और इस पृथ्वी पर क्योंकर भेजा? ऐसे नारकीय जीवों की रचना करना ही क्या अब ईश्वर का काम

कोरोना-हाइकू

  कोरोना-हाइकू   मौत तबाही  जल रही दुनिया  चाइना खुश        *** किट नाकारे  डॉक्टर परेशान  बेबस रोगी        *** भरे गोदाम  कौन करे व्यवस्था  भूखा ग़रीब        *** दृढ विश्वास  हरायेंगे कोरोना  लोग निडर        *** कोरोना ख़त्म  दुनिया खुशहाल  चाइना फुस्स        ***       

भुतहा सड़क का रहस्य (कहानी)

                                                                                                                      अगस्त माह का प्रथम सप्ताह था। शहर में लॉक डाउन खत्म होने के बाद अचानक मिले एक प्राइवेट केस से निवृत होने के बाद प्राइवेट डिटेक्टिव रमेश रंजन शर्मा ने चैन की साँस ली थी। वह बुरी तरह उलझे हुए उस केस को सुलझाने के बाद तफ़री से अपना मूड ठीक करने के उद्देश्य से अपने मित्र आशुतोष खन्ना के यहाँ आया हुआ था। आशुतोष दूसरे शहर इंटोला में रहता था जो रमेश के अपने शहर विवेकपुर से क़रीब 205 कि.मी. की दूरी पर था। इंटोला प्रकृति की गोद में बसा एक खूबसूरत क़स्बा था। इंटोला के आस-पास की वादियों में भ्रमण और फिर अपने इस करीबी दोस्त का साथ पा कर तथा भाभी (मित्र की पत्नी) के हाथ की लज़्ज़तदार डिशेज़ खा कर रमेश का मन प्रफुल्लित हो गया था। यहाँ आये तीन दिन हो गए थे, सो आज वापस लौटने का उसका मन हो गया।   "अभी रात को क्यों निकल रहे हो यार, कल सुबह चले जाना।" -मित्र ने सलाह दी।  "नहीं दोस्त, अब मूड बन गया है तो निकल ही जाने दो।" -मुस्करा कर रमेश बोला।    वहाँ से विदा