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'एक सुझाव ...'

   आज राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित समाचार (जो यहाँ शेयर कर रहा हूँ ) पढ़ कर मन आश्वस्त हुआ कि धार्मिक सहिष्णुता सभी धर्मों के अनुयायियों में अभी

भगवान बनना चाहता हूँ...

एक दिन के लिए, केवल एक दिन के लिए भगवान बनना चाहता हूँ ताकि मैं प्रत्येक जीवित प्राणी में भूख जगाने वाले तत्व को समूल नष्ट कर सकूँ...क्योंकि अधिकांश अपराधों के लिए भूख ही उत्तरदायी होती है।

विरोध हेतु ऐसा घिनौना कृत्य...उफ़्फ़!

     गौरवशाली इतिहास वाली कॉन्ग्रेस की जो दुर्दशा कुछ दुर्बुद्धि कॉन्ग्रेसियों के कारण वर्तमान में हो गई है, उसके पुनरुद्धार की सोच तो कहीं दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रही, बल्कि इसके विपरीत इस पार्टी के

आँगन के कांटे

अक्ल के दुश्मन पाकिस्तानियों, जब खुद पर बन आई तो सभी आतंकियों के

उफ्फ्फ...यह नर-पिशाच !

क्या हमारे देश का मौज़ूदा कानून इस दरिंदे को इसके सही अंजाम तक पहुंचा सकेगा?...मैं निर्धारित करता हूँ इसका सही मुकाम! यह बीच चौराहे सड़क पर पड़ा हो, चारों तरफ से कई लोग इसे नुकेले हथियारों से गोंद रहे हों और एक व्यक्ति इसके जख्मों पर नमक-मिर्च छिड़क रहा हो इसके प्राणान्त तक और...और इसमें कानून की पूरी सहमति हो। यह भी कि मानवाधिकार वाले इस घृणित व्यक्ति के कुकर्मों से पीड़ित बच्चों में अपना स्वयं का बच्चा देखें। शायद मैं अभी भी इस नर-पिशाच के प्रति नर्म व्यवहार तजवीज़ कर रहा हूँ!

विकास की ओर कदम (?)

राजस्थान के ताज़ातरीन मंत्री बने श्री कृपलानी ने 30 फीट रोड़ पर मकानों में बनी दुकानों व शोरूम आदि के नियमन की सिफारिश की है। 30 फीट रोड़ वाली कॉलोनी में जहाँ दूकानें चल रही हैं वहाँ के हालात कुछ इस तरह के हैं कि मकानों की चारदीवारी के पास तो दाएं-बाएं कॉलोनी-वासियों के कार-स्कूटर खड़े रहते हैं और अगल-बगल जहाँ भी जगह मिल जाती है, दुकानों के ग्राहक अपने वाहन खड़े कर देते हैं। अब वहाँ से गुजरने वाले वाहन और बूढ़े-बच्चे व महिलाएं पुरस्कार योग्य कौशल से निकल तो लेते हैं पर कभी कभार अपने गंतव्य पर पहुँचने के बजाय हॉस्पिटल पहुँचने की नौबत आ जाती है। अगरचे इस विभीषिका से मंत्रीजी अन्जान नहीं हैं और वहां दुकानों का नियमन भी आवश्यक है तो रहवासी लोगों की संख्या का आंकलन कर छोटे-छोटे यान बनवाकर उन्हें उपलब्ध कराएं ताकि लोग अपने कार्यस्थल से सीधे ही अपने मकान की छतों पर उतर सकें। मंत्री है आप, क्या नहीं कर सकते! दुखद आश्चर्य है कि राजस्थान पत्रिका जैसे स्तरीय समाचार पत्र ने अपने 'पत्रिका न्यूज़ नेटवर्क' में इस अवांछनीय प्रक्रिया को 'नगरपालिका क्षेत्रों को बड़ी राहत' बतलाया है। काश

अगर नहीं रहना साथ तो...

 तो दे दो इन्हें पृथक आदिवासी राज्य! ऐसा राज्य दे दो इन्हें जहाँ केवल आदिवासी जनता हो, केवल आदिवासी कर्मचारी-अधिकारी हों और सभी मंत्री भी आदिवासी हों। यदि मिश्रित समाज एवं सहबन्धुत्व की भावना से इन्हें इतना ही परहेज है तो दे ही दो इन्हें पृथक राज्य!    इस तरह की मांग करने वाले पृथकतावादी क्यों भूल जाते हैं कि विभाजन कितना कष्टदायी होता है, 1947 के भारत-विभाजन का दंश नासूर बनकर अभी तक भी हर देशवासी को कितनी पीड़ा दे रहा है! दे दो इन्हें पृथक राज्य, लेकिन भारत-विभाजन के समय विभाजन के मूल उद्देश्य को जिस तरह से दरकिनार कर दिया गया था,   उस भूल की पुनरावृत्ति न हो। आदिवासी राज्य हो, लेकिन हो वह केवल आदिवासियों का।              (कृपया अवलोकन करें राजस्थान पत्रिका, दि. 24 -12-2016 से ली गई निम्नांकित  खबर का)