क्या हमारे देश का मौज़ूदा कानून इस दरिंदे को इसके सही अंजाम तक पहुंचा सकेगा?...मैं निर्धारित करता हूँ इसका सही मुकाम! यह बीच चौराहे सड़क पर पड़ा हो, चारों तरफ से कई लोग इसे नुकेले हथियारों से गोंद रहे हों और एक व्यक्ति इसके जख्मों पर नमक-मिर्च छिड़क रहा हो इसके प्राणान्त तक और...और इसमें कानून की पूरी सहमति हो। यह भी कि मानवाधिकार वाले इस घृणित व्यक्ति के कुकर्मों से पीड़ित बच्चों में अपना स्वयं का बच्चा देखें। शायद मैं अभी भी इस नर-पिशाच के प्रति नर्म व्यवहार तजवीज़ कर रहा हूँ!
मेरी एक नई पेशकश दोस्तों --- मौसम बेरहम देखे, दरख्त फिर भी ज़िन्दा है, बदन इसका मगर कुछ खोखला हो गया है। बहार आएगी कभी, ये भरोसा नहीं रहा, पतझड़ का आलम बहुत लम्बा हो गया है। रहनुमाई बागवां की, अब कुछ करे तो करे, सब्र का सिलसिला बेइन्तहां हो गया है। या तो मैं हूँ, या फिर मेरी ख़ामोशी है यहाँ, सूना - सूना सा मेरा जहां हो गया है। यूँ तो उनकी महफ़िल में रौनक़ बहुत है, 'हृदयेश' लेकिन फिर भी तन्हा हो गया है। *****
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