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संदेश

आरक्षण रूपी दानव

 आरक्षण-व्यवस्था को संविधान में स्थान मिलने का गुणगान लोग, विशेषकर सत्तालोलुप राजनीतिज्ञ भले ही करते हों, मैं तो इसे बहुत बड़ी ऐतिहासिक भूल मानता हूँ। उद्देश्य कितना ही अच्छा क्यों न रहा हो, तब की यह नादान भूल आज देश के लिए सबसे बड़ा अभिशाप बन गई है। इस व्यवस्था का लाभ शुरुआत में अजा-अजजा वर्गों के लोगों को तो मिल ही रहा था, धीरे-धीरे अन्य वर्गों की जीभ भी लपलपाने लगी इस शहद के छत्ते को पाने के लिए। सत्तासीन सरकारों की सीमाओं और जनता की सुविधा-असुविधा के विवेक को अनदेखा कर समय-समय पर भारतीय समाज के कुछ अन्य वर्गों ने भी अपने-अपने लिए आरक्षण की न केवल मांग की, अपितु इसे प्राप्त करने के लिए किये गए आन्दोलन को जन-बल के आधार पर अराजक और हिंसक रूप देने में भी कोई संकोच नहीं किया। आरक्षण के लिए गुर्जरों के द्वारा हिंसक आन्दोलन किये जाने के बाद पटेलों द्वारा और अब जाटों के द्वारा यह पुनीत कार्य किया गया। हद तो यह हो रही है कि कर्फ्यू के दौरान आधी रात को लोगों के घरों में घुस कर महिलाओं के साथ छेड़छाड़ भी इनके आंदोलन का हिस्सा बन गई थी। पशुता की पराकाष्ठा तो यहाँ तक हो गई कि आन्दोलनकारियों में

यह जहरीले संपोले ...

      नहीं होते कुछ लोग सहानुभूति के क़ाबिल, दया के क़ाबिल। बांग्ला देश को पूर्वी पाकिस्तान ही रहने देना चाहिए था भूखा और नंगा। भूल गया यह कृतघ्न देश हमारी मेहर, भूल गया कि उसकी आज़ादी के लिए हमें क्या क़ीमत चुकानी पड़ी थी। क्या थोड़ा भी हमारे प्रति वफादार रह सका यह नामाकूल देश ? हुक्मरान तो चलो मानते हैं कि सियासत के खेल में बेग़ैरत हो जाते हैं (कोई भी देश इससे अछूता नहीं, हमारा देश भी नहीं), लेकिन अवाम ? उसमें तो कुछ शर्मो-हया होनी चाहिए न ?     बात कर रहा हूँ क्रिकेट के खेल की। अभी कल ही एशिया-कप के फाइनल में भारत के हाथों चित्त हुए बांग्ला देश के एक सिरफिरे ने इस फ़ाइनल मैच के कुछ पहले ट्वीट करते हुए इस तरह दिखाया कि भारतीय कप्तान धोनी के कटे सिर को उसने अपने हाथ में ले रखा है। हार-जीत को खेल-भावना से लिया जाना चाहिए लेकिन इस बात को सामान्य व्यक्ति ही नहीं, कई बार तो खिलाड़ी भी भूल जाते हैं- यह सच है, किन्तु इस तरह का विष-वमन करने का काम तो दुश्मन ही कर सकते हैं। बांग्ला देश को आज़ाद करा के हमने पड़ोस में दूसरा दुश्मन पैदा कर लिया है।  

अगर यह 'ख़ून' होता...

   कितना अराजक है यह शासनतंत्र और कितने बेपरवाह हैं कानून-रक्षक कि वर्षों से जनता को बेवकूफ़ बना कर blood test के नाम पर ठगने वाली व्यावसायिक प्रयोगशालाओं पर प्रतिबन्ध नहीं लगा रहे हैं। हमारे ख़ून की जाँच में यह प्रयोगशालाएं RBC count बताती हैं, haemoglobin बताती हैं, blood group बताती हैं और भी कई प्रकार के टेस्ट करने का ढोंग करती हैं, लेकिन जिसे 'ख़ून' का नाम देकर जाँच की जाती रही है, वह 'ख़ून' कहाँ है ? अगर यह 'ख़ून' होता तो निर्भया बलात्कार/हत्याकाण्ड के मामले में बालिगों वाला कृत्य करने वाले नाबालिग अपराधी की रिहाई की बात सुनते ही उबल न पड़ता ? 

अपना ज़मीर टटोलो...

   क्या खूब कहा है कहने वाले ने - 'कौन कहता है कि आसमां में छेद नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों!' यह लफ्ज़ किसी मुर्दे में भी जान फूंकने की ताक़त रखते हैं, लेकिन क्या यह उन दीवानों पर कुछ थोड़ा भी असर डाल सकेंगे जो मूवी 'दिलवाले' को सिनेमाघरों में देखने को बेताब हैं? अपने ज़मीर को टटोलो दोस्तों! इस फिल्म का हीरो वही शाहरुख़ खान है जिसने हमारे शान्तिप्रिय भारत देश को 'असहिष्णु' कहने वाले कुटिल लोगों की जमात में शामिल होकर हमारे वतन को बदनाम करने की गुस्ताख़ी की है। यह मूवी नहीं देखोगे तो कोई आसमान नहीं टूट पड़ेगा, ज़मीन रसातल में नहीं चली जाएगी। वतनपरस्त बनो और ऐसे शख़्स को ऐसा सबक दो कि फिर कभी ऐसी हिमाकत करने का ख़याल ही उसके ज़ेहन में न आ सके। जय हिन्द! जय भारत!

'असहिष्णुता'

          मुझे हिंदी भाषा का बहुत अधिक ज्ञान नहीं है और न ही शब्दकोषों को अधिक टटोलने का कभी शौक रहा है, लेकिन आजकल बहुत ही अधिक चर्चा में आये शब्द 'असहिष्णुता' को लेकर मेरे दिमाग में एक विचार कौंधा कि शायद इस शब्द ने कुछ चन्द दिनों पूर्व ही शब्दकोष में स्थान पाया है और जाहिलों से लेकर विद्वजनों (साहित्यकार,आदि) तक की जुबाओं पर नाच रहा है, अन्यथा तो वर्षों पहले पूरा शब्दकोष ही इस शब्द 'असहिष्णुता' से भर जाता, जब -     1) कश्मीर में कश्मीरी पण्डित-परिवारों पर अमानवीय जुल्म ढाए गए थे और उन्हें बेइज़्ज़त कर कश्मीर से बाहर              खदेड़ दिया गया था।  (आज तक वह अपने पुश्तैनी आशियानों से महरूम हैं।)     2) दाऊद और उसके गुर्गों ने बम-विस्फोटों द्वारा मुम्बई में लाशों के ढेर बिछा दिए थे। 

कौन हो तुम? हिन्दू, मुसलमान, या कि एक इन्सान?

'आज की रात है ज़िन्दगी' - अमिताभ बच्चन host हैं हर रविवार को दिखाए जा रहे इस serial के। अभी रात्रि के 8.45 बज रहे हैं और मैं TV में आज का इसका एपिसोड देख रहा हूँ । आज के इस एपिसोड में जो कुछ मैंने अभी हाल देखा उससे मेरा तन-मन खिल उठा है, मेरा दिल भविष्य में कुछ और अधिक सुखद देखने की कल्पना कर प्रसन्नता से हिलोरे ले रहा है। क्यों मैं इतना भावाभिभूत हो उठा हूँ - मित्रों, बताना चाहूँगा आप सभी को। आज इस एपिसोड में अमिताभ बच्चन, रणबीर कपूर तथा दीपिका पादुकोण द्वारा सम्मानित किया गया एक बालिका 'मरियम सिद्दीकी' को। 6th में पढ़ रही बारह वर्षीय इस मुस्लिम बालिका की उपलब्धि यह थी कि वह भगवद्-गीता की एक प्रतियोगिता 'Gita Champions Leage Contest', जिसमे 3000 विद्यार्थियों ने भाग लिया था, की विजेता रही है और इसके लिए 11 लाख रुपये से पुरस्कृत की गई थी। सुश्री मरियम ने अपनी यह 11 लाख की पुरस्कार-राशि राज्य सरकार (UP) को लौटा दी ताकि इस राशि का उपयोग ज़रूरतमंद बच्चों के अच्छे भविष्य के लिए किया जा सके। She said, "Education is the only route to change their destiny

आरक्षण पर पुनर्विचार......???

  राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ-प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण पर पुनर्विचार के बयान से कुछ अवसरवादी नेता ठीक इस तरह कुलबुला उठे हैं  जैसी कुलबुलाहट गन्दी नाली में इकठ्ठा कीड़ों  पर फिनॉइल छिड़कने पर देखी जाती है। भारतीय राजनीति के द्वारा कोने में धकेल दिए गये लालू और मायावती जैसे नेताओं को तो मानो पुनर्स्थापित होने के लिए फुफकारने का अवसर मिल गया है। मोहन भागवत के बयान पर कुछ भी उलटी-सीधी प्रतिक्रिया व्यक्त करने से पहले भारतीय समाज के हर वर्ग के हर बुद्धिजीवी (नेता नहीं) को सोचना-समझना होगा कि वर्तमान आरक्षण नीति क्या आरक्षण की मूल भावना के आदर्शों के अनुकूल है और क्या इसके वांछित परिणाम हम प्राप्त कर सके हैं ?    स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद आरक्षण-व्यवस्था केवल दस वर्षों के लिए लागू की जानी थी, लेकिन अनुकूल परिणाम नहीं मिलने पर इसे अगले दस वर्षों के लिए और बढ़ाया गया था। यहाँ तक तो फिर भी सही था, लेकिन बाद में इसे सत्ता के सिंहासन पर चढ़ने की सीढ़ी ही बना दिया गया। जब आरक्षण के इस स्वरुप की निरर्थकता को सब ने जाँच-परख लिया था तो क्यों नहीं उसे समय रहते समाप्त या संशोधित किया गया ? आज जब मोह