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संदेश

आरक्षण पर पुनर्विचार......???

  राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ-प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण पर पुनर्विचार के बयान से कुछ अवसरवादी नेता ठीक इस तरह कुलबुला उठे हैं  जैसी कुलबुलाहट गन्दी नाली में इकठ्ठा कीड़ों  पर फिनॉइल छिड़कने पर देखी जाती है। भारतीय राजनीति के द्वारा कोने में धकेल दिए गये लालू और मायावती जैसे नेताओं को तो मानो पुनर्स्थापित होने के लिए फुफकारने का अवसर मिल गया है। मोहन भागवत के बयान पर कुछ भी उलटी-सीधी प्रतिक्रिया व्यक्त करने से पहले भारतीय समाज के हर वर्ग के हर बुद्धिजीवी (नेता नहीं) को सोचना-समझना होगा कि वर्तमान आरक्षण नीति क्या आरक्षण की मूल भावना के आदर्शों के अनुकूल है और क्या इसके वांछित परिणाम हम प्राप्त कर सके हैं ?    स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद आरक्षण-व्यवस्था केवल दस वर्षों के लिए लागू की जानी थी, लेकिन अनुकूल परिणाम नहीं मिलने पर इसे अगले दस वर्षों के लिए और बढ़ाया गया था। यहाँ तक तो फिर भी सही था, लेकिन बाद में इसे सत्ता के सिंहासन पर चढ़ने की सीढ़ी ही बना दिया गया। जब आरक्षण के इस स्वरुप की निरर्थकता को सब ने जाँच-परख लिया था तो क्यों नहीं उसे समय रहते समाप्त या संशोधित किया गया ? आज जब मोह

तुम्हें निर्धारित करना है...

    कलर टीवी पर प्रसारित किये जा रहे धारावाहिक 'चक्रवर्ती अशोक सम्राट' के मेधावी  किशोर नायक अशोक के साथ चाणक्य के आज के संवाद का एक अंश, जिसने मेरे मन-मस्तिष्क को कुछ आन्दोलित-सा कर दिया है, प्रस्तुत कर रहा हूँ। चाणक्य अशोक को इस कहानी में परिस्थिति की तत्कालीन विषमता को समझाते हुए निम्नांकित वाक्य के साथ अपना उद्बोधन समाप्त करते हैं -     ' तुम्हें निर्धारित करना है कि आने वाली पीढ़ियों को तुम कैसा राष्ट्र सौंप कर जाओगे!'       क्या आज की परिस्थिति में या किसी भी देशकाल में किसी भी राष्ट्र के लिए यह बात सन्दर्भ नहीं रखती? अवश्य रखती है, बस देश व देशवासियों को प्यार करने वाला, संकल्पित व्यक्तित्व का स्वामी एक.…एक अशोक होना चाहिए और होना चाहिए दूरदर्शी, समर्पित और नीतिवान कुशल राजनीतिज्ञ एक चाणक्य!    ऐसा हुआ, तो क्या मौर्यकालीन 'स्वर्ण-युग' पुनः लौट कर नहीं आ जायेगा !    मेरे देश के कर्णधार! आज की युवाशक्ति! तुम्हें...यह तुम्हें निर्धारित करना है....

सज़ा-ए-मौत ...

 प्रबुद्ध मित्रों,  निम्नलिखित आलेख यद्यपि कुछ विस्तार ले गया है फिर भी चाहूंगा कि आप इसे पढ़ें और मेरे विचारों से सहमति / असहमति से अवगत करावें।    जघन्य अपराधी को भी फांसी न दी जाय और फांसी के दंड का प्रावधान ही समाप्त कर दिया जाये, इस मत के समर्थकों को गहन चिकित्सा सहायता की आवश्यकता है। यदि चिकित्सा से भी उपचार न हो पाये तो ऐसे रोगियों में से कुछ के दिमाग को सर्जरी के द्वारा खोला जाकर गहन अध्ययन किया जाना चाहिए कि कौन से कीटाणुओं ने इनकी सोच को विवेकहीन बना दिया है।     मुझे बहुत उद्वेलित कर दिया है उन दिग्भ्रमित लोगों के comments ने, जो आतंककारी याकूब की फांसी के मसले में मूलतः अपनी-अपनी  रोटी सेंकने के मकसद से किये गये हैं। आश्चर्य तो इस बात का है कि ऐसे  comments उन लोगों ने भी किये हैं जो कानून की बड़ी-बड़ी पोथियाँ पढ़ने के बाद अरसे तक न्यायालयों को अपने तर्कों से विचारने को विवश करने की क्षमता रखते हैं। अपराधियों को बचाने के लिए कानून को तोड़ने-मरोड़ने की रणनीति का उपयोग करना और झूठ से आच्छादित व्यूह-रचना कर सत्य को असत्य और असत्य को सत्य में तब्दील करना इनके पेशे की मज

फिर लौट के आना...

   हरदिल-मसीहा कलाम साहब!     स्वार्थ और छलावे से भरी इस बेमुरब्बत दुनिया को छोड़ जाने का आपका निर्णय कत्तई गलत नहीं कहा जा सकता। मुझे याद आता है वह गुज़रा हुआ कल जब आपको दूसरी बार राष्ट्रपति बनाने के प्रस्ताव का कुछ मतलबपरस्त लोगों ने विरोध किया था। वैसे भी आपने तो निर्लिप्त भाव से कह ही दिया था कि सर्वसम्मति के बिना आप दुबारा राष्ट्रपति बनना नहीं चाहते। आप जैसे निष्पक्ष और स्वतन्त्र व्यक्तित्व को खुदगर्ज राजनीतिबाजों ने पुनः अवसर देने से रोक कर आपको फिर से राष्ट्रपति के रूप में दे खने से देश को महरूम कर दिया था। उन लोगों ने भी आपके चले जाने पर मगरमच्छी आंसू ज़रूर गिराये होंगे पर क्या आपके प्रति कृतज्ञ यह देश उन्हें क्षमा कर सकेगा?    आप चले तो गए हैं पर हर देशभक्त भारतवासी के मनमन्दिर में फ़रिश्ते की मानिन्द ताज़िन्दगी मौजूद रहेंगे।    फिर लौट के आना कलाम साहब,अब आपकी शान में कोई गुस्ताखी नहीं होने देंगे हम !!!  frown emoticon   frown emoticon   frown emoticon

कल्प-वृक्ष

    जुनून की हद तक बागवानी का शौक पालने वाली मेरी धर्मपत्नी जयप्रभा ने सन् 1997 में कल्पवृक्ष का एक शिशु-पौधा ख़रीदा था। पहले एक छोटे गमले में और कुछ बड़ा होने के बाद उसे एक बड़े गमले में सहेजा गया। जयप्रभा के द्वारा की गई नित्य साज-सम्हाल और पूजा- अर्चना से गत् 18 वर्षों में इस पौधे ने लगभग 12 फ़ीट की ऊंचाई हांसिल कर ली थी। पौधे ने अब वृक्ष का रूप तो ले लिया था, लेकिन वह वृहद् आकार अभी तक नहीं पा सका था जो इन 18 वर्षों में ज़मीन में होने पर मिलता। पिछले कुछ माहों से जयप्रभा के मन में  यह विचार उभर रहा था कि क्यों नहीं इस कल्पवृक्ष का रोपण किसी मंदिर जैसे सार्वजानिक स्थान पर कर दिया जाय ताकि इसे इसका स्वाभाविक आकार भी प्राप्त हो और अन्य लोग भी इसकी पूजा-अर्चना का लाभ प्राप्त कर सकें ! विचार को मूर्त रूप देने के लिए उन्होंने हमारी कॉलोनी में ही स्थित एक निजी मंदिर की स्वामिनी सेे बातचीत की और अनुमति प्राप्त कर हम बाग़वान उदयलाल की मदद से आज इस वृक्ष को गमले सहित मंदिर में ले गए। मंदिर में अनूकूल स्थान पर खड्डा खोद कर गमले से निकाले गए इस वृक्ष का रोपण कर दिया और प्रारम्भिक लघुपूजा भी जयप्र

एक पत्र प्रधानमंत्री जी के नाम.…

माननीय प्रधानमंत्री जी, बहुत तकलीफ़ होती है मुझे, जब देखता/सुनता हूँ - 1) जब शहर के चौराहे पर खड़े हुए यातायात-कर्मी (सिपाही) तथा कानून को धत्ता बताते हुए हेलमेट पहनने को अपनी तौहीन समझने वाले कुछ सभ्य (?) दुपहिया-चालक लाल-बत्ती की भी परवाह किये बिना निर्धारित से कहीं अधिक गति से चलते हुए चौराहा पार कर जाते हैं। (ड्यूटी पर मौजूद सिपाही खिसियाकर मजबूरन इसे अनदेखा कर देता है।) 2) हमारी शान्तिपूर्ण व्यवस्था एवं जीवन की सामान्य गतिशीलता को अस्त-व्यस्त या नष्ट करने के लिए विध्वंसक आक्रमण कर रहे विदेशी आतंककारी या कुछ पथभ्रष्ट देश के ही नागरिकों (यथा नक्सली अथवा सामान्य अपराधी-गैंग) के विरुद्ध प्रतिरक्षा तथा प्रत्याक्रमण के लिए भेजे गये सुरक्षा-बल के साथ मुठभेड़ में परिणाम कुछ इस तरह का मिलता है-  'हमारे सात बहादुर सिपाही/ पुलिस अधिकारी शहीद हुए, लेकिन दो आतंककारियों को मार गिराया गया। मौके से आठ आतंककारी भाग निकतने में सफल रहे, जिनकी तलाश की जा रही है।'  3) सीमा पर पाकिस्तानी जब युद्ध-विराम का उल्लंघन कर गोलीबारी करते हैं और हमारे सैनिकों के जवाबी हमले के बाद समा

छोटी सोच छोड़ो ...

  'अनाज महँगा, दालें महँगी, सब-कुछ महँगा …अच्छे दिन नहीं आये अभी तक, मोदी जी ने गच्चा दे दिया, फरेब किया हमारे साथ'- यह कह-कह कर मोदी जी को कोसने वाले अपनी बुद्धि का प्रयोग क्यों नहीं करते?    भैया जी, अपनी छोटी सोच छोड़ो और और आँखें खोल कर बाहर झांको! देखो, सोना कितना सस्ता हो गया है! कुछ ही महीनों में सात हज़ार रू. तक की कमी आ चुकी है इसके भाव में। जरा-सी होशियारी लगाओ और फिर देखो महँगाई कहाँ अड़ती है! करना केवल यह है कि अभी दाल-सब्जी खाना बिल्कुल बंद कर दो और दस-बीस तोला सोना खरीद लो। अगले आम चुनावों के कुछ पहले जब दाल, सब्जी, प्याज़, वगैरह सस्ते हो जाएँ तब खा लेना मज़े से, कौन रोकता है!