सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

दिमागी दिवालियापन …

       पिछले पांच-छः दिनो से यहाँ (शिकागो में) मौसम जबर्दस्त सर्द है, तापक्रम -9 से -25 डिग्री सेल्सियस के मध्य झूल रहा है और स्नोफॉल के कारण धरती, मकान, वाहन, पेड़-पौधे सभी बर्फ़ से आच्छादित हैं। बर्फ़ किसी-किसी के दिमाग को जमा दे यह भी सम्भव है और ऐसा ही कुछ हुआ भी है। लेकिन...यहाँ की बर्फ का दुष्प्रभाव दूर हमारे भारत के उत्तर प्रदेश में देखने में आया है। बसपा से निष्कासित नेता (?) हाजी याकूब कुरैशी के साथ यह हादसा हुआ है, बर्फ ने उनके दिमाग को जमा दिया है। बर्फ शायद जब दिमाग को जमाती है तो समस्त उर्वरता को तो समाप्त कर देती है, लेकिन आतंक के कीड़े को जन्म दे देती है। आतंक का कीड़ा याकूब कुरैशी के दिमाग से निकल कर जुबान के रास्ते बाहर निकला और उन्होंने पेरिस में आतंकी घटना को अंजाम देने वाले जानवरों को 51 करोड़ रूपये ईनाम की घोषणा कर डाली।     याकूब कुरैशी अपने नाम के साथ हाजी लगाते है लेकिन बिना हज किये वह हाजी कैसे हो गए ! हज करने का उद्देश्य तो ख़ुद को पाक-साफ करना होता है और सम्भवतः वह हज के लिए जाते वक्त बीच रास्ते से वापस लौटे हैं।     पेरिस के फ्रेंच सेटायरीकल न्यूज़ पेपर के कार्

आओ, कुछ अच्छा करें …

    नव वर्ष में सब-कुछ अच्छा-अच्छा हो, इस सुखद कामना के साथ ही एक पुराना दर्द जहन में उभर आया....गोधरा-काण्ड !     गोधरा हत्या-काण्ड का दर्द कभी भुलाया नहीं जा सकता। हमारे भाइयों ने जिस तरह की पीड़ा भोग कर अपने प्राण गंवाए होंगे, उस पीड़ा के जिम्मेदार बहशी राक्षसों को कैसे कोई क्षमा कर सकता है ? यह भी न्यायसंगत होता कि ऐसे पिशाचों को पहचान कर उन्हें भी ऐसी ही मौत दी जाती, भले ही सभ्य समाज का कानून इसकी इज़ाज़त नहीं देता। लेकिन उनके समाज के लोगों में से जिनको ऐसी ही यातनापूर्ण मौत बदले की परिणिति में मिली, उनमें से भी तो कई लोग निर्दोष रहे होंगे। क्या ऐसा बदला जिसमें एक के अपराध की सज़ा किसी दूसरे निर्दोष व्यक्ति को मिले, किसी भी दृष्टिकोण से न्यायोचित कहा जा सकता है ? अपराधी का कोई धर्म नहीं होता और किसी भी धर्म में सभी अपराधी नहीं होते। हमें प्रयास करना होगा कि नफरत के इन अंगारों को हमेशा-हमेशा के लिए दफ़न कर दिया जाये और हम मिल-जुल कर प्यार के साथ रहना सीखें। हमें और मुस्लिम समाज को इस देश में जब साथ-साथ ही रहना है तो वैमनस्य की आग को बनाये रखना क्या दोनों ही सम्प्रदायों के लिए आत्मघात

सबका कल्याण हो...

वर्ष 2014 - इस खूबसूरत साल का समापन एक खूबसूरत अंदाज़ में हो रहा है मेरे लिए और आशा करता हूँ कि आप सब के लिए भी ऐसा ही कुछ रहा होगा। आइये, हम स्वागत करें आने वाले वर्ष का कुछ इस भावना के साथ कि आने वाला समय प्राणी-मात्र के लिए सुख और शान्ति का सन्देश ले कर आये। कोई भी व्यक्ति अभावग्रस्त न हो, नई आशा के साथ सब की सुबह हो, कोई भूखा नहीं सोये। सब के मन में सब के प्रति सद्भावना हो, सबका कल्याण हो। एवमस्तु !

तीन दृश्य : एक निष्कर्ष ! (तीन लघुकथाएँ)

   1)  एक जाने-माने वक़ील ने अपने मुवक्किल (जिसने क़त्ल किया था) को कोर्ट से बाइज्ज़त बरी करवा लिया और विपक्षी निर्दोष व्यक्ति के विरुद्ध सज़ा-ए=मौत का फैसला करवा दिया। कुछ लोगों ने इस पर वाह-वाही की तो कुछ लोगों ने थू-थू कर धिक्कारा। उस मुकद्दमे के दर्शक रहे एक संवेदनशील परिचित ने अगले दिन वक़ील को फोन कर पूछा- 'वक़ील सा., रात को नींद तो ठीक से आई न ?' वक़ील ने कहा- 'अरे नहीं भाई, नींद कहाँ से आती। रात भर सोचता ही रहा।' परिचित कुछ आश्वस्त हो बोला- 'शुक्र है, क्या ख़याल आते रहे ?'  वक़ील- 'यही जनाब कि मेरे एक दूसरे मुवक्किल को बचाने के लिए मुझे क्या-क्या करना है जिसने बलात्कार के बाद एक नाबालिग की हत्या कर दी थी। कल उसके लिए जवाबदावा पेश करना है।'                                                                                    *************   2)  एक महिला के सामने उसके पति की किसी ने हत्या कर दी। पुलिस अधिकारी ने महिला के बयान लिये और कुछ तफ्तीश के बाद हत्यारा पकड़ा गया। मुकद्दमा चला, इसी दौरान अपराधी के पक्ष के कुछ लोगों ने उस महिला को एक अच्छी सी 

कैसी धर्म-निष्ठा है यह …

   भारत में आतंकवाद का साया ! आतंक का पर्याय 'रामपाल' ! सद्दाम, लादेन, दाऊद इब्राहिम और आई एस का बगदादी- यह सभी नाम बौने हो गए हैं हिसार (हरियाणा) में रामपाल के दुस्साहस के आगे। जो हरकतें रामपाल और उसके मदान्ध अनुयायी कर रहे हैं उन्हें अभी तक बर्दाश्त क्यों किया गया है, यह बात अब सब जान चुके हैं। पचास हजार लोगों का जमावड़ा रामपाल की सुरक्षा में जमा हो गया है। क्या यह सब लोग आकाश से कूद कर अचानक आ गए वहां ? रामपाल से अधिक बड़े गुनहगार इसको संरक्षण देने वाले राजनीतिज्ञ हैं। देश का दुर्भाग्य है कि राजनीति अपराधियों को पैदा करती है, पनपाती है और अंत में विवश होकर उनको समाप्त भी वही करती है, लेकिन इस दौरान कई बेगुनाहों को जो कुछ भुगतना पड़ता है उसका क्या ! रामपाल की गिरफ़्तारी की जो प्रक्रिया अब होने जा रही है उसकी क्रियान्विति में कर्तव्य-निर्वाह कर रहे जवानों का जो खून बहेगा, उसका उत्तरदायी कौन होगा ? किसी के पास कोई जवाब नहीं इसका।आखिर ऐसे पाखंडियों के छलावे में आकर भोले-भाले (मूर्ख) लोग क्या हाँसिल कर रहे हैं ? उनका परलोक तो नहीं सुधर रहा, हाँ, इहलोक ज़रूर बिगड़ रहा है।    आसाराम,

कोई तो दोषी है …

     कितनी अच्छी व्यवस्था थी- हर 15-20 फीट पर सड़कों पर छोटे-बड़े गड्ढे यानि कि अघोषित स्पीड-ब्रेकर थे। किशोर, जवान, बुजुर्ग, सभी बहुत ही सावधानी से वाहन चलाते थे।     नगर निगम के चुनावों के चलते इन दिनों सड़कों का डामरीकरण करके यातायात एकदम सुगम कर दिया गया है।     अब आलम यह है कि लम्बे समय की आदत के कारण बुजुर्गों सहित कुछ जिम्मेदार किस्म के लोग अब भी सड़कों पर धीमे-धीमे  ही वाहन चला रहे हैं और रफ़्तार के बाज़ीगर, शोहदे किस्म के लोग बेतहाशा अपने वाहन दौड़ाते हुए कई बार धीमे चलने वाले व्यक्ति को टक्कर मार देते हैं। धीमे चलने वाले लोग कुसूरवार भी तो हैं, वह क्यों नहीं सड़कों पर फर्राटे मारते, जबकि सड़कें शानदार बना दी गई हैं।     कोई न कोई तो दोषी है। कुल मिलाकर यही कहना उचित होगा कि बेड़ा गर्क हो चुनावी राजनीति का, जिसके कारण सड़कों का उद्धार हुआ है। 

भारत- 'विश्व का सरताज़'

    सही मायने में देखा जाये तो भारत में इस बार किसी पार्टी के सांसदों ने प्रधानमंत्री को नहीं चुना, सीधे ही जनता ने चुना है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री मोदी की आवाज़ में एक ताक़त है, उनके इरादों में मज़बूती है और कुछ कर गुज़रने का ज़ुनून भी दिखाई दे रहा है। अमेरिका में आज के उनके भाषण से तो यही लग रहा है। ईश्वर करे, मेरी यह सोच और समझ सही हो ! मोदी जी के नेतृत्व की संकल्प-शक्ति के सहारे हमारा भारत महात्मा गांधी के सपनों का भारत बन सके !! शहीद भगत सिंह और सुभाष चन्द्र बोस जैसे देश के सपूतों का त्याग और बलिदान सार्थक हो सके !!! और…और मेरे देश का हर नागरिक निस्वार्थ भाव से राष्ट्र के उत्त्थान के लिए जो कुछ भी सम्भव है, यथाशक्ति करे। हर नागरिक मोदी का हाथ और दिमाग बन जाए, तब ही बन सकेगा भारत 'विश्व का सरताज़' !