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एक नन्ही-सी कहानी

बदलू राम, अकड़ू राम, गोलू मल, पेटू चन्द, नौटंकी लाल, हेठी बाई, तेजी ताई, वगैरह-वगैरह चचेरे-ममेरे भाई-बहन एक कमरे में बैठे मीटिंग कर रहे थे। मुद्दा था, मोहल्ले के वर्तमान अध्यक्ष को हटा कर अपना अध्यक्ष बनाने के लिए कुछ ठोस कदम उठाने के लिए नक्शा तैयार करना। सब की अपनी-अपनी ढफली, अपना-अपना राग - हर कोई अध्यक्ष बनने का इच्छुक, पर अपने मुँह से कहे कौन? कुछ रिश्तेदारों ने गोलू मल का नाम सुझाया, तो उसे अयोग्य मान कर नौटंकी लाल बिफर गया, क्योंकि वह तो खुद को ही सबसे अधिक योग्य मानता था। बदलू राम सहित दो-तीन अन्य रिश्तेदार भी, जो स्वयं अध्यक्ष बनने को बेचैन थे, गोलू मल के चुनाव से सहमत नहीं थे। लेकिन बेचारे कुछ कह नहीं पा रहे थे। किसी एक ने बदलू राम का नाम भी चलाया। बदलू राम के मन में तो लड्डू फूट रहे थे, पर बेचारा ‘ना-ना, मैं नहीं’, कहते हुए इंतज़ार कर रहा था कि और कोई भी आग्रह करे, लेकिन बात बनी नहीं।  इस बात से तो सब एकमत थे कि नया अध्यक्ष बनना चाहिए जो इन्हीं लोगों में से एक हो, किन्तु कौन हो, इस बात पर सहमति नहीं बन पा रही थी। सभी रिश्तेदार आपस में कहीं न कहीं एक दूसरे से कुढ़ते थे, लेकिन मौ

खिदमत (कहानी)

(1)    कुछ असामाजिक गतिविधियों के चलते सांप्रदायिक दंगा हो जाने के कारण शहर में दो दिन तक कर्फ्यू रहने के बाद पिछले तीन दिनों से धारा 144 लगी हुई थी। प्रशासन की तरफ से किसी भी खुराफ़ात या दंगे से निपटने के लिए माकूल व्यवस्था की गई थी। शहर में हर घंटे-दो घंटे में सायरन बजाती पुलिस और प्रशासन की जीपें व कारें सड़क पर दौड़ रही थीं।  रात के नौ बज रहे थे। मनसुख शर्मा की तबीयत आज कुछ ठीक नहीं थी। बिस्तर पर अधलेटे पड़े वह अपनी पत्नी मनोरमा के साथ टीवी पर आज की ख़बरें देख रहा था। बेटा उदित और बिटिया अलका दूसरे कमरे में बैठे कैरम खेल रहे थे। किसी के द्वारा ज़ोर से दरवाज़ा खटखटाया जाने पर मनसुख देखने के लिए बरामदे से हो कर दरवाज़े की तरफ जा रहां था कि मनोरमा ने टोका- "देखो, सावधान रहना। रात का समय है, कोई गुंडा-बदमाश ना हो।" मनसुख प्रत्युत्तर में कुछ भी नहीं बोला। उसने बाहर की लाइट ऑन की और दरवाज़े के पास कोने में रखी छोटी लाठी एक हाथ में थाम कर दरवाज़ा थोड़ा सा खोला। बाहर एक अधेड़ उम्र का आदमी खड़ा था।  मनसुख ने पूछा- "बोलो भाई, क्या चाहिए?" "भाई साहब, मैं तकलीफ में हूँ, मुझे भीतर आ

विधान (एक प्राचीन लघुकथा)

  एक प्राचीन कहानी, जिन लोगों ने नहीं पढ़ी-सुनी हो, उनके लिए - एक समय की बात है। यमराज श्री विष्णु भगवान के दर्शन करने विष्णुधाम पहुँचे। द्वार पर गरुड़ जी पहरा दे रहे थे। द्वार के ऊपर की तरफ एक खूँटे पर एक कबूतर बैठा था। यमराज ने गहरी दृष्टि से उसे देखा और भीतर चले गये। कबूतर थर-थर काँपने लगा।  गरुड़ जी ने पूछा- "क्या बात है भाई, इतना घबरा क्यों रहे हो?" "श्रीमान, यमराज जी की दृष्टि मुझ पर पड़ गई है। मैं अब बच नहीं सकूँगा।" "अरे नहीं भाई, व्यर्थ चिंता क्यों करते हो? उनका तुमसे कोई वास्ता नहीं है। वह तो यहाँ परमेश्वर के दर्शन करने आये हैं।" "नहीं प्रभु, मैंने सुना है, जिस पर उनकी दृष्टि पड़ जाए, वह बच नहीं सकता। मेरी मृत्यु अवश्यम्भावी है।" -भयाक्रान्त कबूतर ने कहा।  "अगर ऐसा ही सोचते हो तो चलो मेरे साथ, मैं तुम्हें नितान्त सुरक्षित स्थान पर ले चलता हूँ।" कबूतर ने प्रसन्नता से सहमति दे दी। गरुड़ जी ने मात्र दो पल में उसे सहस्रों योजन दूर एक विशालकाय पर्वत की गहरी कन्दरा में ले जा कर छोड़ दिया और सुरक्षा के लिए कन्दरा का मुख एक विशाल चट्टान से ढ

वक्त की लकीरें (कहानी)

(1) सिनेमाघर में सेकण्ड शो देख कर एक रेस्तरां में खाना खाने के बाद घर लौट रहे प्रकाश ने जैसे ही मेन रोड़ पर टर्न लिया, देखा, सड़क पर बायीं तरफ एक युवती भागी चली जा रही है। प्रकाश को भी उधर ही जाना था। स्कूटर बढ़ा कर वह युवती के पास पहुँचा। भागते-भागते थक जाने के कारण वह हाँफ़ रही थी और ठंडी रात होने के बावज़ूद पसीने से भरी हुई थी। स्कूटर धीमा कर उसने युवती से भागने का कारण पूछा तो उसने कहा- "वह मेरा पीछा कर रहा है। प्लीज़ मुझे बचा लो।" प्रकाश ने पीछे मुड़ कर देखा, एक बदमाश-सा दिखने वाला व्यक्ति उनकी तरफ दौड़ा चला आ रहा था, जो अब केवल दस कदम की दूरी पर था। प्रकाश ने फुर्ती से स्कूटर रोक कर युवती को पीछे बैठ जाने को कहा। युवती स्कूटर पर बैठती, इसके पहले ही वह बदमाश उनके पास पहुँच गया। प्रकाश स्कूटर से उतर कर युवती व बदमाश के बीच खड़ा हो गया। एक-दो राहगीर उस समय उनके पास से गुज़रे, किन्तु, रुका कोई नहीं। बदमाश ने चाकू निकाल कर प्रकाश के सामने लहराया और बोला- "बाबू, तुम हमारे झमेले में मत पड़ो। इस लड़की को मुझे सौंप दो।" वह बदमाश पेशेवर गुण्डा प्रतीत हो रहा था, किन्तु मज़बूत कद-काठी