मुस्लिम देश, पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधिपति श्री गुलज़ार अहमद ने वहाँ के पुलिस सुप्रीमो को यह कह कर लताड़ा है कि हिन्दू मन्दिर को भीड़ ने ध्वस्त किया तो पुलिस मूक दर्शक बन कर यह सब देखती कैसे रही और यदि पुलिस अधिकारी काम नहीं कर सकते तो क्यों नहीं उनको हटा दिया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि सोचिये अगर मस्जिद पर हमला तो मुस्लिमों की क्या प्रतिक्रिया होती?
माननीय न्यायाधिपति के इस कथन ने प्रमाणित कर दिया है कि न्याय की कुर्सी पर बैठने वाले व्यक्ति के शरीर में ईश्वर का वास होता है। उसकी सोच धर्म के संकीर्ण दायरे से परे होती है। वह यह नहीं देखता कि अपराधी उसके धर्म से सम्बन्ध रखता है अथवा विधर्मी है।
इस न्यायाधिपति को, उसके न्याय को दिल से मेरा सलाम! ... किन्तु न्यायाधिपति जी, हमारे देश में तो गाहे-बगाहे इससे मिलती-जुलती घटनाएँ होती रहती हैं। यहाँ कभी किसी धर्म-स्थल को अपवित्र कर दिया जाता है तो कहीं किसी देवता की मूर्ति से आँखें निकाल ली जाती हैं। यदि किसी मूर्ति का कोई अंग मूल्यवान हो तो कभी-कभी तो कोई नराधम समधर्मी भी मूर्ति को क्षतिग्रस्त कर वह अंग चुरा लेता है। हमारा धर्म इन मामलों में इतना उदार बन जाता है कि हम कोई कठोर कार्यवाही ही नहीं कर पाते। यदि कोई धर्म-प्राण व्यक्ति या समुदाय ऐसी घटना को गंभीरता से लेता भी है तो कोई न कोई निर्लज्ज धर्मनिरपेक्ष राजनेता अपनी टांग फंसा कर मामले को अंजाम तक पहुँचने से पहले ही टाँय-टाँय फिस्स करवा देता है।
धर्मोन्मादिता हर धर्म के कुछ लोगों में दिखाई देती है, किसी में ज़्यादा तो किसी में कम! शायद ऐसे लोग दूसरे धर्मावलम्बियों की भावनाओं को आहत करने को ही अपनी और अपने धर्म की जीत मानते हैं। वह नहीं जानते कि ऐसा कर के वह अपराध ही नहीं, बल्कि महापाप कर रहे हैं। ऊपर वाला (ईश्वर/अल्लाह) सोचता अवश्य होगा ऐसे जाहिलों की हरकतें देख कर कि कैसे नारकीय जीवों को उसने इन्सान बना कर धरती पर भेज दिया है।
आवश्यकता है कि पाकिस्तान के न्यायाधिपति से सम्बंधित उपरोक्त दृष्टान्त को हमारे देश के तथाकथित धर्मनिपेक्षतावादी खुली आँखों से देखें व समझें। वोटों की राजनीति के कारण आँखों पर पट्टी न बाँध लें। आज जनता पहले जैसी नादान नहीं रही है। वह सब देखती, समझती है और समय आने पर उचित दण्ड भी देती है।
रहा सवाल ऊपर वाले का, तो वह मात्र धार्मिक उन्माद वाले अपराधों को ही नहीं देख रहा, वह एक इन्सान के दूसरे प्राणी (मनुष्य/पशु) के प्रति किये जा रहे असंगत व्यवहार को भी देखता है। उसकी लाठी चलती है, पर आवाज़ नहीं करती। इन्सान अपनी दुष्टताओं की सजा भी देर-सवेर पाता अवश्य है, किन्तु मूर्खतावश वह इसे सामान्य घटना मान कर महत्त्व नहीं देता।
वांछनीय है कि इन्सान धर्म के विषय में ही नहीं, अपने दैनिक जीवन में भी कलुष त्याग कर अपने आचरण में स्पष्टता व स्वच्छता रखे व सब के प्रति सौहार्द रखे।
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जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (०९-०८-२०२१) को
"कृष्ण सँवारो काज" (चर्चा अंक-४१५१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
स्नेहाभिनन्दन आ. अनीता जी, आपका हार्दिक धन्यवाद !
हटाएंकृपया बुधवार को सोमवार पढ़े।
हटाएंसादर
आदरणीय सर , पाक न्यायपालिका के इस न्यायसंगत निर्णय के बारे में आपके ही लेख से जाना |अच्छा लगा एक कथित धर्मांध राष्ट्र में इस तरह के विवेकपूर्ण फैसले भी दिए जाते हैं | दूर देश में हिन्दू धर्म के लोगों को राहत मिली पर अपने देश में ऐसी खबरें आती ही रहती हैं जहाँ धर्म स्थानों के साथ बड़ी ही शर्मनाक चीजें सुनने में आती हैं |जिनसे लोगों की भावनाओं को बहुत ठेस पहुँचती है | पर इससे भी ज्यादा निंदनीय दायित्वपूर्ण पदों पर कार्य कर रहे लोगों का चुप रह जाना है | पर सच है ईश्वर की लाठी बेआवाज होती है -- पड़ती है तो पता नहीं चलता | सार्थक लेख के लिए हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंआपकी इस सारगर्भित टिप्पणी के लिए हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ महोदया रेणु जी! आपकी विवेचनात्मक क्षमता का प्रशंसक हूँ मैं😊।
हटाएंसार्थक लेख, किन्तु प्रश्नचिन्ह अपनी जगह रह ही जाता है, न्यायाधीश के बयान में कितनी सत्यता है ये कहना मुश्किल है, मुस्लिम बहुल राष्ट्र कभी भी सत्य नहीं बोलते, उनके हर एक बयान के पीछे क़ौमी हित ही सर्वोपरि होता है, दुनिया को मूर्ख बनाने में ये देश उस्ताद होते हैं चाहे वो बांग्लादेश हो या पाकिस्तान सभी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं इनकी कथनी और करनी दोनों में ही झांसा होता है - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंबहुत हद तक सही कह रहे हैं आप, किन्तु न्यायाधीश की उक्त टिप्पणी के बाद वहाँ का पुलिस-प्रशासन हरकत में आया है व कई उपद्रवियों को गिरफ्तार भी किया गया है। मंदिर की टूट-फूट को भी आनन-फानन में सुधारना प्रारम्भ कर दिया गया है। हर कौम में कुछ लोग तो ऐसे होते ही हैं, जिनमें अच्छी आत्मा का निवास होता है, कर्तव्यपरायणता होती है😊।
हटाएंकाश कि उपद्रवियों और उनके रक्षकों, संरक्षकों को मुख्य न्यायाधिपति जी की बात समझ आ जाती
जवाब देंहटाएंवैसे तो वह लोग दुर्बुद्धि ही हैं, किन्तु सैनिक शासन आने तक तो उन लोगों को न्यायाधीश की बात समझनी ही पड़ेगी कविता जी!
हटाएंकिसी भी देश की न्यायपालिका अगर प्रतिबद्धता से मानवीय फैसले लें तो ये एक सराहनीय बात है ,और जहां नहीं लिए जाते वहाँ नागरिक सदा असुरक्षा के घेरे में होते हैं।
जवाब देंहटाएंसुंदर।
सही कहा आपने आदरणीया ! फिलहाल यह एक सुखद बात है कि ऐसे नामाकूल देश में भी न्यायपालिका तो कम से कम स्वतन्त्र निर्णय ले पा रही है।
हटाएं"वांछनीय है कि इन्सान धर्म के विषय में ही नहीं, अपने दैनिक जीवन में भी कलुष त्याग कर अपने आचरण में स्पष्टता व स्वच्छता रखे व सब के प्रति सौहार्द रखे। "
जवाब देंहटाएंसत्य वचन सर,मानव इतना ही सीख ले वही बहुत है ,सादर नमन आपको
सादर अभिवादन आ. कामिनी जी! शालीन सहमति के लिए अन्तःस्तल से आभार आपका!
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