भूमिका:-
कुछ दिन पहले कुछ पुराने कागज़ात ढूँढ़ने के दौरान मुझे अनायास ही कॉलेज के दिनों में लिखी अपनी कहानी 'महत्त्वहीन' की हस्तलिखित प्रति मिल गई, जिसे उस समय आयोजित अन्तर महाविद्यालय कहानी प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार मिला था। मुझे कहानी का मूल कथानक तो अभी तक स्मरण था, किन्तु कहानी की उस समय की मौलिकता को स्मृति के आधार पर यथावत् लिख पाना मेरे लिए सम्भवतः दुष्कर कार्य था। अपनी उस हस्तलिखित प्रति में आंशिक सुधार कर के मैंने उस रचना को यह नया रूप दिया।
अपने बालपन व किशोरावस्था में जिन अभावों व जीवन की दुरूहताओं से मैं रूबरू हुआ था, उन परिस्थितियों ने मुझे तब से ही कुछ अधिक संवेदनशील बना दिया था और उसके चलते अपने आस-पास व समाज में जो कुछ भी घटित होता था, उसे गहनता से देखने-समझने की प्रवृत्ति अनायास ही मुझमें पनपती चली गई। शनैः-शनैः भावनाएँ शब्दों का आकार ले कर कहानियों में बदलती चली गईं। मेरी अन्य कहानियों की तरह यह कहानी भी ऐसी ही एक भावनात्मक उपज है।
मानवीय दुर्बलता, स्वार्थपरता एवं सामाजिक विवशता की भावनाओं के इर्द-गिर्द बुनी मेरी यह कहानी ‘महत्त्वहीन’ भी मेरी उसी तात्कालिक मनःस्थिति की उपज है। उसी कहानी को मैं आप सुविज्ञ पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते हुए हर्ष अनुभव कर रहा हूँ। पढ़िए मित्रों, मेरी यह कहानी 'महत्त्वहीन'!
'महत्त्वहीन'
वह अपने घर के दरवाज़े से बाहर निकल कर कुछ कदम ही चली थी कि उसने देखा, उसका कुत्ता 'टॉमी' उसके पीछे-पीछे चला आ रहा था। झल्ला कर रुक गई वह। 'उफ्फ़ नॉनसेन्स!' -उसके मुँह से निकला।
सूर्योदय होने में लगभग डेढ़-पौने दो घण्टे शेष थे। डरते-डरते अपने हाथों में थामे शिशु की ओर उसने देखा और एकबारगी काँप उठी। कल ही तो वह दिल्ली के अस्पताल से अपनी माँ व शिशु के साथ लौटी थी। अपने किसी भी परिचित को उन्होंने इस बच्चे के जन्म की भनक तक नहीं होने दी थी। दिसम्बर माह का अन्तिम सप्ताह था। शीत के साथ ही भय की एक लहर ने उसका रोम-रोम खड़ा कर दिया। दिल की गहराई तक उसने यह सिहरन महसूस की और भयाक्रान्त हो चारों ओर नज़र डाली। उसे लगा, जैसे सभी दिशाओं से कुछ अज्ञात शक्तियाँ आँखें फाड़-फाड़ कर उसे घूर रही हैं। एक चीख उसके कण्ठ में घुट कर रह गई। एक बार फिर निद्रामग्न अपने शिशु की ओर देख कर उसने पीछे खड़े टॉमी की ओर देखा। टॉमी अपनी पूँछ हिलाता हुआ चुपचाप खड़ा शायद उसके मनोभाव पढ़ने की कोशिश कर रहा था। अपनी मालकिन के साथ रहना उसकी आदत-सी बन गई थी, इसीलिए वह साथ चला आया था।
वह टॉमी के पास आई और उसे फटकारते हुए बोली- "टॉमी, तुम बेवकूफ़ हो। तुम्हें मेरे पीछे-पीछे नहीं आना चाहिए था।"
टॉमी ने अपनी आँखें बन्द कर सिर हिलाया, जैसे कि वह उसकी बात समझ रहा हो।
इन बोझिल क्षणों में भी वह मुस्कुरा दी और अपने घर की ओर लौट चली। घर के भीतर जा कर शिशु को पलंग पर लिटाया और टॉमी को अपने पास बुलाया। टॉमी दुम हिलाता हुआ उसके पास आ गया। उसने टॉमी के गले में चैन डाल कर उसे पलंग के सहारे बांध दिया। दो मिनट वह टॉमी की ओर देखती रही। सहसा उसकी नज़र मेज पर पड़ी अलार्म-घड़ी पर पड़ी, छः बजने को थे। बगल के कमरे से आ रही अपनी माँ के खर्राटों की आवाज़ उसे आज कुछ अधिक ही बुरी लगी। उसका जी चाहा कि माँ को उठा दे, किन्तु कुछ सोच कर वह रुक गई। उसने शिशु को अपने हाथों में उठाया और पुनः घर से बाहर चली आई।
बीस मिनट में वह एक लम्बा रास्ता तय कर चुकी थी। जिस सड़क पर वह चल रही थी, वह सड़क बायीं तरफ की पहाड़ियों के साथ चलती हुई आगे से घुमावदार हो कर दूर तक चली जाती थी। दायीं तरफ किनारे के छोटे-बड़े पेड़ों के पीछे लम्बा-चौड़ा जंगल था। बहता रास्ता नहीं होने से कभी-कभार ही कोई वाहन इस रास्ते से गुज़रता था। सड़क छोड़ कर वह दायीं तरफ बारह-तेरह फीट की दूरी पर एक पेड़ के पास आ खड़ी हुई। नन्हे शिशु को करुण दृष्टि से देखा और जी कड़ा कर के पेड़ के नीचे लिटा दिया। माँ से बिछुड़ कर वह मासूम रो पड़ा। अपनी आँखों से छलक आये अश्रुकणों को उसने रुमाल से पोंछा और साथ में लाये सूती कपड़े के एक टुकड़े को दोहरा कर के शिशु को ओढ़ाया और सीधी खड़ी हो गई। हवा के एक सर्द झौंके ने उसके बदन को कँपकपा दिया। उसने अपने कंधे पर पड़ी शॉल को शरीर पर कस कर लपेट लिया। अन्तिम रूप से शिशु पर एक नज़र डाल कर वह वहाँ से लौट चली।
चन्द्रमा की किरणें शिथिल हो चली थीं व भोर-सवेरे का मद्धिम प्रकाश धरती पर छितराने लगा था। वह और तेज़ चलने लगी। वृक्षों की कतारों पर चिड़ियाँ चहचहाने लगी थीं। तभी एक पेड़ के नीचे, ज़मीन के पास एक ही जगह पर उड़ती-मंडराती, कातर स्वर में चीखती एक चिड़िया पर उसकी नज़र पड़ी। उसने निकट जा कर देखा, चिड़िया का नन्हा बच्चा ज़मीन पर मरा पड़ा था। शायद वह अपनी पहली ही उड़ान में धरती पर गिर पड़ा था। सहम कर उसने अपना चेहरा दोनों हाथों से ढँक लिया। कुछ क्षणों के लिए वह जड़वत् अपनी जगह पर जम गई।… सिर झटक कर वह पुनः आगे बढ़ी और अपनी चाल और तेज़ कर ली, जैसे कि कई प्रेत उसका पीछा कर रहे हों।
घर पहुँच कर वह सीधे ही जा कर पलंग पर लुढ़क गई। टॉमी ने पहले उसकी ओर देखा और तब एक खोजी नज़र कमरे में चारों और डाली और धीमे-धीमे भौंकना शुरू कर दिया। टॉमी के भौंकने की आवाज़ सुन कर वह पलंग पर उठ बैठी। कुछ समय तक वह उसकी ओर निर्निमेष देखती रही और फिर उसे उसकी चैन से आज़ाद कर दिया। अब वह अपने काम की सफलता का सन्देश देने माँ के कमरे में चली गई। उसके वहाँ से जाते ही टॉमी कमरे के बाहर आ गया।
बाहर आकर टॉमी इधर-उधर सूंघने का प्रयास करने लगा। सहसा उसके मुँह से गुर्राहट की आवाज़ निकली और वह चहरदीवारी फांद कर उसी सड़क पर दौड़ पड़ा जहाँ से उसकी मालकिन उसे वापस ले कर आई थी। कुछ ही मिनट में वह उसी पेड़ के पास पहुँच गया, जहाँ वह शिशु सर्दी से ठिठुर कर दम तोड़ने वाला था। उसने उसे सूँघा और उसके चारों ओर एक चक्कर लगाया। वह मूक पशु समझ नहीं पा रहा था कि उसकी मालकिन इस नन्हे बच्चे को आखिर यहाँ क्यों छोड़ गई है। मानव जगत की यह छलना वह अबोध प्राणी समझ भी कैसे सकता था? वह केवल यह समझ पा रहा था कि वह स्थान इस शिशु के लिए उपयुक्त नहीं था, लेकिन नहीं जानता था कि वह करे क्या!
तभी एक जीप के हॉर्न की आवाज़ टॉमी ने सुनी और तुरंत ही दौड़ कर सड़क पर आ गया। टॉमी बीच सड़क खड़ा था और जीप टॉमी के बहुत पास आ चुकी थी। चालक ने जीप की गति कम कर के कई बार हॉर्न बजाया, किन्तु टॉमी सड़क के बीच ही डटा रह कर भौंकता रहा। परेशान ड्राइवर ने जीप को थोड़ा दायें मोड़ कर गति तेज़ कर दी। टॉमी शायद जीप को रुकने के लिए बाध्य करना चाहता था, बिना एक पल गवाँये जीप के आगे कूद पड़ा।
एक दर्दनाक चीख टॉमी के मुँह से निकली। जीप का अगला पहिया उसके शरीर को रौंदता हुआ आगे निकल गया था। जीप एक क्षण के लिए भी वहाँ नहीं रुकी।
मरणासन्न टॉमी ने बड़ी मुश्किल से अपना सिर कुछ ऊपर उठाया और दर्द भरी निगाहों से शिशु की ओर देखा। शिशु ने रोना बंद कर दिया था। ठण्ड के कारण शिशु की रोने की शक्ति भी सम्भवतः समाप्त हो गई थी।
लहूलुहान टॉमी अधिक देर तक अपना सिर ऊँचा नहीं रख सका। उसका सिर नीचे झुकता चल गया। कोई नहीं जान सकता था कि उसके चेहरे से बह रहे खून में पानी कितना शामिल था जो उसकी आँखों से बह रहा था। पूरी ताकत लगा कर उसने एक बार खड़े होने का प्रयास किया। इस प्रयास में उसने अपने शरीर को कुछ ऊपर उठाया भी, लेकिन दूसरे ही क्षण निर्जीव हो कर नीचे गिर पड़ा।
उधर शिशु ने भी दम तोड़ दिया। शायद अपने एक मात्र हमदर्द को मरते देख कर उसकी हिम्मत भी जवाब दे गई थी।
इस घटना के लगभग एक घण्टे बाद बाइक पर बैठे दो व्यक्ति इस सड़क से निकले। पहले उनकी नज़र बीच सड़क पर पड़े 'टॉमी' पर पड़ी और फिर पेड़ के नीचे पड़े मृत शिशु पर। दोनों शिशु के पास आये और ध्यान से देखने के बाद उनमें से एक बोला -"मर चुका है। हमें पुलिस को रिपोर्ट करनी चाहिए। शायद वह कुत्ता इसे नोचने के लिए ही इधर आ रहा होगा, कि बीच सड़क किसी गाड़ी से कुचला गया।"
"पागल हो? पुलिस के चक्कर में पड़ कर परेशानी मोल लेनी है क्या? जब इसकी माँ ही इसे मरने के लिए लावारिस छोड़ के चली गई, तो हमें क्या पड़ी है? कुत्ते नोचें या चीलें खाएँ, चलो यहाँ से।"
दोनों की सोच के परे था यह जान सकना कि इस घटना में कुत्ते का क्या महत्त्व था!
वह लोग वहाँ से चले गये इन दोनों महत्त्वहीन प्राणियों को यूँ ही छोड़ कर। शायद उन्होंने सोचा होगा कि दो-एक दिन में जब नगर पालिका की नज़र पड़ेगी तो वह इन्हें उठा ले जायगी... और नहीं भी उठाएगी, तो भी इस दुनिया के कामों में कोई रुकावट नहीं आएगी।
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आदरणीय सर . आपकी सधी शैली में एक और मर्मान्तक कथा ह्रदय को विदीर्ण कर गयी |अखबारों और अन्य माध्यमों से ऐसे अनचाहे शिशुओं की दुर्गति की खबरें अक्सर सुनी और पढ़ी जा सकती हैं ! इसी तरह के एक अनचाहे शिशु [ शायद ] की ये मर्म कथा और कथित संवेदनशील समाज का क्रूर और संवेदनाहीन रवैया स्तब्ध कर गया | लेकिन टॉमी जैसे वफादार भी अति भावुकतावश सड़कों पर असमय कालकवलित होते रहते हैं तो माँ के नाम पर धब्बा माएं अपनी कलंक कथा भी लिखती रहती हैं | मार्मिक लेखन के लिए साधुवाद |
जवाब देंहटाएंआपकी इस हृदयग्राही, मन को आल्हादित करती मधुरिम समीक्षा के लिए बहुत आभारी हूँ रेणु जी! आपके स्नेहादरित उद्गार मन को आश्वस्त करते हुए और भी अधिक अच्छा लिखने को प्रेरित करते हैं महोदया!
हटाएंहृदयहीन माँ, निष्ठुरता की पराकाष्ठा पार कर गई
जवाब देंहटाएंऔर वफादार दोस्त मूक शिशु की रक्षा करते-करते शहीद हो गया
समझ नहीं पा रही
वाह लिक्खूं कि आह लिक्खूं
सादर
मेरे लेखन को सार्थकता प्रदान करती आपकी इस टिप्पणी के लिए आपका शुक्रगुज़ार हूँ यशोदा जी,
हटाएंओह , बहुत मार्मिक । टॉमी के प्रति मन कृतज्ञता महसूस कर रहा है । खुद की इज़्ज़त बचाने के लिए एक निर्दोष की जान की कोई कीमत नहीं । ऐसे इज़्ज़त दाँव पर ही क्यों लगाई जाती है ।
जवाब देंहटाएंआपकी हस्तलिपि ( राइटिंग) बहुत खूबसूरत है ।
एक लेखक की रचना के किसी पात्र से कोई सहृदय पाठक यदि भावनात्मक जुड़ाव महसूस करता है, तो यह उस लेखक के लिए सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार बन जाता है संगीता जी! मेरी हस्तलिपि की सराहना के लिए अतिरिक्त रूप से आपका शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ महोदया!
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (3-8-21) को "अहा ये जिंदगी" '(चर्चा अंक- 4145) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
मेरी इस कहानी को 'चर्चा मंच' के पटल पर स्थान देने के लिए स्नेहिल अभिवादन के साथ आभार महोदया कामिनी जी!
हटाएंगहन विषय और गहन भावों की कथा...।
जवाब देंहटाएंआभार संदीप शर्मा साहब!
हटाएंनमस्कार भट्ट साहब, लाजिमी था इस कहानी को पुरस्कार मिलना , एक तो मार्मिक कहानी और उस पर आपकी लेखन शैली जो मूलप्रति में दिख रही है, आपकी उत्कृष्टता स्वयं बयान कर रही है। अद्भुत कहानी हमारे सामने लाने और वैचारिकी को एक अलग आयाम देने के लिए शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंनमस्कार महोदया! मुझे प्राप्त पुरस्कार को समर्थन दे कर आपने मेरी कहानी को गौरव प्रदान किया है अलकनन्दा जी! भावाभिभूत हूँ आपकी अप्रतिम सराहना पाकर। अन्तःस्तल से आभार आपका!
हटाएंगजेंद्र भाई, कुत्ता जानवर होकर भी वफादार होता है। और एम माँ, जिसकी गोद मे बच्चा अपने आप को सबसे ज्यादा सुरक्षित समझता है,वहीं...
जवाब देंहटाएंदिल को छूती बहुत सुंदर रचना।
सादर आभार आपका ज्योति बहना! मानव अब मानव कहाँ रह गया है!
हटाएंप्रभावशाली लेखन, बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना, गहरा असर छोड़ जाती है - - साधुवाद सह आदरणीय।
जवाब देंहटाएंअन्तःस्तल से आभार आपका प्रिय बन्धु शांतनु जी!
हटाएंबहुत ही मार्मिक कहानी।
जवाब देंहटाएंअनेक प्रश्न हृदय में छोड़ गई।
सादर प्रणाम सर।
सादर नमस्कार अनीता जी! बहुत-बहुत आभार आपका!
जवाब देंहटाएंआपकी कहानी अपने आकर में छोटी और आपके विद्यालयी जीवन के मनोभावों को लिए हुए है. जैसा कि आपने बताया है लेकिन कहानी में पूरी सम्वेदना और एक संदेश है इस पत्थर दिल होते जा रहे संसार के प्रति.
जवाब देंहटाएंबधाई आपको!
आपकी सराहनात्मक टिप्पणी मेरे लिए अभिप्रेरक बनेगी महोदया! हार्दिक धन्यवाद आपको!
हटाएंमार्मिक कथा
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद महोदय!
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