लॉक डाउन में दो घंटे की सरकारी छूट थी सो कुछ खरीदारी करने मैं बाज़ार की ओर निकला। राह में एक छोटा-सा मन्दिर पड़ता था। वहाँ नज़र गई तो देखा, एक आदमी प्रार्थना में मग्न बैठा था। दर्शन करने की इच्छा से मैं भीतर गया तो अचानक वह व्यक्ति भगवान के सामने रोते हुए गिड़गिड़ाने लगा- "मेरे प्रभु, मेरे मालिक, दया करो मुझ पर! दो दिन से भरपेट नहीं खाया है। कितने ही दिनों से धन्धा चौपट हो गया है। अब तो कोरोना को ख़त्म करो दयालु ! मैं अपनी पहले दिन की पूरी कमाई आपके चरणों में अर्पित...।" मेरे मन में उसकी सहायता करने की इच्छा बलवती हुई, उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा- "भैया, शांत हो जाओ।" वह कातर दृष्टि से मेरी ओर देखता हुआ उठ खड़ा हुआ। मैंने अपना वॉलेट निकाल कर 100 रूपये का एक नोट उसकी ओर बढ़ा दिया। उसने वह नोट भगवान के चरणों में रख दिया और हाथ जोड़ कर बोला- "मेरी पहली कमाई स्वीकार करो प्रभु!" उसकी निष्ठा से प्रभावित हो कर मैंने एक और नोट उसे दिया और पूछा- " एक दिन में कितना कमा लेते हो भाई?" "कुछ निश्चित नहीं है। जितना भाग्य में होता है, म