"सब्जी लेने साइकिल पर बाज़ार जा रही एक सत्रह वर्षीय लड़की से कार में बैठे कुछ मनचलों ने छेड़छाड़ की, विरोध करने पर उसे खींच कर एक ओर ले जाने की कोशिश की और फिर शोर मचाने पर उन बदमाशों ने
मेरे अध्ययन-काल की रचनाएँ ... मेरी तुम परवाह करो ना, पथ टटोल लूँगा अपना, अगर शमा बुझा दोगे तो, परवानों का क्या होगा? शबनम समझा शोलों को भी,अब तक स्वीकार किया है, विश्वासों ने आहें भर लीं, तो अरमानों का क्या होगा? *****
ऐसी गलती प्रशिक्षु IPS अधिकारी से नहीं होती, यदि सही ट्रेनिंग इन्हें मिली होती। दोषपूर्ण प्रशिक्षण ही इस प्रकार के आचरण का जिम्मेदार है कि इस अधिकारी ने रुतबे वाले बड़े आदमियों पर हाथ डालने की जुर्रत कर दी थी। क्यों नहीं पदस्थापन के पहले इनको बताया गया कि समय देखकर ज़माने के हिसाब से अपने विवेक का प्रयोग कर काम करना होगा! क्यों नहीं इन्हें समझाया गया कि ड्यूटी के दौरान अतिउत्साह दिखाना इनको भारी पड़ सकता है! इसी तरह की अपनी दोषपूर्ण कार्यप्रणाली के लिए पूर्व में प्रताड़ित किये गये, दण्डित किये गये अन्य अधिकारियों के दृष्टान्त वाले पाठ इनके पाठ्यक्रम में रखे गये होते तो शायद इन्हें सही ढंग से काम करना आ जाता। व्यावहारिक ज्ञान की कमी के कारण ही इन्हें एपीओ होने का दंड मिला है। इनको कहाँ मालूम था कि सरकारी काम करने के दौरान कई बार अपनी आँखें बंद कर लेनी पड़ती हैं! इन्हें एपीओ करने का आदेश देने वाले अधिकारी, संयुक्त शासन सचिव, जो आज बड़े अधिकारी हैं, ने भी अपनी सरकारी नौकरी के कार्यकाल में न जाने कितनी बार ऐसी स्थितियों को भोगा होगा और अब वह घुट...
कभी दूर का रिश्ता भी नहीं रहा मेरा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से। इस संगठन से जुड़े लोग बतौर आदर्श, देश एवम् हिन्दुत्व के प्रति निष्ठावान हैं, इस धारणा के पोषण के अलावा कभी इनके कार्य-कलापों को जानने-समझने का प्रयास मैंने नहीं किया है। मैं आज कहने जा रहा हूँ संघ के प्रमुख, मोहन भागवत के हालिया बयान के विषय में, जिसने अनावश्यक ही लम्बी-चौड़ी राजनैतिक बहस
हिन्दू-मुस्लिम सौहार्द एवम् सद्भाव कभी नष्ट नहीं हो सकते, चाहे ओबेसी जैसे हजारों कुटिल, जहरीले व्यक्ति दिन-रात ज़हर क्यों न उगलें, जब तक अच्छे दिल वाले, गैरसांप्रदायिक सोच वाले इंसान हमारे भारत देश में मौज़ूद हैं। Hats off !...सलाम...प्रणाम, ऐसी महामना दिव्य विभूतियों को !!