रीजनल कॉलेज में द्वितीय तथा तृतीय वर्ष में अध्ययन के दौरान मैंने दो कहानियां लिखी थीं और दोनों ही वर्षों में अन्तर्महाविद्यालयीय कहानी प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार मिला था मुझे। उसके बाद से लेखन की इस विधा से मेरा नाता टूट ही गया था। अभी दो दिन पहले प्रातः साढ़े चार बजे अचानक मेरी नींद खुल गई और प्रयास करके भी मैं पुनः सो नहीं सका। इसके बाद के प्रातः के दो घंटों में अनायास ही इस कहानी के प्लॉट का ताना-बाना मेरे मस्तिष्क में गुंथ चुका था। कहानी ने सम्पूर्ण आकार ले लिया है और अब इसे मैं अपने प्रिय पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ। ----- "अपने हिस्से का दुःख" लगभग ए...