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Showing posts from January, 2018

अपने हिस्से का दुःख (कहानी)

   रीजनल कॉलेज में द्वितीय तथा तृतीय वर्ष में अध्ययन के दौरान मैंने दो कहानियां लिखी थीं और दोनों ही वर्षों में अन्तर्महाविद्यालयीय कहानी प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार मिला था मुझे। उसके बाद से लेखन की इस विधा से मेरा नाता टूट ही गया था। अभी दो दिन पहले प्रातः साढ़े चार बजे अचानक मेरी नींद खुल गई और प्रयास करके भी मैं पुनः सो नहीं सका। इसके बाद के प्रातः के दो घंटों में अनायास ही इस कहानी के प्लॉट का ताना-बाना मेरे मस्तिष्क में गुंथ चुका था। कहानी ने सम्पूर्ण आकार ले लिया है और अब इसे मैं अपने प्रिय पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ। -----                                                                 "अपने हिस्से का दुःख"                                                   लगभग ए...

डायरी के पन्नों से ... "दो मुक्तक"

मित्रों, प्रस्तुत कर रहा हूँ - दो मुक्तक   मज़ाक कह झुठलाया था, तुमने जिन अहसासों को   प्रिय, वेदना वह प्यार की, पल-पल मुझे सताती है। मैं किसे अपना कहूँ तब, कौन मुझको थाम लेगा? ले दर्द को आगोश में, जब रात चली आती है। *** न आँखें ही होतीं, न ज़ुबां ही होती, राज़ हमारे राज़ ही रहते। निगाहों में उनके नफ़रत न आती, ख़्वाब हमारे ख़्वाब ही रहते।                                                                             *****

डायरी के पन्नों से ... "यह कश्मीर हमारा है"

    देश  के दुश्मनों के विरुद्ध आह्वान है मेरा देश के नौनिहालों से, क्योंकि दिन-ब-दिन सीमा पर जान गंवाने वाले शहीदों का लहू मुझे उद्वेलित करता है, मुझे चैन से सोने नहीं देता। समर्पित है उनको मेरी यह कविता-  "यह कश्मीर हमारा है" कण-कण से आवाज़ उठी है,  'यह कश्मीर  हमारा है।' दया दिखाते दुश्मन को पर,  सीना वज्र भयंकर है। हर बच्ची वीर भवानी है, हर बच्चा शिवशंकर है। जितेन्द्रिय है,अविनाशी है, मृत्युंजय,   प्रलयंकर है। हमने उसे उबार लिया है, जिसने  हमें  पुकारा है।             "कण-कण से... " नहीं कभी हम डिगने वाले, आतंकी  फुफकारों  से। नहीं कभी हम डरने वाले, गोली  की  बौछारों  से। नहीं  कटेंगे वक्ष हमारे, बरछी, तीर, कटारों से। जान लगा देंगेअपनी हम, देश जान से प्यारा है।             "कण-कण से..." कश्मीर को तो भूल ही जा, हम पीओके भी ले लेंगे।  हमारे नन्हे-मुन्ने कल को, ल...

डायरी के पन्नों से ..."कुछ शेर / रुबाइयाँ"

पेश हैं कुछ रचनाएं - अतीत की यादों से ...       *** गैर वाज़िब नहीं कि हर शोखी को, तेरे हुस्न का सरूर कह दें।  कोई जगह नहीं तेरे जिस्म में, जानम, जिसे हम बेनूर कह दें।                                         *** वक़्त  ऐसा  था कि यार  हमने,  ज़र्रे -ज़र्रे  को पुकारा  ग़म से।  जां जो कभी देता था हम पर, किया उसने भी किनारा हमसे।                                       ***

जनता के सब्र का और अधिक इम्तहान न लिया जाए !

     हमारे शहर की फतहसागर झील का शाम से रात तक का आलम इतना खूबसूरत होता है कि पर्यटक तो पर्यटक, शहर के नुमाइन्दों के पैर भी खुद-ब-खुद इसकी ओर चले आते हैं। जैसे अन्य शहरवासी अपनी शाम को खुशनुमां बनाने के लिए यहाँ आते हैं, मैं भी अपने परिवार के साथ अक्सर यहाँ आ जाया करता हूँ। यहाँ चहलकदमी करते हुए जब हमारी आँखें यहाँ के दिलकश नज़ारे को पी रही होती हैं, हवा के मदहोश झौकों से रिदम मिलाती  झील के निर्मल पानी की तरंगों के साथ-साथ उड़ता-मंडराता हमारा मनपंछी वहीं कहीं खो जाता है।      इस स्वप्नलोक से जब अनायास ही हम वास्तविक लोक में लौटते हैं और वहाँ  के जन-समुदाय पर नज़र पड़ती है, तब लोगों के बीच पुलिस विभाग के कुछ सिपाही वहाँ गश्त करते नज़र आते हैं। हठात् मन में एक ख़याल उभर आता है कि इस खूबसूरत जगह पर अपने परिवार के साथ घूमने आने का क्या इन सिपाहियों का मन नहीं करता होगा! इस ख़याल के साथ ही उनके प्रति, उनकी मुस्तैद ड्यूटी के प्रति मन शृद्धा से भर जाता है। यह भी विचार आता है कि ईमानदार व कर्तव्यनिष्ठ पुलिसकर्मियों को यदा-कदा पुरस्कृत भी किया ज...

कुछ लोग वाकई अच्छे होते हैं...

      कुछ लोग वाकई अच्छे होते हैं। ... मेरी नज़रों में वह लोग अच्छे होते हैं जो सड़क पर टू व्हीलर या फोर व्हीलर चलाने के दौरान सौजन्यता दिखाते हुए किसी क्रॉस पर आपको पहले निकल जाने देने के लिए अपनी गाड़ी रोक लेते हैं, किसी कार्यालय के अधिकारी या कर्मचारी जो आपका कोई काम पड़ने पर आपका मुस्करा कर स्वागत करते हैं और यथासम्भव तत्परता के साथ निस्वार्थ भाव से आपका काम कर देते हैं या करने की पूरी कोशिश करते हैं, अपरिचित होते हुए भी कहीं दिख जाने पर या संपर्क में आने पर जो अपने चेहरे पर सहज भाव से हल्की-सी स्मित ले आते हैं ...और अन्य लोग जो ऐसी ही छोटी-छोटी बातों में अपनी सदाशयता प्रदर्शित करते हैं।      नववर्ष के शुभारम्भ में मैं ऐसे समस्त लोगों के सुस्वास्थ्य एवं खुशहाली के लिए जगन्नियता परमेश्वर से कामना करता हूँ और... और उन सभी लोगों के लिए भी जो मेरे उपरोक्त मूल्यांकन में 'अच्छे' की परिभाषा में नहीं आते,  प्रार्थना करता हूँ कि ईश्वर उन्हें सद्बुद्धि दे, अच्छा इंसान बनाये एवं उन्हें भी खुशहाल रखे। आमीन!