Skip to main content

Posts

Showing posts from June, 2014

सही समय, सही कदम.…

    प्रधानमंत्री मोदी जी के द्वारा राजकार्य में मातृभाषा हिंदी के अधिकतम प्रयोग पर बल दिया जाना स्वागत योग्य है। प्रारम्भ में जनता की सुविधा के लिए सम्बंधित क्षेत्र की क्षेत्रीय भाषा में अनुवाद संलग्न किया जाना भी वांछनीय है। कालान्तर में देश-विदेश के मंचों पर मात्र हिंदी का ही प्रयोग अनिवार्य किया जा सकेगा। जिस प्रकार कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष विदेशों में अपनी मातृभाषा का प्रयोग करते हैं व दुभाषिये उसका सम्बंधित देश की भाषा में या अंग्रेजी में रूपान्तरण कर देते हैं, ठीक उसी तरह हम भी हिंदी का प्रयोग अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आसानी से कर सकते हैं। हिंदी को गौरवान्वित करने वाले इस कदम की जितनी भी प्रशंसा की जाये, कम है। हाँ, क्षेत्र-विशेष में क्षेत्रीय भाषा या अंग्रेजी को द्वितीय भाषा के रूप में मान्यता दी जा सकती है। हिंदी का अधिकतम प्रयोग देश को एक सूत्र में बांधे रखने और मात्र क्षेत्रीय सोच की संकीर्णता के उन्मूलन में सहायक होगा। राष्ट्र-भाषा या ऐसा कोई भी मुद्दा जो राष्ट्र-भावना से सम्बन्धित हो, का विरोध करने वाले हर...

फिल्म-जगत क्या दे रहा है...

   फिल्म-जगत के महारथी अपनी फिल्मों के जरिये भारतीय समाज को हिंसा, विभिन्न अपराध करने के नाना प्रकार के गुर और अश्लीलता तो बेतहाशा परोस ही रहे हैं, नई पीढ़ी को असभ्यता और उद्दण्डता सिखाने में भी पीछे नहीं रहना चाहते।    कल ही देखी एक मूवी 'Holiday: A Soldier is never off duty' का उदहारण लें।  नायक अक्षय कुमार अपने परिवार के साथ लड़की देखने जाता है। वहां से लौटते वक्त वह लड़की ( सोनाक्षी सिन्हा ) को नापसन्द करने का कारण बताता है कि लड़की ज़रूरत से ज़्यादा शर्मीली, सीधी और यह है, वह है। अक्षय कुमार की धारणा का खण्डन करने के लिए दूसरे ही दृश्य में उसी लड़की को साड़ी के बजाय स्पोर्ट्स ड्रैस में दिखाया जाता है। लड़की अपनी माता की मौज़ूदगी में पिता से पैसा मांगती है और आनाकानी करने पर उनके गाल पर थप्पड़ जड़ कर उनका वॉलेट निकाल कर ले जाती है।   तो इस तरह लड़की को आधुनिक और बोल्ड बताया जाता है और…और थियेटर में दर्शक ठहाका लगाते हैं। हो गया फिल्म-निर्माता का मकसद पूरा !

अफ़सोस !

 मंडी (कुल्लू-मनाली रोड़) के पास व्यास नदी में बह गए मासूम नौजवान इंजीनियरों ! हर आम आदमी व्यथित है कि एक गैर जिम्मेदाराना इंसानी भूल ने असमय ही तुम्हारी ज़िन्दगी लील ली। इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं, लेकिन प्रश्न है मेरा- 'क्यों कर रहे थे इंजीनियरिंग की पढ़ाई ? क्यों नहीं नेतागिरी को अपना करियर बनाया ?'    व्यास नदी में कहीं बह रही या अटकी तुम्हारी मृत देहों को तलाशने के लिए नदी के किनारे-किनारे खोजक दाल के सदस्य मंथर गति से ढूँढने का दायित्व निभा रहे हैं, कोई एक हेलीकॉप्टर इस कार्य के लिए तुम्हारे निष्प्राण शरीरों को मयस्सर नहीं। यदि माननीय बनने के लिए कहीं चुनावी भाषण देने जा रहे होते तो कई-कई हेलीकॉप्टर तुम्हारी हाज़िरी में बड़े (समर्थ) लोगों द्वारा मुहैया करा दिए गए होते।   

सन्देश-

  जिन नासमझों ने यीशु मसीह का उपहास किया था, उन्हें अपमानित करने का प्रयास किया था, उनको क्षमा करते हुए यीशु ने ईश्वर से यह शब्द कहे थे - " हे परमात्मा तू उन्हें क्षमा करना क्यों कि वह नहीं जानते कि वह क्या कर रहे हैं।"   हम जानते हैं केजरीवाल जी कि आप यीशु नहीं हैं, लेकिन निस्वार्थ भाव से आम आदमी के हितों के लिए लड़ने वाले, अपने सभी ऐशो-आराम छोड़कर भ्रष्टाचार के विरुद्ध जंग छेड़ने वाले और लक्ष्य-प्राप्ति तक जुझारू संघर्ष की ज़िद रखने वाले आप, यीशु से कम भी नहीं हैं।   आप की ओर से हम भी उन सभी नासमझों के लिए जो आपको भगोड़ा, नौटंकी, पल्टू और ऐसे ही अन्य अभद्र विशेषण (उनके शब्दकोष में जो भी उपलब्ध हैं) देने की धृष्टता कर रहे हैं, ईश्वर से वैसी ही प्रार्थना करते हैं।   हमें आप पर और AAP पर बहुत विश्वास है। हमारे विश्वास को जीवित रखते हुए, अपने आत्म-बल को कायम रखते हुए अपनी कुछ भूलों को परिमार्जित कर आप धनात्मक शक्ति के साथ अपने पवित्र उद्देश्य के लिए जुट जाइये। भूलें आपसे हुई हैं क्योंकि आप सीधे-सच्चे इन्सान हैं, कुटिल ...

असमंजस में हूँ …

    अभी तीन-चार दिन पहले मैं अपने एवं मित्र-परिवार के साथ शहर की खूबसूरत झील फतहसागर पर रात्रि लगभग 10 बजे टहल रहा था। अनायास ही झील की पाल के नीचे इधर-उधर घूमते ड्यूटी कर रहे दो पुलिस-कर्मियों पर नज़र पड़ी। विचार आया कि यदि यह लोग अभी ड्यूटी पर नहीं होते तो शायद हमारी ही तरह अपने परिवार के साथ यहाँ टहलने का आनंद ले रहे होते। कैसी जटिल और नीरस ज़िन्दगी है इनकी- यह सोच मन में उनके प्रति करुणामिश्रित सम्मान जाग उठा।    आज लखनऊ में शिक्षकों के द्वारा अपनी मांगों के लिए किये जा रहे आंदोलन के दौरान पुलिस ने जिस अमानवीय तरीके से लाठी-चार्ज किया- वह सब टीवी पर देखा। लग रहा था मानो युद्ध में दुश्मनों पर पूरी शक्ति के साथ आक्रमण किया जा रहा है। हल्के और सांकेतिक प्रहारों से ही उन्हें तितर-बितर करना निश्चित रूप से असंभव नहीं था। इस पुलिसिया क्रूरता के प्रति मन आक्रोश और घृणा से भर उठा।    नहीं समझ पा रहा हूँ कि पुलिस के प्रति किस तरह के भाव को ह्रदय में स्थान दूँ ......