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Showing posts from September, 2013

Posted by me on Facebook...on Dt.18-9-13

हिन्दू हूँ, हिंदुत्व के प्रति समर्पित हूँ, लेकिन अन्य धर्मों एवं धर्मानुयायियों के प्रति पूर्ण आदर-सम्मान रखता हूँ। हिन्दुत्व का अपमान होते नहीं देख सकता, साथ ही हिन्दुओं की पारम्परिक धार्मिक सहिष्णुता का पक्षधर भी हूँ। छद्म धर्म-निरपेक्षता के प्रति घृणा-भाव है मन में और धार्मिक आस्था का दुरुपयोग करने वाले राजनीतिज्ञों को नारकीय कीड़ों की श्रेणी का जीव मानता हूँ मैं।  हिन्दू- महासभा के प्रति भी आदर -भाव है जो हिन्दू होने के कारण होना भी चाहिए, लेकिन ऐसी धार्मिक संस्थाओं के मठाधीश जब अनर्गल बात कह जाते हैं तो मन उद्वेलित हो उठता है। अभी हाल ही तथाकथित संत आसाराम के कुत्सित कृत्यों पर पर्दा डालने का प्रयास करते हुए जब श्री अशोक सिंघल एवं श्री प्रवीण तोगड़िया ने आरोप लगाया कि संतों को बदनाम किया जा रहा है तो दुखद आश्चर्य हुआ। एक मासूम बच्ची का जीवन लगभग नष्ट हो गया है- यह भी नहीं देखा उन्होंने ? स्पष्टतः यह एक ओछी एवं अदूरदर्शी सोच का परिचायक है। होना यह चाहिए कि कपटतापूर्ण हथकण्डों को आधुनिक राजनीतिज्ञों के लिए ही छोड़ दिया जाय और धार्मिक संस्थाएं इससे मुक्त रहें। आ. सिंघल जी ने अभ...

वाह रे प्रजातंत्र --

  मुख्य मंत्री जी (राजस्थान) जनता को बाँट रहे हैं - अस्पतालों में मुफ्त दवाइयां और जांचें (अव्यवस्था से ग्रस्त), मुफ्त सी एफ एल बल्ब, सस्ता अनाज, छात्राओं को मुफ्त लैपटॉप, साइकिलें, छात्रवृत्तियाँ और भी न जाने क्या कुछ। पात्र-अपात्र सभी को मिल रहा है यह सब कुछ और पहचान-भ्रष्टाचार का योगदान पृथक से जुड़ रहा है इसमें। आ. मुख्य मंत्री जी के वेतन से तो निश्चित  ही नहीं बांटा जा रहा यह सब-कुछ। जनता की गाढ़ी कमाई से वसूले गए कर, आदि से अर्जित कोष का सरे-आम दुरूपयोग हो रहा है। निस्संदेह ही ज़रूरतमंद को सुविधा उपलब्ध कराना राजकीय धर्म है, लेकिन राज्य-कोष का अनुचित दोहन वांछनीय नहीं। राज्य-सरकार रोजगार के उपाय करने के विपरीत लोगों में कामचोरी एवं भीख की प्रवृति को जन्म दे रही है।  सन्देह है कि यह सभी अनुदान 'वोट' में तब्दील हो पायेंगे। मैंने लाभ उठाने वाले लोगों में से ही कई लोगों को व्यवस्था का उपहास करते देखा है।                              ...

मेरे शहर की आयड़ नदी...

    आज बहुत दिनों बाद पंचवटी कॉलोनी के पास आयड़ नदी की तरफ से निकलना हुआ। नदी किनारे भीड़ देख कर मैं भी रुक गया। देखा, स्वच्छ पानी से लबालब भरी नदी कल-कल करती बह रही है। मन प्रफुल्लित हो उठा, मुग्ध-भाव से चिर-प्रतीक्षित  इस मनोहारी दृश्य को अविराम निहार रहा हूँ मैं। उदयपुर में रहने वाले सभी नागरिक पिछले कई वर्षों से इस अभागी नदी में गंदे नालों व गटर से गिरते पानी का छिछला प्रवाह ही देखते आये हैं, उस समय के अलावा जब कि शहर की झीलों के ओवरफ्लो का पानी इसमें कुछ चंद दिनों के लिए भर आता है। समस्त प्रशासनिक अमला एवं  चुने हुए जन-प्रतिनिधि जब-तब जनता के समक्ष लुभावने वादे ही करते आये हैं जैसी कि उनकी फितरत है।     मेरे अलावा अन्य लोग भी मुग्ध भाव से इस सुहाने दृश्य को देख रहे हैं। आज अचानक बरसों का सपना सच हुआ देख प्रसन्नता की स्मित सभी की आँखों में झलक रही है। ऐसा लग रहा है, जैसे उदयपुर पेरिस सदृश हो गया है।    अहा! अब इस नदी में कुलांचे भरत...

निर्भया-बलात्कार कांड के अपराधी -

      निर्भया-बलात्कार एवं हत्याकांड के सात अपराधी हैं। चार मुजरिमों को फांसी की सज़ा  दी गई है जिसके विरुद्ध बचाव-पक्ष अपील करने का मानस बना रहा है। हो सकता  है इस सज़ा को नाकाफ़ी मान कर उच्च न्यायालयों द्वारा अधिक कठोर सज़ा दे दी जाये - यथा, इन्हें चौराहे पर खड़ा करके जनता पत्थर मार-मार कर इनका शरीर छलनी कर दे और फिर इनके घायल शरीरों पर नमक-मिर्च तब तक छिडके जब तक चीखते -चीखते इनके प्राण न निकल जाएँ।  एक अपराधी ने कारागृह में आत्म-हत्या कर ली अतः उसके लिए कुछ कहना उचित नहीं होगा।  उसने अपनी सज़ा ख़ुद तजवीज कर ली। नर्क में अपने पाप की सज़ा वह अब भी भुगत रहा होगा।  एक अन्य अपराधी को नाबालिग होने का लाभ देकर कानूनी बाध्यता के कारण तीन वर्ष तक सुधार-गृह में रखने की सज़ा दी गई है। बालिगों वाला अपराध करने वाला, निर्ममता की पराकाष्ठा तक जाने वाला  वह दरिंदा नाबालिग कैसे माना जा सकता है- समझ से परे है यह बात। शादी या मतदान के मापदंड के आधार पर भले ही बालिग कहलाने की उम्र 18 वर्ष मानी जाये और इसे संशोधित नहीं कि...

"सिंघम"

 अभी स्टार प्लस पर फिल्म 'सिंघम' प्रदर्शित की जा रही थी  और मैं मंत्र-मुग्ध इसे देख रहा था। चार बार इस फिल्म को पहले भी देख चुका हूँ। अभी कुछ देर पहले पुलिस इंस्पेक्टर सिंघम और उसके अधीनस्थों द्वारा एक भृष्ट मंत्री की पिटाई होते देखा और ख़ुशी से मन प्रफुल्लित हो गया। एक क्षण के लिए भूल गया था कि मैं फिल्म देख रहा हूँ।  वास्तविक पुलिस में सिंघम जैसे ईमानदार अफसर हैं कहाँ और जो हैं वह तन से भले ही शाक्तिशाली हों, मन से बहुत ही कमज़ोर हैं। उनमें इतना साहस नहीं कि किसी भी राजनीतिज्ञ, चाहे वह कितना ही भृष्ट हो- के विरुद्ध आँख उठा सकें। अब तो विधानसभा और संसद में गुंडे-मवालियों के प्रवेश को लोकसभा में पक्ष और विपक्ष ने एकमत हो विधि-सम्मत करवा लिया है। सुप्रीम कोर्ट पर कार्य-पालिका ने अपनी महत्ता बना ली है फलतः पुलिस-विभाग और भी पंगु  होने वाला है। आमजन और न्याय-प्रणाली का भगवान  ही रक्षक है। एक बात फिल्म के अंतिम भाग में निराश मन को सान्त्वना दे गई कि सिंघम के हर कदम को बाधित करने वाले एक...