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संदेश

क्या ईश्वर है?

क्या ईश्वर की सत्ता और उसके अस्तित्व के प्रति मन में संदेह रखना बुद्धि का परिचायक है? ईश्वर की सत्ता को नकारने वाला, कुतर्क युक्त ज्ञानाधिक्यता से ग्रस्त व्यक्ति वस्तुतः कहीं निरा जड़मति तो नहीं होता? आइये, विचार करें इस बिंदु पर।  मैं कोई नयी बात बताने नहीं जा रहा, केवल उपरोक्त विषय पर अपने विचार व्यक्त करना चाहता हूँ। हम जीव की उत्पत्ति से विचार करना प्रारम्भ करेंगे। इसे समझने के लिए हम मनुष्य का ही दृष्टान्त लेते हैं।  एक डिम्बाणु व एक शुक्राणु के संयोग से मानव की उत्पत्ति होती है। बाहरी संसार से पृथक, माता के गर्भ में एक नया जीवन प्रारम्भ होता है। जीव विज्ञान उसके विकास को वैज्ञानिक रूप से परिभाषित तो करता है, किन्तु जीवन प्रारम्भ होने के साथ भ्रूण का बनना और उससे शिशु के उद्भव की प्रक्रिया जितनी जटिल होती है, इसे पूर्णरूपेण स्पष्ट नहीं कर सकता। शिशु का रूप लेते समय विभिन्न अंगों की उत्पत्ति व उनका विकास प्रकृति का गूढ़ रहस्य है। शिशु के हाथ वाले स्थान पर हाथ निर्मित होते हैं व पाँव वाले स्थान पर पाँव। आँखें, कान व नाक भी चेहरे पर ही बनते हैं, किसी अन्य स्थान पर नहीं। यदि प्राणी जगत

इंसानियत की कीमत (लघुकथा)

            शाम का वक्त था। मनसुख बैसाखी एक तरफ रख कर सड़क के किनारे दूब पर बैठ गया। उसे यहाँ सुकून तो मिला ही, साथ ही उसे यह उम्मीद भी थी कि शाम को यहाँ आने वाले लोगों से कुछ न कुछ मिल भी जायगा। दिन भर वह समीपस्थ भीड़-भाड़ वाले बाज़ार में था, लेकिन उसे अब तक भीख में मात्र तीन-चार रुपये मिले थे। यहाँ दूसरी तरफ सड़क थी तो इस तरफ चार-पांच फीट मुलायम दूब वाले भाग के बाद चार फीट का फुटपाथ व उससे लगी हुई छोटी-बड़ी दुकानें थीं। इन दुकानों पर आने वाले ग्राहक सामान्यतया सम्पन्न वर्ग के लोग हुआ करते थे। यह छोटा-सा बाज़ार शहर के सबसे पॉश इलाके के पास स्थित था। नगरपालिका ने विशेष रूप से इस बाज़ार की रूपरेखा तैयार की थी।  यहाँ आने के बाद कुछ लोग उसके पास से गुज़रे भी और उसने मांगने के लिए उनके समक्ष हाथ भी फैलाया, किन्तु वह लोग  उसके कोढ़-ग्रस्त बदन पर एक हिकारत भरी नज़र डाल कर दूर हटते हुए आगे बढ़ गये। वह पहले भी कई बार परमात्मा को कोस चुका था और आज फिर उसने शिकायत की कि लंगड़ा तो उसे बना ही दिया था, उसे कोढ़ देने के बजाय दूसरी टांग भी ले लेते, तो ही ठीक था। उससे नफ़रत न करके कुछ लोग तो उसे कुछ दे जाते। सुबह से

फेल होने की मिठाई (लघुकथा)

बच्चों की अंकतालिका देने के लिए सभी अभिभावकों को स्कूल में बुलाया गया था। अतः शिवचरण भी अपने बेटे राजीव के स्कूल पहुँचे। आज स्कूल में छोटी कक्षाओं के बच्चों का परीक्षा-परिणाम घोषित किया जाने वाला था।  शिवचरण अपने बच्चे का परीक्षा-परिणाम पहले से ही जानते थे और इसीलिए उदास निगाह लिये प्रधानाध्यापक के कक्ष में पहुँचे। प्रधानाध्यापक ने उनका स्वागत किया और वहां पर बैठे अन्य  सभी अभिभावकों के साथ उन्हें भी स्कूल के मैदान में पहुँचने के लिए कहा गया।  एक माह पूर्व राजीव के सिर में बहुत तेज दर्द हुआ था और एक प्रतिष्ठित डॉक्टर के क्लिनिक में जाँच कराने पर पता चला था कि बच्चे के मस्तिष्क में कैंसर है, जो तीसरी स्टेज में है। शिवचरण एक प्राइवेट स्कूल में लिपिक थे जहाँ से प्राप्त हो रहे वेतन से बामुश्किल परिवार का गुज़ारा होता था। राजीव का कोई महँगा इलाज करना उनके बस की बात नहीं थी, सो एक वैद्य की सलाह से वह राजीव को काली तुलसी का रस और जवारे का रस पिला कर जैसे-तैसे राजीव का इलाज करने का टोटका कर रहे थे। साथ ही वह और उनकी पत्नी ईश्वर से राजीव के जीवन के लिए दिन-रात प्रार्थना करते थे। राजीव को उन्होंन

परिमार्जन (कहानी)

                                               (1) मुश्ताक अली ने कुछ वर्षों की नौकरी से अच्छी बचत राशि एकत्र कर ली थी। अब वह अपनी नौकरी छोड़ कर कोई व्यवसाय शुरू करना चाहते थे। संयोग से उनकी मुलाकात एक व्यावसायिक मेले में वीर प्रताप सिंह नामक एक व्यवसायी से हुई। प्रारम्भिक परिचय, आदि के बाद मुश्ताक अली ने बात ही बात में जाहिर किया कि वह कोई व्यवसाय शुरू करना चाहते हैं और किसी व्यवसाय को सुचारु रूप से चलाने का गुर सीखने के इच्छुक हैं। परिचय की प्रक्रिया में ही वीर प्रताप ने भी उन्हें बताया कि उनका 'नूतन प्लास्टिक इंडस्ट्रीज़' नाम से पाइप-निर्माण का व्यवसाय है और औद्योगिक क्षेत्र स्थित उनकी फ़ैक्ट्री में ही फर्म का ऑफिस है। औपचारिकतावश वीर प्रताप ने उन्हें अपना परिचय कार्ड देकर अपनी फ़ैक्ट्री पर आने का निमंत्रण भी दिया। अगले ही दिन मुश्ताक अली नूतन प्लास्टिक इंडस्ट्रीज़ के ऑफिस पहुँच गए। कुछ औपचारिक बातों के बाद मुश्ताक अली ने उनकी फ़ैक्ट्री देखने की इच्छा व्यक्त की। वीर प्रताप ने अपने मैनेजर को साथ भेज कर उन्हें अपनी फ़ैक्ट्री विज़िट करवाई। मुश्ताक अली ने फ़ैक्ट्री से लौटने के बाद वीर प