Skip to main content

फेल होने की मिठाई (लघुकथा)



बच्चों की अंकतालिका देने के लिए सभी अभिभावकों को स्कूल में बुलाया गया था। अतः शिवचरण भी अपने बेटे राजीव के स्कूल पहुँचे। आज स्कूल में छोटी कक्षाओं के बच्चों का परीक्षा-परिणाम घोषित किया जाने वाला था।  शिवचरण अपने बच्चे का परीक्षा-परिणाम पहले से ही जानते थे और इसीलिए उदास निगाह लिये प्रधानाध्यापक के कक्ष में पहुँचे। प्रधानाध्यापक ने उनका स्वागत किया और वहां पर बैठे अन्य  सभी अभिभावकों के साथ उन्हें भी स्कूल के मैदान में पहुँचने के लिए कहा गया। 


एक माह पूर्व राजीव के सिर में बहुत तेज दर्द हुआ था और एक प्रतिष्ठित डॉक्टर के क्लिनिक में जाँच कराने पर पता चला था कि बच्चे के मस्तिष्क में कैंसर है, जो तीसरी स्टेज में है। शिवचरण एक प्राइवेट स्कूल में लिपिक थे जहाँ से प्राप्त हो रहे वेतन से बामुश्किल परिवार का गुज़ारा होता था। राजीव का कोई महँगा इलाज करना उनके बस की बात नहीं थी, सो एक वैद्य की सलाह से वह राजीव को काली तुलसी का रस और जवारे का रस पिला कर जैसे-तैसे राजीव का इलाज करने का टोटका कर रहे थे। साथ ही वह और उनकी पत्नी ईश्वर से राजीव के जीवन के लिए दिन-रात प्रार्थना करते थे। राजीव को उन्होंने नहीं बताया था, लेकिन उसने अपने मम्मी-पापा को बात करते एक दिन सुन लिया था और फिर उसने पूछा था- "पापा-मम्मी, क्या सचमुच मैं मर जाऊँगा? मैंने सुना है कैंसर से लोग मर जाते हैं।" 

उसकी मम्मी ने उसके मुँह पर हाथ रख कर अपने सीने से लगा लिया था- "ना बेटा, ऐसा मत बोल। मरें तेरे दुश्मन। तुझे हम कुछ नहीं होने देंगे।" ...और रो पड़ी थीं वह। दोनों पति-पत्नी मान कर चल रहे थे कि बच्चा हाथ से निकल जायगा, सो वह उसे अधिक से अधिक अपनी आँखों के सामने रखना चाहते थे। उन्होंने पंद्रह दिन तक के लिए बच्चे को स्कूल से छुट्टी लिवा ली थी और फिर सीधे ही इम्तहान के लिए स्कूल भेजने लगे थे। साल भर कितनी भी पढ़ाई कर ले बच्चा, लेकिन इम्तहान से ठीक पहले उसे रिविज़न कराना आवश्यक होता है। अपने रोग के बारे में जान जाने से भयातुर राजीव अवसाद की स्थिति में तो था ही, रिविज़न भी ठीक से नहीं कर पाया था, अतः उसके पर्चे अच्छे नहीं हुए थे। 


स्कूल के मैदान में स्टेज के पास बच्चों को उनके अभिभावक के साथ बुला कर उनकी अंकतालिका देते हुए उनके सम्बन्धित कक्षाध्यापक ऊँचे स्वर में परीक्षा का परिणाम भी उच्चारित कर रहे थे। राजीव का भी परीक्षा-परिणाम सुनाया गया। जैसा कि अंदेशा था, वह अनुत्तीर्ण घोषित किया गया। शिवचरण अंकतालिका ले कर सिर झुकाये अपनी सीट की तरफ बढ़ रहे थे कि एक चपरासी ने स्टेज पर मौज़ूद एक अध्यापक को कुछ सूचना दी। उस अध्यापक ने शिवचरण के नाम की उद्घोषणा करते हुए कहा कि स्कूल के गेट पर खड़ा कोई व्यक्ति उनसे मिलना चाहता है।   


शिवचरण गेट की तरफ गये, किसी व्यक्ति से मिलने के बाद एक बैग के साथ वापस लौटे। राजीव के पास जाकर  उन्होंने उसे प्यार से ऊपर उठा कर अपने सीने से लगाया, चूमा और आकर अपनी सीट पर बैठ गए। कक्षा के सभी बच्चों की अंकतालिका वितरित हो जाने के बाद शिवचरण ने प्रधानाध्यापक के पास जाकर कुछ कहा। प्रधानाध्यापक पहले तो कुछ चौंके और फिर शिवचरण से दस हज़ार रुपये प्राप्त कर चपरासी से मिठाई मंगवाई और सामने बैठे सभी छात्रों व उनके अभिभावकों को सम्बोधित कर कहा- "सभी लोग कृपया अपने स्थान पर बैठे रहें। किसी ख़ुशी में हमारे एक छात्र राजीव के पिता श्री शिवचरण सभी को मिठाई खिलाना चाहते हैं।"

सब लोग विस्मय से शिवचरण को देखने लगे कि बच्चा तो फेल हुआ है और यह महाशय मिठाई खिला रहे हैं। 


मिठाई आने पर शिवचरण को  बुलाया गया। वह अपनी सीट से उठ कर स्टेज की तरफ जा रहे थे कि उन्हें एक धीमी-सी आवाज़ में सुनाई दी। कोई कह रहा था- "हाँ भाई जाओ, बच्चे के फेल होने की ख़ुशी में सब को मिठाई खिलाओ।"

शिवचरण ने इस व्यंग्य-वाक्य की परवाह नहीं की और आगे बढ़ गये। 

माइक के पास जाकर उन्होंने औपचारिक उद्बोधन के बाद कहा- "आप सभी को आश्चर्य तो हो रहा होगा कि अपने बेटे राजीव के फेल होने के बावज़ूद मैं  मिठाई खिला रहा हूँ, लेकिन बताना चाहता हूँ कि मेरा बेटा अब तक प्रथम श्रेणी में पास होता रहा है। उसके फेल होने का मुझे दुःख नहीं है, क्योंकि वह पढाई नहीं कर सका था।' 

उन्होंने राजीव के सम्बन्ध में सारी बात विस्तार से बताते हुए कहा- 'हम बहुत निराश हो चुके थे। आज अचानक राजीव की जांच करने वाले डॉक्टर ने आकर मुझे बताया कि मेरे बेटे के एक्सरे वाली फिल्म एक दूसरे बच्चे से बदल गई थी, जिसे कैंसर था। मेरे बेटे को कोई रोग नहीं है। डॉक्टर ने अपने टेक्नीशियन की ग़लती के कारण मुझे दी गई ग़लत सूचना के लिए मेरे पाँव छूकर मुझसे माफ़ी मांगी और प्रायश्चित स्वरूप एक लाख रुपया मुझे दिया। उस दूसरे बच्चे की हालत ख़राब हो जाने से मुम्बई में उसका पूरा इलाज भी वही डॉक्टर अपने  खर्चे से करा रहा है।'

कुछ क्षण रुक कर शिवचरण ने अपनी बात पूरी की- 'जो हुआ सो हुआ, अब तो अपने बेटे की सही स्थिति जान कर ख़ुशी मेरे दिल में समा नहीं रही है। मैं बहुत खुश हूँ। आज मैं भी पास हो गया हूँ और मेरा बेटा भी डिस्टिंक्शन से पास हो गया है। यह मिठाई इसी ख़ुशी में है। कृपया मेरे बेटे को आशीर्वाद दें।"


उपस्थित सभी लोगों ने शिवचरण को बधाई देते हुए तालियों की बौछार कर दी। राजीव तब तक आकर अपने पिता से लिपट गया था। 


 --: समाप्त :--








Comments

  1. आदरनीय सर,हमेशा की तरह बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण लघुकथा लिखी है आपने।पढ़ाई में अनुतीर्ण लेकिन जीवन की परीक्षा में सफल बेटे के लिए एक पिता ने वही किया जो एक स्नेही पिता को करना चाहिए।मिठाई बांटकर एक नये अंदाज में उन्होने बेटे का हौसला और अपनी खुशी दोनों को बढ़ाया।डॉक्टर ने भी अपनी गलती स्वीकार,उसका प्रायश्चित कर मानवता की मिसाल प्रस्तुत की।एक सन्वेदशील रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं 🙏🙏🌺🌺

    ReplyDelete
    Replies
    1. सुन्दरतम समीक्षा के लिए आभार महोदया रेणु जी!

      Delete
  2. सवधानी जरुरी है कुछ समय का समय ही बच्चे की मानसिकता कितनी प्रभावित होती है माता-पिता का तो मरण हो जाता है। फिर एक शब्द होता है माफ़ी...
    हृदयस्पर्शी कहानी अंत तक पाठक को बाँधती।
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. अंतस्तल से आभार महोदया!

      Delete
  3. वाह!बहुत ही खूबसूरत सृजन ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. तहेदिल से शुक्रिया शुभा जी

      Delete
  4. सुंदर रचना आदरणीय ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद बंधुवर

      Delete

Post a Comment

Popular posts from this blog

बेटी (कहानी)

  “अरे राधिका, तुम अभी तक अपने घर नहीं गईं?” घर की बुज़ुर्ग महिला ने बरामदे में आ कर राधिका से पूछा। राधिका इस घर में झाड़ू-पौंछा व बर्तन मांजने का काम करती थी।  “जी माँजी, बस निकल ही रही हूँ। आज बर्तन कुछ ज़्यादा थे और सिर में दर्द भी हो रहा था, सो थोड़ी देर लग गई।” -राधिका ने अपने हाथ के आखिरी बर्तन को धो कर टोकरी में रखते हुए जवाब दिया।  “अरे, तो पहले क्यों नहीं बताया। मैं तुमसे कुछ ज़रूरी बर्तन ही मंजवा लेती। बाकी के बर्तन कल मंज जाते।” “कोई बात नहीं, अब तो काम हो ही गया है। जाती हूँ अब।”- राधिका खड़े हो कर अपने कपडे ठीक करते हुए बोली। अपने काम से राधिका ने इस परिवार के लोगों में अपनी अच्छी साख बना ली थी और बदले में उसे उनसे अच्छा बर्ताव मिल रहा था। इस घर में काम करने के अलावा वह प्राइमरी के कुछ बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाती थी। ट्यूशन पढ़ने बच्चे उसके घर आते थे और उनके आने का समय हो रहा था, अतः राधिका तेज़ क़दमों से घर की ओर चल दी। चार माह की गर्भवती राधिका असीमपुर की घनी बस्ती के एक मकान में छोटे-छोटे दो कमरों में किराये पर रहती थी। मकान-मालकिन श्यामा देवी एक धर्मप्राण, नेक महिल...

तन्हाई (ग़ज़ल)

मेरी एक नई पेशकश दोस्तों --- तन्हाई मौसम बेरहम देखे, दरख़्त फिर भी ज़िन्दा है, बदन इसका मगर कुछ खोखला हो गया है।   बहार आएगी कभी,  ये  भरोसा  नहीं  रहा, पतझड़ का आलम  बहुत लम्बा हो गया है।   रहनुमाई बागवां की, अब कुछ करे तो करे, सब्र  का  सिलसिला  बेइन्तहां  हो  गया  है।    या तो मैं हूँ, या फिर मेरी  ख़ामोशी  है यहाँ, सूना - सूना  सा   मेरा   जहां  हो  गया  है।  यूँ  तो उनकी  महफ़िल में  रौनक़ बहुत है, 'हृदयेश' लेकिन  फिर भी तन्हा  हो गया है।                          *****  

दलित वर्ग - सामाजिक सोच व चेतना

     'दलित वर्ग एवं सामाजिक सोच'- संवेदनशील यह मुद्दा मेरे आज के आलेख का विषय है।  मेरा मानना है कि दलित वर्ग स्वयं अपनी ही मानसिकता से पीड़ित है। आरक्षण तथा अन्य सभी साधन- सुविधाओं का अपेक्षाकृत अधिक उपभोग कर रहा दलित वर्ग अब वंचित कहाँ रह गया है? हाँ, कतिपय राजनेता अवश्य उन्हें स्वार्थवश भ्रमित करते रहते हैं। जहाँ तक आरक्षण का प्रश्न है, कुछ बुद्धिजीवी दलित भी अब तो आरक्षण जैसी व्यवस्थाओं को अनुचित मानने लगे हैं। आरक्षण के विषय में कहा जा सकता है कि यह एक विवादग्रस्त बिन्दु है। लेकिन इस सम्बन्ध में दलित व सवर्ण समाज तथा राजनीतिज्ञ, यदि मिल-बैठ कर, निजी स्वार्थ से ऊपर उठ कर कुछ विवेकपूर्ण दृष्टि अपनाएँ तो सम्भवतः विकास में समानता की स्थिति आने तक चरणबद्ध तरीके से आरक्षण में कमी की जा कर अंततः उसे समाप्त किया जा सकता है।  दलित वर्ग एवं सवर्ण समाज, दोनों को ही अभी तक की अपनी संकीर्ण सोच के दायरे से बाहर निकलना होगा। सवर्णों में कोई अपराधी मनोवृत्ति का अथवा विक्षिप्त व्यक्ति ही दलितों के प्रति किसी तरह का भेद-भाव करता है। भेदभाव करने वाला व्यक्ति निश्चित रूप स...