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संदेश

कोरोना-हाइकू

  कोरोना-हाइकू   मौत तबाही  जल रही दुनिया  चाइना खुश        *** किट नाकारे  डॉक्टर परेशान  बेबस रोगी        *** भरे गोदाम  कौन करे व्यवस्था  भूखा ग़रीब        *** दृढ विश्वास  हरायेंगे कोरोना  लोग निडर        *** कोरोना ख़त्म  दुनिया खुशहाल  चाइना फुस्स        ***       

भुतहा सड़क का रहस्य (कहानी)

                                                                                                                      अगस्त माह का प्रथम सप्ताह था। शहर में लॉक डाउन खत्म होने के बाद अचानक मिले एक प्राइवेट केस से निवृत होने के बाद प्राइवेट डिटेक्टिव रमेश रंजन शर्मा ने चैन की साँस ली थी। वह बुरी तरह उलझे हुए उस केस को सुलझाने के बाद तफ़री से अपना मूड ठीक करने के उद्देश्य से अपने मित्र आशुतोष खन्ना के यहाँ आया हुआ था। आशुतोष दूसरे शहर इंटोला में रहता था जो रमेश के अपने शहर विवेकपुर से क़रीब 205 कि.मी. की दूरी पर था। इंटोला प्रकृति की गोद में बसा एक खूबसूरत क़स्बा था। इंटोला के आस-पास की वादियों में भ्रमण और फिर अपने इस करीबी दोस्त का साथ पा कर तथा भाभी (मित्र की पत्नी) के हाथ की लज़्ज़तदार डिशेज़ खा कर रमेश का मन प्रफुल्लित हो गया था। यहाँ आये तीन दिन हो गए थे, सो आज वापस लौटने का उसका मन हो गया।   "अभी रात को क्यों निकल रहे हो यार, कल सुबह चले जाना।" -मित्र ने सलाह दी।  "नहीं दोस्त, अब मूड बन गया है तो निकल ही जाने दो।" -मुस्करा कर रमेश बोला।    वहाँ से विदा

आरज़ू

 मेरे जन्मदिवस (5, मई) पर प्रभु से मेरी आरज़ू --- रोटी मिले, कपड़ा मिले, छत मिले हर एक सिर को, माथे पर हर इन्सां के,  सुकूं  बेशुमार चाहिए। प्यार हो हर एक दिल में, नफरत कहीं उपजे नहीं, रब, मेरे जन्मदिन पर, बस यही उपहार चाहिए। 

आखिर कब तक ? (कहानी)

   "पापा मैं दो घंटे में ज़रूर लौट आऊँगी। मेरी कुछ फ्रेंड्स मुझे अलग से बर्थडे ट्रीट दे रही हैं। वहाँ से लौट कर मैं अपने घर के फंक्शन में शामिल हो जाऊँगी।… प्लीज़ पापा!... मम्मी, पापा को बोलो न, मुझे परमिशन दे दें।" -धर्मिष्ठा ने आजिज़ी करते हुए कहा।   "अरे बेटा, नहीं मानती तो जा आ। लेकिन देख, अपने रिश्तेदारों और तेरी फ्रैंड्स के अलावा मेरे स्कूल-स्टाफ से एक मित्र भी सपरिवार आ रहे हैं। अभी चार बज रहे हैं, छः बजे तक हर हालत में आ जाना। तब तक तेरी मम्मी और मैं पार्टी की व्यवस्था देखते हैं।" -धर्मिष्ठा के अध्यापक पिता प्रथमेश जी ने उसका कन्धा थपथपाते हुए प्यार से कहा।   धर्मिष्ठा कुलांचे भरती हुई अर्चना के घर पहुँची। अर्चना उसकी घनिष्ठ सहेली थी तथा कॉलेज में उसके साथ ही फर्स्ट ईयर में पढ़ती थी। उसके पापा बैंक में क्लर्क थे। अर्चना ने सजी-धजी धर्मिष्ठा को देखा तो देखती ही रह गई, बोली- "क़यामत ढा रही हो जान! आज तो यह बिजली कहीं न कहीं गिर कर ही रहेगी।” 'धत्त' कहते हुए धर्मिष्ठा ने उसके गाल पर हलकी-सी चपत लगाई। “अंकल-आंटी कहाँ हैं? उनसे भी मिल

रहम (लघुकथा)

      नरीमन ने जेरेन को बुला कर खिड़की से बाहर सड़क के उस पार देखने को कहा और बोली- "देखो तो उस बेरहम को।"    जेरेन ने देखा, सामने एक किशोरवय लड़का मिट्टी में गिरे पड़े एक छोटे बकरे पर एक नुकीले पत्थर से बार-बार प्रहार कर रहा था। बकरे का जिस्म जगह-जगह से कट-फट गया था।   जेरेन ने ज़ोर से आवाज़ लगा कर उस लड़के को फटकारा- "अबे, क्यों इस बेरहमी से मार रहा है उसे? देख क्या हालत हो गई है उसकी? मरने वाला है वह, छोड़ उसे।", कह कर जेरेन नीचे उतर कर उनके पास गया।  "यह उस चबूतरे पर बनी देवता की मूर्ति के पास जा कर रोज़ गन्दगी करता है। आज पकड़ में आया है, खबर ले ली है मैंने इसकी।" -लड़का यह कह कर वहाँ से चला गया।   इसी बीच वहाँ आ गई नरीमन से जेरेन ने कहा- "देखा तुमने उस बेवकूफ को! यह मासूम जानवर क्या इतना समझता है कि गन्दगी कहाँ करे, कहाँ न करे।"   ... और जेरेन व नरीमन उस बकरे को गोद में ले कर घर ले आये, उसके घावों से मिट्टी हटा कर अच्छी तरह धो-पोंछ कर उसे प्यार से सहलाया व एक कोने में लिटा दिया।    मुस्कराते हुए नरीमन जेरेन से कह रही थी- "लॉक डा