धर्म-निरपेक्षता को सभी राजनैतिक दल अपने-अपने ढंग से परिभाषित करते रहे हैं। आज कोई भी दल ऐसा नहीं है जो धर्म और जाति के उन्माद को अपनी सफलता की सीढ़ी बनाने से परहेज रखता हो, तिस पर दावा प्रत्येक के द्वारा यही किया जाता है कि एक मात्र वही दल धर्म-निरपेक्षता का हिमायती है। इनके स्वार्थ की वेदी पर धर्म, सत्य और विश्वास,यहाँ तक कि मानवता की भी बलि चढ़ा दी गई है। कुछ जिम्मेदार किस्म का मीडिया, देश-समाज के प्रबुद्ध-जन और सुलझे हुए चंद राजनीतिज्ञ कितना ही क्यों न धिक्कारें, वर्त्तमान निर्लज्ज राजनेताओं के कानों पर जूं नहीं रेंगती। अभी हाल ही श्रीमती सोनिया गांधी ने मुस्लिम धार्मिक नेता बुखारी से संपर्क कर मुस्लिम समुदाय का समर्थन कॉन्ग्रेस के पक्ष में चाहा। क्या कॉन्ग्रेस का हिन्दू मतदाता इस कारण कॉन्ग्रेस से विमुख नहीं होगा ? इसी तरह जब बीजेपी हिंदुओं के ध्रुवीकरण की दिशा में काम करती है तो क्या मुस्लिम मतदाता उससे विमुख नहीं होगा ? यह कैसी राजनीति है जिसमे दोनों सम्प्रदायों के मध्य खाई खोदने का काम दोनों हो दलों के नेता निरंतर किये जा रहे हैं। इसका कैसा भयावह परिणाम होगा, इसका क्य