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'मेरी कालजयी रचना' (लेख/कविता)

                         फेसबुक में एक परम्परा है, ‘तू मेरी पोस्ट लाइक कर, मैं तेरी पोस्ट लाइक करूँ’...और इसी परम्परा का निर्वाह अधिकांश लोग करते हैं। यदि आपने कई लोगों की पोस्ट लाइक की हैं, तो आपकी कचरा-पोस्ट को भी तीन अंकों में (सैकड़ों) लाइक्स और प्यारे-प्यारे कमैंट्स मिल जाएँगे और यदि कहीं आप व्यस्ततावश या किसी अन्य कारण से लोगों की पोस्ट लाइक करने से चूक गए, तो आपकी दमदार पोस्ट को भी लाइक्स का सूखा झेलना पड़ेगा। जी हाँ, मेरी साफ़गोई के लिए मुझे मुआफ़ करें, लेकिन हक़ीकत यही है।     तो जनाब, यही वह वज़ह है कि पान की दूकान पर खड़े-खड़े अफलातूनी तुकबन्दी करने वाले सूरमा जब ‘कवि’ कहलाने के शौक से दो-तीन बेतुकी पंक्तियाँ फेसबुक पर चिपका देते हैं तो ‘वाह-वाह’, ‘क्या बात है’, ‘क्या लिखा है’, ‘बहुत खूब’, जैसे जुमलों की बख्शीश फेसबुकिये दोस्तों की तरफ से मिल जाती है।    जब ऐसे हालात नज़र आते हैं और क़ाबिलेबर्दाश्त नहीं रहते, तो देखने-पढ़ने वालों को झुंझलाहट तो होगी ही (जो क़ायदे से नहीं होन...

"ऐसा क्यों" (लघुकथा)

                                   “Mother’s day” के नाम से मनाये जा रहे इस पुनीत पर्व पर मेरी यह अति-लघु लघुकथा समर्पित है समस्त माताओं को और विशेष रूप से उन बालिकाओं को जो क्रूर हैवानों की हवस का शिकार हो कर कभी माँ नहीं बन पाईं, असमय ही काल-कवलित हो गईं। ‘ऐसा क्यों’ आकाश में उड़ रही दो चीलों में से एक जो भूख से बिलबिला रही थी, धरती पर पड़े मानव-शरीर के कुछ लोथड़ों को देख कर नीचे लपकी। उन लोथड़ों के निकट पहुँचने पर उन्हें छुए बिना ही वह वापस अपनी मित्र चील के पास आकाश में लौट आई। मित्र चील ने पूछा- “क्या हुआ,  तुमने कुछ खाया क्यों नहीं ?” “वह खाने योग्य नहीं था।”- पहली चील ने जवाब दिया। “ऐसा क्यों?” “मांस के वह लोथड़े किसी बलात्कारी के शरीर के थे।” -उस चील की आँखों में घृणा थी।              **********

टुकड़ा-टुकड़ा बादल (कहानी)

               वही शाम का वक्त था, सूर्यास्त होने में अभी कुछ देर थी और मैं रोज़ाना के अपने नियम के अनुसार फतहसागर झील की पाल पर टहल रहा था। मन्द-मन्द चल रही हवा झील के पानी में धीमा-धीमा स्पन्दन उत्पन्न कर रही थी। कभी मैं झील की सतह पर प्रवाहित लहरों को निहार लेता था तो कभी मेरी नज़र पाल के किनारे बनी पत्थर की बैन्च पर बैठ गप-शप कर रहे लोगों पर पड़ जाती थी। मैं अपनी दिन-भर की थकान व दुनियादारी के तनाव से मुक्ति पाने के लिए यहाँ टहलने आता था, सेहत बनाने के लिए तेज़ रफ़्तार से वॉकिंग करना मेरा उद्देश्य कतई नहीं था। वैसे भी मैं छरहरी कद-काठी का इन्सान हूँ सो मेरी समझ से मुझे अधिक स्वास्थ्य-चेतना की ज़रुरत नहीं थी।          तो आज भी यूँ ही टहल रहा था कि एक बैन्च पर एकाकी बैठी एक महिला पर मेरी नज़र पड़ी। उस महिला का चेहरा देख कर ऐसा लगा जैसे उसे कहीं देखा है। दिमाग पर ज़ोर लगाकर कुछ याद करने की कोशिश करता, इसके पहले ही मैं कुछ आगे निकल चुका था। उसे पहचानने के लिए तुरत...

विक्रम और बेताल (कहानी)

                                                                    "विक्रम और बेताल"     विक्रम के पापा का स्थानांतरण गोविन्दगढ़  में हो गया था। ग्यारहवीं कक्षा (विज्ञान) में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ था विक्रम। एक सप्ताह पूर्व ग्रीष्मावकाश समाप्त हो गये थे। शहर के हायर सेकेंडरी स्कूल में 12 वीं कक्षा में उसका दाखिला हो गया। हाज़िरी लेते समय कक्षाध्यापक जी ने परम्परागत रूप से नवागंतुक छात्रों से परिचय पूछा तो विक्रम ने भी अपना परिचय दिया- '' मेरा नाम विक्रम शर्मा है। मेरे पापा का ट्रान्सफर नवलगढ़ से यहाँ हो जाने से दो दिन पहले ही इस शहर में आया हूँ। ''   पीरियड ख़त्म होने पर पिछली पंक्ति में बैठा एक लड़का उठकर उसके पास आया- '' हेल...