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खिदमत (कहानी)

(1)    कुछ असामाजिक गतिविधियों के चलते सांप्रदायिक दंगा हो जाने के कारण शहर में दो दिन तक कर्फ्यू रहने के बाद पिछले तीन दिनों से धारा 144 लगी हुई थी। प्रशासन की तरफ से किसी भी खुराफ़ात या दंगे से निपटने के लिए माकूल व्यवस्था की गई थी। शहर में हर घंटे-दो घंटे में सायरन बजाती पुलिस और प्रशासन की जीपें व कारें सड़क पर दौड़ रही थीं।  रात के नौ बज रहे थे। मनसुख शर्मा की तबीयत आज कुछ ठीक नहीं थी। बिस्तर पर अधलेटे पड़े वह अपनी पत्नी मनोरमा के साथ टीवी पर आज की ख़बरें देख रहा था। बेटा उदित और बिटिया अलका दूसरे कमरे में बैठे कैरम खेल रहे थे। किसी के द्वारा ज़ोर से दरवाज़ा खटखटाया जाने पर मनसुख देखने के लिए बरामदे से हो कर दरवाज़े की तरफ जा रहां था कि मनोरमा ने टोका- "देखो, सावधान रहना। रात का समय है, कोई गुंडा-बदमाश ना हो।" मनसुख प्रत्युत्तर में कुछ भी नहीं बोला। उसने बाहर की लाइट ऑन की और दरवाज़े के पास कोने में रखी छोटी लाठी एक हाथ में थाम कर दरवाज़ा थोड़ा सा खोला। बाहर एक अधेड़ उम्र का आदमी खड़ा था।  मनसुख ने पूछा- "बोलो भाई, क्या चाहिए?" "भाई साहब, मैं तकलीफ में हूँ, मुझे भीतर आ

बँटवारा (लघुकथा)

केशव अपने कार्यालय से थका-मांदा घर आया था। पत्नी अभी तक उसकी किटी पार्टी से नहीं लौटी थी। बच्चे भी घर पर नहीं थे। चाय पीने का बहुत मन था उसका, किन्तु हिम्मत नहीं हुई कि खुद चाय बना कर पी ले। मेज पर अपना मोबाइल रख कर वहाँ पड़ी एक पत्रिका उठा कर ड्रॉइंग रूम में ही आराम कुर्सी पर बैठ गया और बेमन से पत्रिका के पन्ने पलटने लगा। एक छोटी-सी कहानी पर उसकी नज़र पड़ी, तो उसे पढ़ने लगा। एक परिवार के छोटे-छोटे भाई-बहनों की कहानी थी वह। कुछ पंक्तियाँ पढ़ कर ही उसका मन भीग-सा गया। बचपन की स्मृतियाँ मस्तिष्क में उभरने लगीं।   'मैं और छोटा भाई माधव एक-दूसरे से कितना प्यार करते थे? कितनी ही बार आपस में झगड़ भी लेते थे, किन्तु किसी तीसरे की इतनी हिम्मत नहीं होती थी कि दोनों में से किसी के साथ चूँ भी कर जाए। दोनों भाई कभी आपस में एक-दूसरे के हिस्से की चीज़ में से कुछ भाग हथिया लेते तो कभी अपना हिस्सा भी ख़ुशी-ख़ुशी दे देते थे। ... और आज! आज हम एक-दूसरे को आँखों देखा नहीं सुहाते। दोनों की पत्नियों के आपसी झगड़ों से परिवार टूट गया। दो वर्ष हो गये, माधव पापा के साथ रहता है और मैं उनसे अलग। पापा के साथ काम करते रह

वक्त की लकीरें (कहानी)

(1) सिनेमाघर में सेकण्ड शो देख कर एक रेस्तरां में खाना खाने के बाद घर लौट रहे प्रकाश ने जैसे ही मेन रोड़ पर टर्न लिया, देखा, सड़क पर बायीं तरफ एक युवती भागी चली जा रही है। प्रकाश को भी उधर ही जाना था। स्कूटर बढ़ा कर वह युवती के पास पहुँचा। भागते-भागते थक जाने के कारण वह हाँफ़ रही थी और ठंडी रात होने के बावज़ूद पसीने से भरी हुई थी। स्कूटर धीमा कर उसने युवती से भागने का कारण पूछा तो उसने कहा- "वह मेरा पीछा कर रहा है। प्लीज़ मुझे बचा लो।" प्रकाश ने पीछे मुड़ कर देखा, एक बदमाश-सा दिखने वाला व्यक्ति उनकी तरफ दौड़ा चला आ रहा था, जो अब केवल दस कदम की दूरी पर था। प्रकाश ने फुर्ती से स्कूटर रोक कर युवती को पीछे बैठ जाने को कहा। युवती स्कूटर पर बैठती, इसके पहले ही वह बदमाश उनके पास पहुँच गया। प्रकाश स्कूटर से उतर कर युवती व बदमाश के बीच खड़ा हो गया। एक-दो राहगीर उस समय उनके पास से गुज़रे, किन्तु, रुका कोई नहीं। बदमाश ने चाकू निकाल कर प्रकाश के सामने लहराया और बोला- "बाबू, तुम हमारे झमेले में मत पड़ो। इस लड़की को मुझे सौंप दो।" वह बदमाश पेशेवर गुण्डा प्रतीत हो रहा था, किन्तु मज़बूत कद-काठी