मेरी एक नई पेशकश दोस्तों ---
मौसम बेरहम देखे, दरख्त फिर भी ज़िन्दा है,
बदन इसका मगर कुछ खोखला हो गया है।
बहार आएगी कभी, ये भरोसा नहीं रहा,
पतझड़ का आलम बहुत लम्बा हो गया है।
रहनुमाई बागवां की, अब कुछ करे तो करे,
सब्र का सिलसिला बेइन्तहां हो गया है।
या तो मैं हूँ, या फिर मेरी ख़ामोशी है यहाँ,
सूना - सूना सा मेरा जहां हो गया है।
यूँ तो उनकी महफ़िल में रौनक़ बहुत है,
'हृदयेश' लेकिन फिर भी तन्हा हो गया है।
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आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" बुधवार 22 मई 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद महोदया!
हटाएंवाह | चौथी लाइन में गया करलें |
जवाब देंहटाएंजी, बहुत धन्यवाद!
हटाएंवाह, बेहतरीन शायरी !
जवाब देंहटाएंजी, बहुत धन्यवाद!
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर गजल
जवाब देंहटाएंसराहना के लिए हृदयतल से धन्यवाद
हटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
हटाएंबहुत खूब 👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका!
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