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अनहोनी (कहानी)

 


पत्नी सुजाता की अस्वस्थता के चलते अभिजीत कल से दो दिन के अवकाश पर था। वैसे तो सुजाता को मामूली सर्दी-जुकाम ही हुआ था, लेकिन उसकी छींक से भी परेशान हो उठने वाले अभिजीत के लिए तो यह बड़ी बात ही थी। उनकी शादी हुए लगभग दो वर्ष होने आये थे और यह पहला अवसर था, जब सुजाता अस्वस्थ हुई थी। आज सुबह वह देरी से उठा था। फ्रैश होने के बाद सुजाता के साथ चाय के सिप ले रहा था कि ऑफिस से उसके सहकर्मी चंद्रकांत का फोन आया। फोन से प्राप्त सन्देश से उसका चेहरा खिल उठा। “धन्यवाद यार, मुझे यह बताने के लिए।” -कह कर उसने मोबाइल और चाय का कप टेबल पर रखा और सुजाता की हथेली को अपने हाथों में ले कर बोला- “बताओ सुजाता, क्या?”

“अरे, मैं क्या जानूँ? बहुत खुश नज़र आ रहे हो, क्या कुबेर का खजाना मिल गया है?”

“बस यही समझ लो। मुझे प्रमोशन मिल गया है जान! अब से मैं बड़ा अफसर बन गया हूँ।”

“वाह अभिजीत, बधाई तुम्हें!”

“तुम्हें भी बधाई सुजाता! तुम भी तो अब बड़े साहब की बीवी के रूप में जानी जाओगी।” -मुस्कुराया अभिजीत। 

सुजाता कुछ कहे, उसके पहले ही अभिजीत ने पुनः कहा- अच्छा यार, मुझे जाना पड़ेगा। आज ही नई पोजीशन एक्वायर करनी होगी।”

“अरे, पर कुछ नाश्ता-वाश्ता तो कर लो।”

“नहीं डिअर, मैं आज लेट नहीं होना चाहता।” -अभिजीत ने कहा और नहा-धो कर, तैयार हो कर ऑफिस के लिए चल पड़ा। 

खुशी के अतिरेक के बावज़ूद वह हमेशा की तरह सामान्य गति से ही कार ड्राइव कर रहा था। अभी कुल एक किलोमीटर ही चला था कि अनायास ही सड़क के किनारे से भागता आ रहा एक लड़का उसकी कार से आ टकराया। 

“ओ माय गॉड! तू कहाँ से आ मरा?” -घबरा कर अभिजीत ने तेजी से ब्रेक लगाया और फ़ौरन नीचे उतरा। कार के आगे जा कर झुक कर उसने देखा, लड़का लहू-लुहान हो कर तड़प रहा था। दुर्घटना इतनी अप्रत्याशित थी कि अभिजीत पसीने से नहा गया। उसने चारों ओर देखा, भीड़ इकट्ठी हो रही थी।

“अरे, कोई पुलिस को बुलाओ। पता नहीं कैसे चलते हैं यह कार वाले?” -भीड़ में से कोई बोला। 

“नहीं भैया, कार वाले की गलती नहीं है। यह लड़का तेजी से भाग कर सड़क क्रॉस कर रहा था कि कार की चपेट में आ गया। मैंने खुद देखा है।” -एकअन्य व्यक्ति ने कहा। 

“भाई लोगों, पहले इस लड़के की जान बचाने की कवायद करनी होगी। आप में से दो-एक आदमी मेरी मदद करें। इस घायल लड़के को पहले हॉस्पिटल ले चलते हैं।” -अभिजीत ने पास ही खड़े एक व्यक्ति से गुज़ारिश की। 

“अरे भाईसाहब! पता नहीं, यह ज़िंदा भी है या नहीं। मैं तो कहता हूँ, कुछ भी करने से पहले पुलिस को फोन करना चाहिए।” -उस व्यक्ति ने जवाब दिया।  

“ठीक है, मैं खुद ही पुलिस को सूचना देता हूँ।” -अभिजीत ने कहा और पुलिस थाने में फोन लगाया। उधर से जवाब आने पर अभिजीत ने संक्षेप में सारा वाकया बताया।

आठ-दस मिनट में एक एएसआई के साथ दो सिपाही पुलिस जीप में आये। आते ही उन्होंने भीड़ को आजू-बाजू से हटाया और कार के पहिये के पास पड़े घायल लड़के के पास पहुँचे। एएसआई ने बैठ कर लड़के की नाड़ी देखी और खड़ा हो कर बोला- “मर चुका है।”, फिर अभिजीत को कार के नज़दीक खड़ा देख पूछा- “यह कार आपकी है? ड्राइव आप कर रहे थे?”

“जी, और आप लोगों को फोन भी मैंने ही किया था।”

“फोन किया तो बरी हो जाओगे क्या? चलो थाने।”

“राम सिंह, तुम यहीं रुकना। ध्यान रहे, कोई यहाँ किसी तरह की छेड़छाड़ न करे।” -एक सिपाही को एएसआई ने आदेश दिया और एम्बुलेंस के लिए फोन मिलाया। कुछ ही देर में एम्बुलेंस आ गई। एएसआई ने मौके के कुछ फोटो लिए, लाश को एम्बुलेंस में रखवाया और दूसरे सिपाही को एम्बुलेंस के साथ पुलिस थाने में पहुँचने  की हिदायत की। पुलिस के कारण भीड़ अभी तक काफी-कुछ छंट गई थी। अभिजीत और घटनास्थल पर मौज़ूद प्रत्यक्षदर्शी दो आदमियों ने एएसआई को वस्तुस्थिति बताने की कोशिश की, किन्तु उसने समझाया कि मुलज़िम को थाने पर तो ले ही जाना पड़ेगा। 

राम सिंह को वहीं छोड़ कर एएसआई अभिजीत को साथ लेकर थाने पर पहुँचा। थानेदार ने घटना का पूरा विवरण जानने के बाद एएसआई को हिदायत दी कि अभिजीत का मोबाइल अपने कब्जे में ले ले और उसके बयान ले कर उसे लॉक अप में बिठा दे। लगभग उसी समय एम्बुलेंस भी वहाँ आ गई, जिसे आवश्यक कार्यवाही के बाद पोस्टमार्टम के लिए हॉस्पिटल भेज दिया गया। 

मोबाइल देने से पहले अभिजीत ने उनकी स्वीकृति लेकर अपनी पत्नी सुजाता को इस हादसे की सूचना दी और फिर एएसआई को अपने बयान दर्ज कराये। 

पन्द्रह-बीस मिनट में सुजाता थाने पर आ गई। उसने थानेदार को अपना परिचय दे कर अभिजीत के बारे में पूछा और उनसे स्वीकृति ले कर अभिजीत के पास आई। 

“यह कैसे हो गया अभिजीत?” -रो पड़ी सुजाता। 

“घबराओ मत सुजाता। मेरी कोई गलती ही नहीं है. तो डरना कैसा? भगवान तो देख ही रहा है।” -अभिजीत ने ढाढ़स बंधाया, जबकि वह स्वयं घबराया हुआ था। 

“हमें कोई वकील करना पड़ेगा। भगवान तो गवाही देने आएगा नहीं।” -सुजाता ने कुछ प्रकृतिस्थ हो कर कहा। 

“हाँ, कुछ तो करना होगा। लेकिन सुजाता, मेरा मोबाइल तो फ़िलहाल थानेदार जी के पास है। ऐसा करो, तुम उनसे रिक्वेस्ट कर के दो मिनट के लिए मेरा फोन मांग लेना और चंद्रकांत के नंबर पर कॉल कर के उसको सब बात बता देना। वह सब मैनेज कर लेगा।”

“ठीक है।“ कह कर सुजाता थानेदार के कक्ष की ओर चली गई। 

सुजाता के जाने के बाद अभिजीत फिर नर्वस हो गया। ‘कहाँ तो मैं अपनी नई पोजीशन के लिए ऑफिस जा रहा था और कहाँ बेबात ही इस लफड़े में फँस गया। मेरी कोई ग़लती नहीं थी, यह बात उस भीड़ में मौज़ूद दो आदमी जानते थे, लेकिन ज़रुरत पड़ने पर उन्हें कहाँ ढूंढूंगा मैं? कहीं अगर मुझे सज़ा मिल गई तो बेचारी सुजाता का क्या होगा? वह बेचारी तो रो-रो कर पागल हो जाएगी। हे ईश्वर, बचा ले मुझे इस मुसीबत से।’ -अभिजीत की आँखों से आंसू छलक पड़े। यूँ ही सोचते-विचारते करीब एक घंटा निकल गया। ‘अभी तक सुजाता ने कोई खबर नहीं दी’ -वह सोच ही रहा था कि एक सिपाही ने आकर लॉकअप का ताला खोला और बोला- “चलो, साहब ने बुलाया है।”

अभिजीत के मन में आशा की किरण चमकी- ‘अवश्य ही चंद्रकांत आया होगा। उसने ज़रूर कुछ न कुछ किया होगा। ज़रूर ही वह किसी वकील को साथ लेकर आया होगा।’ 

अभिजीत थानेदार के कक्ष में पहुँचा, तो चंद्रकांत नज़र नहीं आया। टेबल के पास उसे छोड़ कर सिपाही चला गया। अभिजीत ने देखा, थानेदार की टेबल के सामने की कुर्सियों पर सुजाता के साथ एक अधेड़ महिला और एक नवयुवक बैठा था। 

“यह बहिन जी उस लड़के की माँ हैं, जो आपकी गाड़ी से टकरा कर मर गया है।” -थानेदार ने बताया। 

“आपके बेटे को टकराने के लिए मेरी ही गाड़ी मिली थी? सड़क पर दौड़ता आकर मेरी गाड़ी से आ टकराया तो मैं क्या करता? पुलिस ने तो लॉकअप में डाल ही दिया है, अब आप लगवा दीजिये मुझे फाँसी।” -अभिजीत ने गुस्से में अपनी भड़ास उस महिला पर निकाली। 

“अरे-रे अभिजीत, शांत हो जाओ। यह मैडम तो सच्चाई बताने आई हैं, हमारी मदद करने आई हैं।” -सुजाता ने अभिजीत को टोका और उसके पास आ कर उसका हाथ थाम लिया। 

“बेटा, तुम्हारा कोई दोष नहीं है। मैंने थानेदार साहब को अपना बयान दे दिया है। तुम्हें इतनी तकलीफ़ पड़ी, इसके लिए हम दोनों माफ़ी चाहते हैं। यह मेरा बड़ा बेटा विनायक है।” -महिला ने अपने साथ बैठे युवक की ओर इशारा कर के अभिजीत से कहा।

अभिजीत ने ध्यान से महिला को देखा। उसकी सूजी हुई आँखें और कपोलों पर सूख चुके आँसुओं के धब्बे बता रहे थे कि वह बहुत देर तक रोती रही है। 

अब थानेदार ने अभिजीत से कहा- “मि. अभिजीत, दुर्घटना के वक्त वहाँ इकठ्ठा हुई भीड़ में एक आदमी ऐसा भी था, जो मृतक निखिल को पहचानता था। उसने इन मोहतरमा को दुर्घटना की सूचना दी। यह रोती-बिलखती पहले तो दुर्घटनास्थल पर और फिर हॉस्पिटल गईं। वहाँ बच्चे की लाश देखने के बाद इन्होने बॉडी के पोस्टमार्टम की कार्यवाही के लिए अपनी स्वीकृति दी। इन्हें पता लग गया था कि कार-चालक को पुलिस थाने पर ले जाया गया है, सो तुरंत यहाँ चली आईं। अपने बयान में इन्होंने कहा कि घटना में आपका कोई दोष नहीं है और फिर निखिल का सुसाइडल नोट हमें सुपुर्द किया।” 

अभिजीत ने अविश्वसनीय दृष्टि से उस महिला की ओर देखा। 

“हाँ बेटा, यह सच है। परीक्षा में दूसरी बार फेल हो जाने से निखिल डिप्रेशन में आ गया था। कुछ दिनों से वह एकांत में रोता रहता था और कहता था कि वह जीना नहीं चाहता। हम ने उसे बहुत समझाया भी था। हमें पता ही नहीं चला और आज वह बिना बताये घर से निकल गया। उसके एक्सीडेंट की सूचना हमारे परिचित से मिलने पर हम घर से निकल रहे थे, तो उसकी स्टडी टेबल पर पड़े उसके सुसाइडल नोट पर हमारी नज़र पड़ी। बेटा, वह जान-बूझ कर तुम्हारी कार के सामने आ आया था। इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है!”

“अभिजीत, अम्मा जी ने अपने साथ हुए इतने जबरदस्त हादसे के बावज़ूद यहाँ आ कर साक्षात् देवी माँ के रूप में हमारी मदद की है।”

“माता जी, मेरे अभद्र व्यवहार के लिए मुझे क्षमा करें। आपके पुत्र की मौत का कारण बना हूँ, इसके लिए खुद को कभी माफ़ नहीं कर सकूँगा।” -महिला के चरण छू कर अभिजीत बोला। उसकी आँखें नम हो आई थीं। 

“नहीं बेटा, तुम्हारे लिए पश्चाताप का कोई कारण ही नहीं है। शायद हमारे भाग्य में यही लिखा था।” -निखिल की माँ ने अभिजीत के कंधे पर हाथ रख कर कहा और और थानेदार को अभिवादन कर अपने बेटे के साथ बाहर निकल गई। थानेदार ने रोजनामचा तैयार कर मामले में ऍफ़.आर. लगा दी और अभिजीत व संजीता को भी जाने की इज़ाज़त दे दी। अभिजीत और संजीता ने इस अप्रत्याशित मदद के लिए ईश्वर का धन्यवाद करते हुए संतोष भरी दृष्टि से एक-दूसरे की ओर देखा और दुर्घटना स्थल पर पड़ी अपनी कार के लिए चल दिये। 


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