बहुत आग्रह-मनुहार के बाद नीरव ने मेरी इच्छा पूरी करने के लिए पुष्कर जी जाने का कार्यक्रम बनाया। मनुहार कराने में उनकी भी ग़लती नहीं थी, उनका जॉब ही ऐसा था कि छुट्टियाँ बहुत मुश्किल से मिलती थीं। आज भी वह ऑफिस की ड्यूटी कर के आये थे। तीन दिन के सफर की पूरी तैयारी मैंने दिन में ही कर ली थी। एक सूटकेस और एक बैग में सारा सामान समा गया था। रात सवा आठ बजे की बस थी, सो हम साढ़े सात बजे घर से रवाना हो गये। विक्की तो घूमने जाने के नाम से कल से ही उछल रहा था। बस में बहुत भीड़ थी, लोग ठसाठस भरे हुए थे। बस में ही पता चला कि ख्वाजा साहब का उर्स है, इसीलिए भीड़ ज़्यादा है। हमें तो इसका ध्यान ही नहीं रहा था। शुक्र है कि हमने अजमेर तक का रिज़र्वेशन करवा लिया था सो सीट तो मिल ही गई। इस रूट पर अभी निगम की कोई ए.सी. बस नहीं थी, अतः सामान्य बस का टिकट लेना हमारी मजबूरी थी। रात का वक्त था फिर भी गर्मी लग रही थी। गर्मी से हम तो परेशान थे ही, किन्तु विक्की का हाल बुरा था। मैं बार-बार उसे पानी का घूँट पिला रही थी। मोबाइल में डूबे नीरव कभी-कभी हमारी ओर देख लेते थे। बस अपनी रफ़्तार से चलती चली जा