मेरे एक मित्र का अभी फोन आया, बोला- "भई, केरल में गर्भवती हथिनी के साथ इतनी भयङ्कर वारदात हो गई और आपने अभी तक इस विषय में कुछ भी नहीं लिखा? न ब्लॉग पर, न प्रतिलिपि पर और न ही फेसबुक पर! आप तो हर तरह के विषयों पर लिखा करते हो। कैसे हो आजकल आप? आपका स्वास्थ्य तो ठीक है न?"
प्रिय मित्रों! आप ही बताएँ, क्या जवाब देता मैं उन्हें?
मेरे मित्र ने सही कहा है। मैंने मनुष्यों के विषय में लिखा है तो नरपिशाचों पर भी लिखा है, किन्तु उस लाचार और निरीह मूक प्राणी के विषय में लिखने में मेरी लेखन-क्षमता अपंग हो रही है। माँ सरस्वती मेरी लेखनी में आने को उद्यत नहीं हैं।... सृष्टिकर्ता ने स्वर्ग में देवता, पाताल में राक्षस और पृथ्वी पर मनुष्य व पशु-पक्षियों की रचना की है (यह बात पृथक है कि पृथ्वी पर यदा-कदा देवता तो कई बार राक्षस (नरपिशाच) भी दिखाई दे जाते हैं)। मैं समझ नहीं पा रहा कि विस्फोटक भरा अनानास खिला कर उस निरीह हथिनी के प्राण लेने वाले उस अधमतम अस्तित्व को ईश्वर ने किस लोक में रचा और इस पृथ्वी पर क्योंकर भेजा? ऐसे नारकीय जीवों की रचना करना ही क्या अब ईश्वर का काम रह गया है?
तो मित्रों, मैं इस विषय में कुछ भी नहीं लिख पाऊँगा, मुझे क्षमा करें।
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जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (06 जून 2020) को 'पर्यावरण बचाइए, बचे रहेंगे आप' (चर्चा अंक 3724) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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रवीन्द्र सिंह यादव
नमस्कार! आपके इस स्नेह के लिए हार्दिक आभार भाई रवींद्र जी!
हटाएंआप ने कभी वह दृश्य देखा है, जब किसी ऊंट को चोरों तरफ़ से घेर कर लोग भाले से प्रहार करते हैं। वह छटपटाते हुये, अतंतः बेदम हो गिर पड़ता है। किन्तु इस मूक पशु की दर्दनाक मौत पर कोई दुःख व्यक्त नहीं करता ,क्योंकि इसे एक धार्मिक परंपरा का नाम दे दिया जाता है।
जवाब देंहटाएंयह तो नहीं देखा, किन्तु जैसलमेर में दशहरे के अवसर पर पर नवमी के दिन माता के नाम पर बलि चढाने के लिए बकरे व भैंसे को खड़ा कर सरेआम उनकी गर्दन पर तलवार के एक प्रहार से उनका मस्तक काटने का क्रूरतापूर्ण दृश्य अवश्य देखा है। धर्म के नाम पर पाखंड रचने वाले मुझे क्षमा करें, हमारी महान व पवित्र संस्कृति के लिए इससे अधिक शर्मनाक क्या होगा? मासूम जीवों की हत्या का संस्कार हमारी संस्कृति में क्यों?
हटाएंइस विषय पर नि:शब्द कर दिया आने गजेंद्र जी ...जितना लिखा जाये कम है
जवाब देंहटाएंआपका आभार अलकनंदा जी!
हटाएंऐसे नारकीय जीवों की रचना करना ही क्या अब ईश्वर का काम रह गया है? आहत हृदय के उद्गार हैं ये आदरणीय 🙏 .. अत्यंत दुःखद... यदि ऐसे लोगों को मनुष्य कहेंगे तो नर पिशाच किसे कहेंगे... अत्यंत घृणित मानसिकता है इनकी.....
जवाब देंहटाएंआपकी संवेदनशीलता वंदनीय है सुधा जी... आभार आपका!
हटाएंमार्मिक सृजन.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद... आभार महोदया!
जवाब देंहटाएंनिशब्द हैं आदरणीय सर |
जवाब देंहटाएंआभार आपका रेनू जी!
हटाएंकृपया टिप्पणी पर से APROVAL की शर्त हटा लें | कई बार टिप्पणी लिखने में गलती भी हो जाती है तो गलत मिटाकर सही लिखने के सभी रास्ते बंद हैं | आशा है आप गौर करेंगे | अच्छा लग रहा है आपकी रचनाएँ बड़े मंचों से जुड़कर नये पाठकों तक पहुँच रही हैं | सादर
जवाब देंहटाएंइसका श्रेय आपको ही जाता है। आपकी प्रेरणा से ब्लॉग में वांछित परिवर्तन के कारण ही यह संभव हो पाया है रेनू जी! हाँ, कृपया यह भी बताने का कष्ट करें कि 'approval' की शर्त कहाँ जा कर हटानी होगी?
जवाब देंहटाएंDear Bhatt to day first time i read your blog it was really wonderful experience kanodia
जवाब देंहटाएंThank you very much Mr. Kanodiya for your kind comment.
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