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'महत्वहीन' (कहानी)

                       वह अपने घर के दरवाज़े से बाहर निकल कर कुछ कदम ही चली थी कि उसने देखा, उसका कुत्ता 'टॉमी' उसके पीछे-पीछे चला आ रहा था। झल्ला कर रुक गई वह। 'उफ्फ़ नॉनसेन्स!' -उसके मुँह से निकला। सूर्योदय होने में लगभग डेढ़-पौने दो घण्टे शेष थे। डरते-डरते अपने हाथों में थामे शिशु की ओर उसने देखा और एकबारगी काँप उठी। कल ही तो वह दिल्ली के अस्पताल से अपनी माँ व शिशु के साथ लौटी थी। अपने किसी भी परिचित को उन्होंने इस बच्चे के जन्म की भनक तक नहीं होने दी थी। दिसम्बर माह का अन्तिम सप्ताह था। शीत के साथ ही भय की एक लहर ने उसका रोम-रोम खड़ा कर दिया। दिल की गहराई तक उसने यह सिहरन महसूस की और भयाक्रान्त हो चारों ओर नज़र डाली। उसे लगा, जैसे सभी दिशाओं से कुछ अज्ञात शक्तियाँ आँखें फाड़-फाड़ कर उसे घूर रही हैं। एक चीख उसके कण्ठ में घुट कर रह गई। एक बार फिर निद्रामग्न अपने शिशु की ओर देख कर उसने पीछे खड़े टॉमी की ओर देखा। टॉमी अपनी पूँछ हिलाता हुआ चुपचाप खड़ा शायद उसके मनोभाव पढ़ने की कोशिश कर रहा था। अपनी मालकिन के साथ रहना उसकी आदत-सी बन गई थी, इसीलिए वह साथ चला आया था।  वह टॉमी

अनहोनी (कहानी)

  पत्नी सुजाता की अस्वस्थता के चलते अभिजीत कल से दो दिन के अवकाश पर था। वैसे तो सुजाता को मामूली सर्दी-जुकाम ही हुआ था, लेकिन उसकी छींक से भी परेशान हो उठने वाले अभिजीत के लिए तो यह बड़ी बात ही थी। उनकी शादी हुए लगभग दो वर्ष होने आये थे और यह पहला अवसर था, जब सुजाता अस्वस्थ हुई थी। आज सुबह वह देरी से उठा था। फ्रैश होने के बाद सुजाता के साथ चाय के सिप ले रहा था कि ऑफिस से उसके सहकर्मी चंद्रकांत का फोन आया। फोन से प्राप्त सन्देश से उसका चेहरा खिल उठा। “धन्यवाद यार, मुझे यह बताने के लिए।” -कह कर उसने मोबाइल और चाय का कप टेबल पर रखा और सुजाता की हथेली को अपने हाथों में ले कर बोला- “बताओ सुजाता, क्या?” “अरे, मैं क्या जानूँ? बहुत खुश नज़र आ रहे हो, क्या कुबेर का खजाना मिल गया है?” “बस यही समझ लो। मुझे प्रमोशन मिल गया है जान! अब से मैं बड़ा अफसर बन गया हूँ।” “वाह अभिजीत, बधाई तुम्हें!” “तुम्हें भी बधाई सुजाता! तुम भी तो अब बड़े साहब की बीवी के रूप में जानी जाओगी।” -मुस्कुराया अभिजीत।  सुजाता कुछ कहे, उसके पहले ही अभिजीत ने पुनः कहा- अच्छा यार, मुझे जाना पड़ेगा। आज ही नई पोजीशन एक्वायर करनी होगी।”

व्यामोह (कहानी)

                                          (1) पहाड़ियों से घिरे हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में एक छोटा सा, खूबसूरत और मशहूर गांव है ' मलाणा ' । कहा जाता है कि दुनिया को सबसे पहला लोकतंत्र वहीं से मिला था। उस गाँव में दो बहनें, माया और विभा रहती थीं। अपने पिता को अपने बचपन में ही खो चुकी दोनों बहनों को माँ सुनीता ने बहुत लाड़-प्यार से पाला था। आर्थिक रूप से सक्षम परिवार की सदस्य होने के कारण दोनों बहनों को अभी तक किसी भी प्रकार के अभाव से रूबरू नहीं होना पड़ा था। । गाँव में दोनों बहनें सबके आकर्षण का केंद्र थीं। शान्त स्वभाव की अठारह वर्षीया माया अपनी अद्भुत सुंदरता और दीप्तिमान मुस्कान के लिए जानी जाती थी, जबकि माया से दो वर्ष छोटी, किसी भी चुनौती से पीछे नहीं हटने वाली विभा चंचलता का पर्याय थी। रात और दिन की तरह दोनों भिन्न थीं, लेकिन उनका बंधन अटूट था। जीवन्तता से भरी-पूरी माया की हँसी गाँव वालों के कानों में संगीत की तरह गूंजती थी। गाँव में सबकी चहेती युवतियाँ थीं वह दोनों। उनकी सर्वप्रियता इसलिए भी थी कि पढ़ने-लिखने में भी वह अपने सहपाठियों से दो कदम आगे रहती थीं।  इस छोटे