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पुरानी हवेली (कहानी)

   जहाँ तक मुझे स्मरण है, यह मेरी चौथी भुतहा (हॉरर) कहानी है। भुतहा विषय मेरी रुचि के अनुकूल नहीं है, किन्तु एक पाठक-वर्ग की पसंद मुझे कभी-कभार इस ओर प्रेरित करती है। अतः उस विशेष पाठक-वर्ग की पसंद का सम्मान करते हुए मैं अपनी यह कहानी 'पुरानी हवेली' प्रस्तुत कर रहा हूँ। पुरानी हवेली                                                     मान्या रात को सोने का प्रयास कर रही थी कि उसकी दीदी चन्द्रकला उसके कमरे में आ कर पलंग पर उसके पास बैठ गई। चन्द्रकला अपनी छोटी बहन को बहुत प्यार करती थी और अक्सर रात को उसके सिरहाने के पास आ कर बैठ जाती थी। वह मान्या से कुछ देर बात करती, उसका सिर सहलाती और फिर उसे नींद आ जाने के बाद उठ कर चली जाती थी।  मान्या दक्षिण दिशा वाली सड़क के अन्तिम छोर पर स्थित पुरानी हवेली को देखना चाहती थी। ऐसी अफवाह थी कि इसमें भूतों का साया है। रात के वक्त उस हवेली के अंदर से आती अजीब आवाज़ों, टिमटिमाती रोशनी और चलती हुई आकृतियों की कहानियाँ उसने अपनी सहेली के मुँह से सुनी थीं। आज उसने अपनी दीदी से इसी बारे में बात की- “जीजी, उस हवेली का क्या रहस्य है? कई दिनों से सुन रह

केबीसी का सात करोड़ का सवाल (प्रहसन)

केबीसी में अमृता देवी एक करोड़ जीत चुकी थीं। सात करोड़ का सवाल पूछा जाने वाला था। अमृता जी पचपन वर्ष की सामान्य शक्ल-सूरत की प्रौढ़ महिला थीं। अमिताभ जी वैसे भी बोर हो रहे थे। उन्होंने अमृता जी को, जैसा कि वह हमेशा से करते आये हैं, चेताया- "आप एक करोड़ जीत रही हैं। आप चाहें तो यहीं से क्विट कर सकती हैं। अगर आप इस सवाल को हल नहीं कर पाईं, तो तीन लाख बीस हज़ार पर गिर जाएँगी।" अमृता जी ने सवाल पर एक बार और निगाह डाली।  सवाल में अमिताभ जी ने पूछा था- "कल रात डिनर में मैंने कौन-सी दाल खाई थी? आपके ऑप्शन हैं ये - (A) चने की दाल (B) मसूर की दाल (C) उड़द की दाल (D) काबुली चना  अमृता जी ने विचार किया। अमिताभ जी वयोवृद्ध व्यक्ति हैं। इस उम्र में चना, या उड़द की दाल कम से कम रात के वक्त तो नहीं ही खाते होंगे। चौथे ऑप्शन में दाल नहीं, काबुली चना है। अतः ले दे कर एक ही उत्तर सही बैठता है और वह है मसूर की दाल। वह विश्वास के साथ बोलीं- "जी सर, मैं खेलूँगी।"  अमृता जी के साथ गेम खेलते उनको लग रहा था कि अनावश्यक ही यह महिला अगले प्रतियोगी का चांस ख़राब कर रही है। उन्होंने मन ही मन (😊)

साध और साधना (कहानी)

                                           (1) “ऑफिस से आये हो तब से देख रही हूँ, यूँ ही गुमसुम बैठे हो। दो बार पूछ चुकी हूँ, बताते क्यों नहीं, आखिर बात क्या है?” -तोशल ने अपने पति शशांक से पूछा।  “क्या होगा बता कर, जब मैं जानता हूँ कि तुम्हारे पास मेरी चिंता का कोई समाधान नहीं है।” “मुझे नहीं बताने से तुम्हें तुम्हारा समाधान मिल जाता है तो ठीक है, मुझे क्या पड़ी है?”  तोशल मुँह फुला कर जाने लगी तो शशांक ने उसका हाथ पकड़ कर चेहरे पर मुस्कराहट लाने की कोशिश करते हुए कहा- “यार नाराज़ क्यों होती हो? फिलहाल सोच रहा हूँ। अगर किसी नतीजे पर नहीं पहुँचा तो बता दूंगा। फ़िज़ूल तुम्हें परशान करने से क्या होगा?” “अब बातें न बनाओ। तुम्हारी परेशानी क्या मेरी परेशानी नहीं है?” “ठीक है बाबा, बताता हूँ। दरअसल अपनी कार की बकाया चार किश्तें इस सप्ताह बैंक में एक मुश्त जमा करानी हैं। अभी तक तो बैंक ने सब्र कर लिया है। अब अगर जमा नहीं हुईं तो बैंक कार जब्त कर नीलाम कर देगा।” सुन कर तोशल के चेहरे पर चिंता की रेखाएं उभरीं। दो मिनट कुछ सोच कर बोली- “इसीलिए तो कहती हूँ, अपनी प्रॉब्लम शेयर किया करो। मैं भी सोचती हूँ