प्रवेश की सुगमता की दृष्टि से शहर का ‘गवर्नमेंट कॉलेज’ विद्यार्थियों की पहली पसंद था। समृद्ध पृष्ठभूमि की लड़की धर्मिष्ठा उस कॉलेज में फाइनल ईयर आर्ट्स में पढ़ती थी। पढाई में तो वह ठीक थी ही, सुन्दर भी बहुत थी। बोलती, तो लगता जैसे आवाज़ में मिश्री घुली हो। कॉलेज में सब के आकर्षण का केन्द्र थी वह। कई लड़के उसके दीवाने थे, किन्तु वह उन्हें घास भी नहीं डालती थी। मितभाषी लड़की मधुमिता उसकी विश्वसनीय सहेली थी जिससे वह अपनी हर बात साझा करती थी और सामान्यतः कॉलेज में उसके साथ ही रहती थी। मधुमिता के अलावा प्रायः चार-पाँच सहपाठियों के साथ ही वह मिलती-जुलती थी। इस तरह से बहुत ही छोटी मित्र-मंडली थी उसकी। उसके उन मित्र सहपाठियों में एक शर्मीला लड़का सोमेश भी था, जो पढ़ने में बहुत होशियार था। सुन्दर नहीं, तो बदसूरत भी नहीं कहा जा सकता था उसे। हाँ, एक सुगठित बदन व सौम्य स्वभाव का मालिक अवश्य था वह। कॉलेज में पढाई करते अच्छा वक्त गुज़र रहा था उन सब का। एक दिन कॉलेज में क्लास ख़त्म होने के बाद सोमेश कॉलेज कम्पाउण्ड में पहुँचा ही था कि उसने अपने पीछे से आती एक सुरीली आवाज़ सुनी- “अकेले-अकेले कहाँ जा...