किसी खड़खड़ के चलते अहमद की नींद अचानक खुल गई। आँखें मलते हुए उसने उठ कर देखा, कमरे में बेभान सो रही उसकी बेगम रशीदा के अलावा और कोई नहीं था। घड़ी में देखा, रात के दो बज रहे थे। धीमे क़दमों से वह खिड़की की ओर बढ़ा और बाहर निगाह डाली तो चौंक पड़ा, पड़ोसी कासिम की खिड़की अधखुली थी। उसे ताज्जुब हुआ, 'कासिम का परिवार ईद मनाने के लिए दो दिन के लिए आज ही अपने गाँव गया है और वह लोग अपनी सभी खिड़कियाँ बंद कर के गये थे, फिर इनकी खिड़की खुली कैसे पड़ी है?' ध्यान से सुनने की कोशिश की तो आहिस्ता-आहिस्ता बोलने की आवाज़ भी उसे सुनाई दी। कुछ ही देर में कासिम के कमरे में दो पल के लिए एक रोशनी झपकी। 'शायद मोबाइल की टॉर्च की रोशनी थी',अहमद ने अंदाज़ लगाया। वह समझ गया, कासिम के घर में चोर घुस आये हैं। चाँदनी रात थी और कासिम के घर के पीछे से आ रही बादलों में छिपे चाँद की रोशनी दोनों मकानों के बीच के गलियारे को हल्का-सा रोशन कर रही थी, लेकिन कासिम के कमरे में रोशनी नहीं के बराबर थी। व...