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साध और साधना (कहानी)

                                           (1) “ऑफिस से आये हो तब से देख रही हूँ, यूँ ही गुमसुम बैठे हो। दो बार पूछ चुकी हूँ, बताते क्यों नहीं, आखिर बात क्या है?” -तोशल ने अपने पति शशांक से पूछा।  “क्या होगा बता कर, जब मैं जानता हूँ कि तुम्हारे पास मेरी चिंता का कोई समाधान नहीं है।” “मुझे नहीं बताने से तुम्हें तुम्हारा समाधान मिल जाता है तो ठीक है, मुझे क्या पड़ी है?”  तोशल मुँह फुला कर जाने लगी तो शशांक ने उसका हाथ पकड़ कर चेहरे पर मुस्कराहट लाने की कोशिश करते हुए कहा- “यार नाराज़ क्यों होती हो? फिलहाल सोच रहा हूँ। अगर किसी नतीजे पर नहीं पहुँचा तो बता दूंगा। फ़िज़ूल तुम्हें परशान करने से क्या होगा?” “अब बातें न बनाओ। तुम्हारी परेशानी क्या मेरी परेशानी नहीं है?” “ठीक है बाबा, बताता हूँ। दरअसल अपनी कार की बकाया चार किश्तें इस सप्ताह बैंक में एक मुश्त जमा करानी हैं। अभी तक तो बैंक ने सब्र कर लिया है। अब अगर जमा नहीं हुईं तो बैंक कार जब्त कर नीलाम कर देगा।” सुन कर तोशल के चेहरे पर चिंता की रेखाएं उभरीं। दो मिनट कुछ सोच कर बोली- “इसीलिए तो कहती हूँ, अपनी प्रॉब्लम शेयर किया करो। मैं भी सोचती हूँ

नसीहत (प्रहसन)

राजस्थान में अपराधियों के हौंसले इतने बुलंद हो रहे हैं कि कुछ अपराधियों ने अभी हाल ही उनका पीछा किये जाने पर राज्य के एक जांबाज़ सिपाही प्रह्लाद सिंह के सिर में गोली मार दी। फलतः उपचार के दौरान कल सुबह प्रहलाद सिंह शहीद हो गए। मन बहुत व्यथित है। मैं एक संवेदनशील व्यक्ति हूँ, अतः उत्सुकतावश पड़ोसी राज्य की कानून-व्यवस्था की स्थिति जानने के लिए आज राज्य के बॉर्डर से हो कर जा रहा था।  तभी मैंने देखा कि यात्रियों से भरी ओवरलोडेड एक बस राजस्थान के बॉर्डर को पार कर रही है। मैंने बस को रोक कर उसकी छत पर बैठे एक यात्री से पूछा- "भाई लोग, इस तरह बस पर क्यों बैठे हो और कहाँ जा रहे हो?" "हम सब अपराधी हैं और राजस्थान छोड़ कर जा रहे हैं।" "ओह, क्या यहाँ की पुलिस से अचानक इतना डर लग गया तुम लोगों को? अगर ऐसा है तो अपराध करना बंद क्यों नहीं कर देते?" "अजी, पुलिस से कौन डरता है? हम तो मुख्यमंत्री जी की नसीहत मान कर राज्य छोड़ कर जा रहे हैं। अब वह मुख्यमंत्री हैं, तो उनकी बात माननी पड़ेगी न! " "क्या यहाँ का प्रशासन पुलिस पर अपनी पकड़ नहीं बना पा रहा है कि वह आप लो

वक्त की लकीरें (कहानी)

(1) सिनेमाघर में सेकण्ड शो देख कर एक रेस्तरां में खाना खाने के बाद घर लौट रहे प्रकाश ने जैसे ही मेन रोड़ पर टर्न लिया, देखा, सड़क पर बायीं तरफ एक युवती भागी चली जा रही है। प्रकाश को भी उधर ही जाना था। स्कूटर बढ़ा कर वह युवती के पास पहुँचा। भागते-भागते थक जाने के कारण वह हाँफ़ रही थी और ठंडी रात होने के बावज़ूद पसीने से भरी हुई थी। स्कूटर धीमा कर उसने युवती से भागने का कारण पूछा तो उसने कहा- "वह मेरा पीछा कर रहा है। प्लीज़ मुझे बचा लो।" प्रकाश ने पीछे मुड़ कर देखा, एक बदमाश-सा दिखने वाला व्यक्ति उनकी तरफ दौड़ा चला आ रहा था, जो अब केवल दस कदम की दूरी पर था। प्रकाश ने फुर्ती से स्कूटर रोक कर युवती को पीछे बैठ जाने को कहा। युवती स्कूटर पर बैठती, इसके पहले ही वह बदमाश उनके पास पहुँच गया। प्रकाश स्कूटर से उतर कर युवती व बदमाश के बीच खड़ा हो गया। एक-दो राहगीर उस समय उनके पास से गुज़रे, किन्तु, रुका कोई नहीं। बदमाश ने चाकू निकाल कर प्रकाश के सामने लहराया और बोला- "बाबू, तुम हमारे झमेले में मत पड़ो। इस लड़की को मुझे सौंप दो।" वह बदमाश पेशेवर गुण्डा प्रतीत हो रहा था, किन्तु मज़बूत कद-काठी