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केबीसी का सात करोड़ का सवाल (प्रहसन)

केबीसी में अमृता देवी एक करोड़ जीत चुकी थीं। सात करोड़ का सवाल पूछा जाने वाला था। अमृता जी पचपन वर्ष की सामान्य शक्ल-सूरत की प्रौढ़ महिला थीं। अमिताभ जी वैसे भी बोर हो रहे थे। उन्होंने अमृता जी को, जैसा कि वह हमेशा से करते आये हैं, चेताया- "आप एक करोड़ जीत रही हैं। आप चाहें तो यहीं से क्विट कर सकती हैं। अगर आप इस सवाल को हल नहीं कर पाईं, तो तीन लाख बीस हज़ार पर गिर जाएँगी।" अमृता जी ने सवाल पर एक बार और निगाह डाली।  सवाल में अमिताभ जी ने पूछा था- "कल रात डिनर में मैंने कौन-सी दाल खाई थी? आपके ऑप्शन हैं ये - (A) चने की दाल (B) मसूर की दाल (C) उड़द की दाल (D) काबुली चना  अमृता जी ने विचार किया। अमिताभ जी वयोवृद्ध व्यक्ति हैं। इस उम्र में चना, या उड़द की दाल कम से कम रात के वक्त तो नहीं ही खाते होंगे। चौथे ऑप्शन में दाल नहीं, काबुली चना है। अतः ले दे कर एक ही उत्तर सही बैठता है और वह है मसूर की दाल। वह विश्वास के साथ बोलीं- "जी सर, मैं खेलूँगी।"  अमृता जी के साथ गेम खेलते उनको लग रहा था कि अनावश्यक ही यह महिला अगले प्रतियोगी का चांस ख़राब कर रही है। उन्होंने मन ही मन (😊)

नसीहत (प्रहसन)

राजस्थान में अपराधियों के हौंसले इतने बुलंद हो रहे हैं कि कुछ अपराधियों ने अभी हाल ही उनका पीछा किये जाने पर राज्य के एक जांबाज़ सिपाही प्रह्लाद सिंह के सिर में गोली मार दी। फलतः उपचार के दौरान कल सुबह प्रहलाद सिंह शहीद हो गए। मन बहुत व्यथित है। मैं एक संवेदनशील व्यक्ति हूँ, अतः उत्सुकतावश पड़ोसी राज्य की कानून-व्यवस्था की स्थिति जानने के लिए आज राज्य के बॉर्डर से हो कर जा रहा था।  तभी मैंने देखा कि यात्रियों से भरी ओवरलोडेड एक बस राजस्थान के बॉर्डर को पार कर रही है। मैंने बस को रोक कर उसकी छत पर बैठे एक यात्री से पूछा- "भाई लोग, इस तरह बस पर क्यों बैठे हो और कहाँ जा रहे हो?" "हम सब अपराधी हैं और राजस्थान छोड़ कर जा रहे हैं।" "ओह, क्या यहाँ की पुलिस से अचानक इतना डर लग गया तुम लोगों को? अगर ऐसा है तो अपराध करना बंद क्यों नहीं कर देते?" "अजी, पुलिस से कौन डरता है? हम तो मुख्यमंत्री जी की नसीहत मान कर राज्य छोड़ कर जा रहे हैं। अब वह मुख्यमंत्री हैं, तो उनकी बात माननी पड़ेगी न! " "क्या यहाँ का प्रशासन पुलिस पर अपनी पकड़ नहीं बना पा रहा है कि वह आप लो

बन्धन (कहानी)

                       क्षमा और अनुज दो साल से एक-दूसरे के सम्पर्क में थे। वे कॉलेज के अन्तिम वर्ष में थे, तब से दोनों में दोस्ती थी जो बाद में प्यार में बदल गई। क्षमा एक परम्परावादी संस्कारी लड़की थी, जो शादी करने और परिवार बसाने का सपना देखती थी, जबकि अनुज एक आधुनिक लड़का था, जिसे एक स्वच्छन्द ज़िन्दगी पसन्द थी। दोनों की विचारधारा बुनियादी तौर पर भिन्न थी।  एक दिन, क्षमा ने अनुज से उनके भविष्य के बारे में बात करने का फैसला किया। क्षमा- “अनुज, मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।” अनुज- “बोलो क्षमा!” क्षमा- “क्या तुम्हें नहीं लगता कि अब समय आ गया है कि हम अपने रिश्ते को अगले स्तर पर ले जाएँ?” अनुज- “तुम्हारा मतलब क्या है?” क्षमा- “अनुज, हमें अब शादी कर लेनी चाहिए।” अनुज- “शादी? क्षमा, हम इसके लिए अभी बहुत छोटे हैं।” क्षमा- “हम छोटे नहीं हैं अनुज! हम दोनों पच्चीस साल के हैं, हमने ग्रेजुएशन कर लिया है और अब नौकरी कर रहे हैं। हम दो साल से एक-दूसरे के करीब हैं, हमें किसका इंतज़ार है?” अनुज- “क्षमा, शादी एक बड़ा फैसला है। यह ऐसा कुछ नहीं है जो आप मनमर्जी से करते हैं।” क्षमा- “मैं यह सब यूँ ही नहीं क

'मैं तुलसी मेरे आँगन की' (कहानी)

  (1) आज रुद्र फिर खाना खाये  बिना ही ऑफिस चला गया था। कभी भी, कोई बात अच्छी नहीं लगती थी, तो वह अपना गुस्सा खाने पर उतार दिया करता था। आज भी ‘सब्जी अच्छी नहीं बनी है’, कहते हुए भोजन की थाली परे खिसका कर वह खड़ा हो गया था। अनामिका परेशान थी, 'दिन भर भूखे रहेंगे वह! यदि ऑफिस की कैन्टीन में कुछ नाश्ता कर भी लिया तो क्या? क्या घर के खाने की बराबरी हो सकती है? मैं अकेली कैसे खा लूँ, मैं भी नहीं खाऊँगी।' अनामिका खाना बनाने में प्रयुक्त  छोटे बर्तन हाथों से ही मांज कर व अन्य काम निपटा कर बाहर आ गई। कल उसका व्रत था, सो वह कल शाम से ही भूखी थी, किन्तु अब तो उसकी भूख ही मर गई थी। मोबाइल में गाने लगा वह लिविंग रूम में आ कर खिड़की के पास बैठ गई और बाहर आसमान को निहारने लगी। अगस्त का महीना था। आसमान में छाये बादलों से छन-छन कर आती हल्की धूप धरती को प्रकाशमान किये हुए थी। मौसम बहुत लुभावना था, फिर भी अनामिका  का मन व्याकुल था। मोबाइल से आ रही लता जी की मधुर आवाज़ में गाये गाने की स्वर-लहरी वातावरण में रस घोल रही थी, किन्तु अनामिका के मन के उद्वेग को कम करने में सफल नहीं हो पा रही थी। कुछ ही दे