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दलित वर्ग - सामाजिक सोच व चेतना

     'दलित वर्ग एवं सामाजिक सोच'- संवेदनशील यह मुद्दा मेरे आज के आलेख का विषय है।  मेरा मानना है कि दलित वर्ग स्वयं अपनी ही मानसिकता से पीड़ित है। आरक्षण तथा अन्य सभी साधन- सुविधाओं का अपेक्षाकृत अधिक उपभोग कर रहा दलित वर्ग अब वंचित कहाँ रह गया है? हाँ, कतिपय राजनेता अवश्य उन्हें स्वार्थवश भ्रमित करते रहते हैं। जहाँ तक आरक्षण का प्रश्न है, कुछ बुद्धिजीवी दलित भी अब तो आरक्षण जैसी व्यवस्थाओं को अनुचित मानने लगे हैं। आरक्षण के विषय में कहा जा सकता है कि यह एक विवादग्रस्त बिन्दु है। लेकिन इस सम्बन्ध में दलित व सवर्ण समाज तथा राजनीतिज्ञ, यदि मिल-बैठ कर, निजी स्वार्थ से ऊपर उठ कर कुछ विवेकपूर्ण दृष्टि अपनाएँ तो सम्भवतः विकास में समानता की स्थिति आने तक चरणबद्ध तरीके से आरक्षण में कमी की जा कर अंततः उसे समाप्त किया जा सकता है।  दलित वर्ग एवं सवर्ण समाज, दोनों को ही अभी तक की अपनी संकीर्ण सोच के दायरे से बाहर निकलना होगा। सवर्णों में कोई अपराधी मनोवृत्ति का अथवा विक्षिप्त व्यक्ति ही दलितों के प्रति किसी तरह का भेद-भाव करता है। भेदभाव करने वाला व्यक्ति निश्चित रूप से धिक्कारा जाने व कठो

आर्टिकल 370

  'आर्टिकल 370', कल यह मनभावन मूवी देखी। सत्य वाक़ये पर आधारित इस मूवी में कुछ काल्पनिक घटनाओं व दृश्यों का समावेश भी किया गया है। फिल्म की रोचकता बनाये रखने के लिए ऐसा करना ज़रूरी हो जाता है, अन्यथा तो यह एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बन कर रह जाती। मूवी देख कर मन कुछ आन्दोलित हुआ तो गर्व से आल्हादित भी हो उठा। पुलवामा हादसे से उपजा दिल का दर्द फिर सजीव हो उठा, आँखें सजल हो गईं और देश के लिए शहीद हुए जवानों के प्रति नतमस्तक भी हुआ🙏।   देशहित में किये गए कई अच्छे कार्यों के साथ कुछ ग़लतियाँ भी मोदी सरकार ने की होंगी, लेकिन कश्मीर को धारा 370 से मुक्त करने का काम निस्संदेह उन सब पर भारी है।   चिरकाल तक कृतज्ञ रहेगा यह राष्ट्र इस अभियान में अपना जीवन समर्पित करने वाले वीर जवानों का और मोदी जी के यशस्वी नेतृत्व में उठाये गए इस साहसिक कदम के लिए तत्कालीन समस्त प्रशासन का, जिसके कारण स्वार्थ व अदूरदर्शितावश वर्षों पूर्व तत्कालीन नेतृत्व द्वारा देश के मस्तक पर पोता गया यह कलङ्क मिट सका, अन्यथा तो ऐसा होने की मात्र कल्पना ही की जा सकती थी। *********