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सज्जनता का दण्ड (कहानी)




(1)

हिन्द-पाक सीमा पर चौकी नं. CZ 3, संध्या-काल —

सांझ का धुंधलका गहरा रहा था। स. उप निरीक्षक रामपाल सिंह एवं हैड कॉन्स्टेबल अब्दुल हनीफ़ पांच सिपाहियों के साथ इस महत्वपूर्ण चौकी पर तैनात थे। इस क्षेत्र में सीमा पर तार की बाड़बंदी नहीं थी। तीन सिपाहियों को इमर्जेन्सी के कारण एक अन्य चौकी पर भेजा गया था। इस समय चौकी पर रामपाल व हनीफ़ के अलावा केवल दो सिपाही थे। एक सिपाही खाना बना रहा था तथा हनीफ़ एक सिपाही के साथ चौकी के बाहर चारपाई पर बैठा था। आज शाम की गश्त रामपाल के जिम्मे थी, अतः वह गश्त पर बाहर निकला था। दिन के समय पाक सैनिकों के इधर आने की सम्भावना कम थी, जबकि रात होते-होते उनके द्वारा घुसपैठ किये जाने की सम्भावना बढ़ जाती थी। यह इलाका घने वृक्षों व झाड़ियों से आच्छादित था, जिन के पार देख पाना दिन में भी कठिन हुआ करता था, जबकि इस समय तो कुछ भी दिखाई देना असंभव के समान था। रामपाल अपने साथियों व अफसरों की निगाहों में निहायत ही विश्वसनीय व होशियार मुलाजिम था। सभी लोग उसकी बहादुरी के साथ ही उसकी श्रवण-शक्ति व तीव्र दृष्टि का लोहा मानते थे। 


वीरानी के सन्नाटे को चीरती हुई झींगुरों की आवाज़ वातावरण में दहशत पैदा कर रही थी, किन्तु इस सब से अभ्यस्त रामपाल चौकन्नी निगाहों से दायें, बायें देखता हुआ आगे बढ़ रहा था। सहसा वह कदम रोक कर अपनी जगह रुक गया। उसे दूर वृक्षों के झुरमुट के मध्य से आती  हल्की-सी कुछ आहट सुनाई दी। सधे कदमों से वह आहट की दिशा में कुछ आगे बढ़ा। रौशनी मद्धम हो चुकी थी, किन्तु उसकी गिद्ध-दृष्टि ने एक साये को लगभग पचास मीटर की दूरी पर रेंग कर चौकी की तरफ बढ़ते पाया। वृक्षों की आड़ ले कर वह तेज़ी से, लेकिन सतर्कतापूर्वक साये की दिशा से हट कर कुछ आगे तक गया। कुछ ही मिनट में वह साये के दस फीट पीछे  पहुँच चुका था। उसने देखा, वह एक पाकिस्तानी सैनिक था। उसकी पीठ पर एक झोला बंधा था तथा एक हाथ के कंधे पर राइफल टिका कर रेंगता हुआ वह सावधानी से आगे की तरफ बढ़ रहा था। पलक झपकते ही रामपाल उसके ठीक पीछे इस तरह पहुँच गया कि उसे तनिक भी आभास नहीं हो सका। रामपाल ने राइफ़ल तान कर उसे ललकारा- “खबरदार! अगर जरा सी भी हरकत की तो भेजा उड़ा दूँगा।”

 

पाक सैनिक ने फुर्ती से पीछे घूमने की कोशिश की, लेकिन रामपाल ने फौरन उसके सिर पर राइफल का कुन्दा  टिका दिया और डपट कर बोला- “स्साले, हिलना मत! लगता है, मरने की ठान कर आया है।” पाक सैनिक स्थिर हो कर नीचे पड़ा रहा। रामपाल ने उसकी राइफल व झोले को अपने कब्जे में किया और बोला- “अब खड़ा हो कर सीधा हमारी चौकी की तरफ चल, जहाँ के लिए तू आया है।”


सैनिक खड़ा हो कर उसके निर्देश की पालना में आगे-आगे चलने लगा। तभी रामपाल ने देखा, चौकी की तरफ से हनीफ़ उनकी ओर आ रहा था। हनीफ़ थोड़ा और पास आया, तो उसे देख कर पाक सैनिक की बॉंछें खिल गईं, बोला- “वल्लाह हनीफ़, तुम? देखो न, यह आदमी मुझे पकड़ लाया है। मुझे तो गुमान ही नहीं था कि तुम भी इसी चौकी पर हो।”

“लेकिन अहमद, तुम सीमा से इस तरफ आये क्यों थे?”

अहमद इधर-उधर बगलें झाँकने लगा। रामपाल अब तक आश्चर्य से दोनों को देख रहा था। वह समझ गया कि दोनों एक-दूसरे को अच्छी तरह से जानते हैं। 

“मैंने तुमसे कुछ पूछा है अहमद?” -हनीफ़ की आवाज़ में इस बार सख्ती थी। 

“राह भटक गया था। पता लगने पर वापस लौट रहा था कि इसने पकड़ लिया।“

अब अब्दुल हनीफ़ ने रामपाल की तरफ देखा और बोला- “इसे चौकी पर ले चलते हैं, वहीं पूछताछ करेंगे।”

“लेकिन तुम इसे कैसे जानते हो हनीफ़?” -रामपाल ने पूछा। 

“यह मेरा बहनोई है।” -हनीफ़ ने जवाब दिया। रामपाल आश्चर्य और दुविधा में हनीफ़ की ओर देखने लगा। 


“इनकी तलाशी तो ले लें एक बार।” -रामपाल ने सुझाया। इसके साथ ही उसने अहमद की तलाशी लेना शुरू किया। अपने कब्जे में लिए गये उसके झोले में दो हथगोले, कुछ कारतूस और थोड़ी बहुत पाकिस्तानी मुद्रा थी। इनके अतिरिक्त एक  राइफल के अलावा और कुछ नहीं था उसके पास। 

“तो चौकी को उड़ाने का इरादा था तुम्हारा?” -हनीफ़ गुर्राया। 

“अल्लाह गवाह है हनीफ़, मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था। यह हथगोले तो इमर्जेन्सी के लिए रखने पड़ते हैं हमको।”

“इस बाबत कैफ़ियत तुम हमारे बड़े अफसर के सामने पेश करना। वह कल सुबह चौकी पर आएँगे। तब तक तुम हमारी निगरानी में रहोगे। 

“मैं तुम्हारा बहनोई हूँ हनीफ़ भाई! इस बार बख़्श दो मुझे, फिर कभी इधर का रुख नहीं करूँगा, तोबा करता हूँ।”

“हनीफ़, छोड़ देते हैं इस बार। आखिर यह तुम्हारा बहनोई है। आगे से वह ऐसी कोई हरकत नहीं करेगा।” -भावुक रामपाल को अपनी बहन की याद हो आई। 

“रामपाल जी, यह मेरा बहनोई है तो क्या हुआ, है तो हमारे दुश्मन का सिपाही।”

“तुम्हें तुम्हारी बहन का वास्ता, हमारे बच्चों का वास्ता हनीफ़ भाई! इस बार मुआफ़ कर दो। मेरा यकीं करो। अल्लाह कसम, कभी इधर नहीं आऊँगा। समझाओ न साहब इनको।” -अहमद रामपाल की तरफ देख कर गिड़गिड़ाया। 

रामपाल ने पहले अहमद की ओर देखा और फिर हनीफ़ की ओर। उसके मन ने कहा, ‘दुश्मनी दोनों देशों के बीच है। इस पार के हनीफ़ और उस पार के अहमद में कोई दुश्मनी नहीं। हनीफ़ अपना काम कर रहा है और अहमद अपना। ग़लत दोनों में से कोई नहीं है। अगर अहमद को अभी नहीं छोड़ा तो वह वापस सीमा पार नहीं जा सकेगा, शायद कभी नहीं। उसकी बीवी है, बच्चे हैं। दो देशों की दुश्मनी की सज़ा उन मासूमों को मिलेगी। यह भी हमारे जैसा ही इन्सान है, वही हाड़- मांस से बना इन्सान।’ उसने हनीफ़ से कहा- “यार हनीफ़, जाने देते हैं इसको। आखिर को यह तुम्हारा बहनोई है, तुम्हारा अज़ीज़!... हो सकता है, यह सच ही कह रहा हो...और फिर यह माफ़ी मांग रहा है, फिर कभी इधर नहीं आने की कसम भी खा रहा है।”

हनीफ़ ने आश्चर्य से रामपाल को देखा, बोला- “आप जज़्बाती हो रहे हो रामपाल जी! रिश्तेदार ही सही, किन्तु है तो पाकिस्तानी!… आपने नहीं देखा, यह किस मकसद से आया था?”

“लेकिन एक बार तो यकीन कर ही सकते हैं। मानो मेरी बात। इस बार छोड़ देते हैं इसे।” -अहमद की आँखों में याचना का भाव देख कर रामपाल का मन पसीज रहा था। 

“जैसी मर्जी आपकी।” -थक-हार कर हनीफ़ बोला। 

थैला व राइफल अपने कब्जे में रख कर अहमद को छोड़ दिया गया। अहमद ‘जान बची और लाखों पाए’, यह मनाता तेज़ कदमों से सीमा की तरफ बढ़ता हुआ कुछ ही समय में दोनों की आँखों से ओझल हो गया। 

अहमद के जाने के बाद हनीफ़ ने लम्बी साँस ले कर कहा- “हमारी वर्दी भावनाओं से बहुत ऊपर होती है रामपाल जी! आपने मेरे रिश्ते को महत्त्व दिया, इसका शुक्रिया, लेकिन वह लोग रहम के काबिल नहीं हैं।”

“अरे यार, अब मिट्टी भी डालो इस बात पर! हाँ,अब कभी वह इधर फटका, तो यकीन मानो, मेरी राइफल उसे नहीं बख़्शेगी।” -रामपाल ने जवाब दिया। 


दो दिन बाद -

चौकी पर अभी भी रामपाल व हनीफ़ के साथ दो सिपाही ही ड्यूटी पर थे, क्योंकि दूसरी चौकी पर भेजे गये सिपाही अभी तक वहाँ से रिलीव हो कर नहीं आये थे। निरीक्षक आने वाला था, लेकिन वह भी अभी तक नहीं आया था। रामपाल आज भी चौकी के आस-पास के स्थानों की गश्त पर था। एक सिपाही शिव दयाल भी आज उसके साथ था। शाम को खाना खा कर कुछ सुस्ताने के बाद वह दोनों गश्त पर निकले थे। एक सिपाही बीमार था, इसलिए हनीफ़ उसके पास रुक गया था। इधर-उधर घूमते वह दोनों चौकी से दूर पाक सीमा के करीब आ गये। रात होने लगी थी। अभी वह खुली जगह पर थे और लौटने का इरादा कर ही रहे थे कि सन्नाटे को चीर कर आती एक सरसराहट की आवाज़ सुन कर रामपाल चौकन्ना हो गया। उसने शिव दयाल का हाथ पकड़ कर इशारे से एक जगह थम जाने को कहा व आवाज़ की दिशा में देखने लगा। तभी सनसनाती हुई एक गोली राम पाल के सिर के पास से निकल गई। वह तेजी से नीचे की ओर झुक गया व नीचे झुकने के साथ ही उसने शिव दयाल का हाथ पकड़ कर उसे भी नीचे झुका लिया। दोनों सुरक्षित स्थान देखने के लिए झुके-झुके ही कुछ पीछे की तरफ भागे। दुश्मन की तरफ से आ रही गोलियों में से एक गोली ने शिवदयाल को अपनी चपेट में ले लिया और वह जमीन पर लुढ़क गया। रामपाल ने देखा, सीमा के उस पार से कुछ सैनिक झाड़ियों की ओट ले कर गोलियाँ चला रहे थे। फुर्ती से पेट के बल लेट कर रामपाल ने अपनी राइफल से दुश्मन की दिशा में निशाना साधा व एक, दो, तीन… अनवरत रूप से गोलीबारी शुरू कर दी। उधर से तीन चीखों की आवाज़ आई। स्पष्ट था कि उनके तीन आदमी ढेर हो चुके थे। ऐसा नहीं था कि उधर से गोलियाँ आनी बंद हो गई थीं, रामपाल की गोलियों की बौछार से वह लोग बौखला गये थे और उनका निशाना चूक रहा था। अचानक एक गोली आ कर रामपाल के बायें हाथ में धँस गई, वह कराह उठा। अब उसका वह हाथ बेकार हो गया था, फिर भी उसने राइफल पर बायां हाथ रही-सही शक्ति से जमा कर गोली दागी। उस गोली ने दुश्मन का एक और सैनिक मार गिराया। रक्त बहने से रामपाल शिथिल होने लगा था। उसकी तरफ से कोई गतिविधि नहीं देख कर पाक सैनिक सावधानी से आगे बढ़े। उधर गोलियों की आवाज़ सुन कर चौकी से चल पड़ा हनीफ़ गोलीबारी की दिशा में तेजी से चलते हुए, छिपते-छिपाते जब इधर आया तो उसने देखा, आठ-दस कदम की दूरी पर रामपाल जमीन पड़ा हुआ था और कुछ पाक सैनिक उसकी तरफ आ रहे थे, जो रामपाल से लगभग पच्चीस-तीस मीटर की दूरी पर थे। हनीफ़ ने एक पेड़ की ओट ले कर राइफल तान कर निशाना साधा व गोलियाँ दागने लगा। दो और पाक सैनिक जमीन पर गिर पड़े। बचे हुए सैनिकों ने झाड़ियों के पीछे छिप कर गोलियाँ बरसाना शुरू कर दिया। दोनों तरफ से गोलियाँ आवाज़ के आधार पर चलाई जा रही थीं, क्योंकि दूरी के कारण अब वहाँ दृश्यता नहीं के बराबर रह गई थी। रामपाल ने उसकी मदद के लिए उठने की कोशिश की, तो हनीफ़ चिल्लाया- “ख़बरदार रामपाल जी, उठना मत। इन सालों को दोज़ख में भेजने के लिए मैं अकेला ही काफी हूँ।”


(2)


एक और पाक सैनिक को हनीफ़ ने धराशाई कर दिया। पाक सैनिकों की ओर से चलाई गई कुछ गोलियाँ हनीफ़ के पास से हो कर निकल गईं, लेकिन एक गोली हनीफ़ के सीने में आ लगी और वह लहरा कर नीचे गिर पड़ा। रामपाल भी अब तक बेहोश हो गया था। 

हनीफ़ ने सुना, एक पाक सैनिक अपने साथियों से कह रहा था - “अबे सालों, अब गोलियाँ मत चलाना। बोलने वाला वह आदमी मेरा साला हनीफ़ है। शायद वह अकेला है और घायल हो कर गिर पड़ा है।” 

पाक सैनिकों ने गोली चलाना बंद कर दिया। वह तेज़ी से हनीफ़ की तरफ बढ़ने लगे। वह लोग पास आये, तो हनीफ़ ने देखा, वह तीन आदमी थे। उसमें अब नहीं के बराबर शक्ति बची थी। 

“हनीफ़, इस रामपाल को तुमने ही कहा था न कि मैं दुश्मन देश का सिपाही हूँ। लेकिन देखो, मैंने अपने साथियों को तुम पर और गोली चलाने से रोक दिया है। एक तो तुम मेरे साले हो और फिर तुम्हारी बहन ने मुझसे तुम्हारी जान बख़्शने का वादा भी लिया है, लेकिन इस काफिर को हम नहीं छोड़ेंगे।” -अहमद ने कहा। 

“नहीं, ऐसा मत करना अहमद! इन्होंने ही तुम्हारी जान बख़्शी थी और मेरे ऐतराज़ करने के बावज़ूद तुम्हें यहाँ से जाने दिया था। इनके उस अहसान को भूल गये तुम?”

“अरे काहे का अहसान? इस अहमक ने ग़लती की थी, लेकिन मैं इसके जैसा बेवकूफ़ नहीं हूँ। पकड़ कर लाया भी तो यही था मुझे, मैं भूला नहीं हूँ।”

“नहीं अहमद, अल्लाह की खातिर ऐसा मत करना। इसके रहम को याद करो।”

“चिंता मत करो हनीफ़, यह बेहोश पड़ा है, इसे ज़रा-सी भी तकलीफ़ नहीं होगी। जिस माफ़िक तुम्हारे जिस्म से खून बह रहा है, मुझे लगता है, थोड़ी देर में तुम भी अल्लाह को प्यारे हो जाओगे। मुझे अफ़सोस रहेगा कि तुम्हारी बहन से किया वादा मैं पूरा नहीं कर सका।” -कहते हुए अहमद ने अपनी राइफल रामपाल की तरफ घुमाई। 

वह गोली चलाता, इसके पहले ही राइफल उसके हाथ से छूट गई। सर्च लाइट की रौशनी के साथ ‘धाँय’ की आवाज़ के साथ एक गोली उसके हाथ में आ घुसी थी। वह और उसके दोनों साथी कुछ समझते, इसके पहले ही गोलियों की बौछार ने उन तीनों को ज़मींदोज़ कर दिया। 

आश्चर्यचकित हनीफ़ ने बड़ी मुश्किल से अपना चेहरा उस तरफ घुमा कर देखा, हाथ में स्टेन गन लिये निरीक्षक जागीर सिंह, हैड कॉन्स्टेबल शमशेर बहादुर व पांच सिपाहियों के साथ खड़े थे। वह जागीर सिंह व शमशेर बहादुर को पहचानता था। सिपाहियों में से भी तीन वह थे, जो यहाँ से दूसरी चौकी पर भेजे गये थे। शरीर से काफ़ी खून बह जाने से हनीफ़ का शरीर निश्चल हो चला था। गहन दौर्बल्य के बावज़ूद अपने सिर को हल्की जुम्बिश दे कर हनीफ़ ने अपनी आँखों से प्रतीकात्मक सेल्यूट किया। जागीर सिंह ने हाथ उठा कर उसका अभिवादन स्वीकार किया, साथ ही उसे अधिक हिलने से मना किया। वह लोग हनीफ़ के पास आये। जागीर सिंह ने हनीफ़ को बताया कि वह इंस्पेक्शन के लिए इधर की चौकियों पर आये थे। हनीफ़ की हालत देख कर जागीर सिंह ने उसे कुछ भी बोलने से मना किया, लेकिन इसके बावज़ूद दो दिन पहले हुई घटना से ले कर आज की घटना तक का संक्षिप्त विवरण कमज़ोर व लड़खड़ाती आवाज़ में उसने कह सुनाया। अहमद को उस दिन छोड़ दिये जाने की ग़लती का अपराध उसने अपने सिर ले लिया और रामपाल की तारीफ करते हुए बोला- “सर, र..रामपाल जी निहायत ही नेक और ब…बहादुर आदमी हैं। जितना वह…वह वतनपरस्त हैं, उतने ही रहम दिल भी हैं। वह हमारी फोर्स का बेशकीमती नगीना हैं सर! मैं तो अब ब..बच नहीं सकूँगा, लेकिन आप से गुज़ारिश है कि इन्हें ज..जल्दी से यहाँ से ले जा कर इनका म… माकूम इलाज क …करवा….।”

“तुम्हें कुछ भी नहीं होगा हनीफ़!” -जागीर सिंह ने कहा, लेकिन हनीफ़ सुन नहीं सका, क्योंकि अब वह बेहोश हो चुका था। जागीर सिंह ने अपने साथ आये सिपाहियों को आदेश दिया कि दोनों बेहोश अधिकारियों को सावधानी से चौकी पर ले चलें।


 चौकी पर ला कर सिपाहियों ने दोनों को चारपाइयों पर लिटाया। अन्य चारपाई पर लेटा बीमार सिपाही उठ कर खड़ा हुआ व जागीर सिंह को सेल्यूट किया। एक सिपाही ने घायल अधिकारियों का हाथ पकड़ कर नाड़ी देखी। हनीफ़ की नाड़ी देखने के बाद उसने घबरा कर जागीर सिंह की तरह देखा- “सर, इनकी नाड़ी!”

जागीर सिंह ने भी हनीफ़ का हाथ थाम कर नाड़ी देखी और निराशा से सिर हिला दिया। सभी ने उसके मृत शरीर को एक साथ सलामी दी। हनीफ़ के मृत शरीर को जमीन पर लिटा दिया गया। 

ग़मगीनी की हालत में जागीर सिंह ने अपनी निगरानी में रामपाल की बाँह में धँसी गोली प्रशिक्षण प्राप्त एक सिपाही से निकलवाई व उसका प्राथमिक उपचार करवाया। जागीर सिंह ने चारपाई पर बैठे बीमार सिपाही से भी कुशल-क्षेम पूछी। अपने उच्चाधिकारी से बात कर के जागीर सिंह ने अपने साथ आये हैड कॉन्स्टेबल शमशेर सिंह व तीन सिपाहियों को चौकी पर ड्यूटी देने का आदेश दे कर कहा- “तुम लोग सावधानी से यहाँ ड्यूटी करना। बीमार सिपाही का बराबर ख़याल रखना व इसकी सेहत के बाबत हमें सूचित करते रहना। यह जगह बहुत सेंसिटिव है, इसलिए मैं कुछ और सिपाहियों को कल ही इधर भिजवाता हूँ। उनके आ जाने के बाद पाक सैनिकों की लाशों को उनकी सीमा में रखवा देना।”

रामपाल की बेहोशी अब तक छँट चुकी थी। उसने हनीफ़ को जमीन पर पड़े देखा, तो चौंक पड़ा। वस्तुस्थिति जानने पर उसने अपनी जगह खड़े हो कर हनीफ़ की बॉडी को सेल्यूट किया। भरे गले से “मुझे माफ़ करना मेरे भाई!” कहते हुए उसकी आँखें बरबस ही बहने लगीं। जागीर सिंह ने उसे सांत्वना दे कर अपनी जीप में बैठने के लिए कहा और हनीफ़ की बॉडी को भी जीप में रखने का आदेश दिया। उनके साथ आ रहे सिपाहियों ने मदद कर के रामपाल को जीप में बैठाया व हनीफ़ की बॉडी को भी एक सीट पर लिटा दिया। 


एक माह बाद -

स. उप निरीक्षक रामपाल अब लगभग पूर्णरूपेण स्वस्थ हो गया था। सीमा सुरक्षा बल की आचार संहिता (code of conduct) के तहत उसके विरुद्ध केस दर्ज किया गया था। केस की सुनवाई की तारीख के दिन उसे महानिरीक्षक एवं दो अन्य अधिकारियों की बेंच के समक्ष पेश किया गया। उसके विरुद्ध लगे आरोप को उसके समक्ष पढ़ा गया-

 “स. उप निरीक्षक रामपाल व हैड कॉन्स्टेबल हनीफ़ चौकी नं. CZ 3 पर सिपाहियों के साथ तैनात थे। पहली घटना वाले दिन रामपाल गश्त पर गये थे। उन्होंने एक पाकिस्तानी सैनिक को सीमा में प्रवेश कर चौकी की तरफ आते देख कर पकड़ा। हैड कॉन्स्टेबल हनीफ़ भी तब तक उनके पास पहुँच गये थे। उस सैनिक के पास राइफल के अलावा एक हथगोला भी था। यदि वह शख्स चौकी के पास तक आ जाता तो चौकी को तबाह कर सकता था। संयोग से वह हमारे हैड कॉन्स्टेबल अब्दुल हनीफ़ का बहनोई था। मरने से पहले हनीफ़ ने अपने बयान में जाहिर किया कि रिश्तेदार होने के कारण उसे छोड़ देने की गुज़ारिश उसने रामपाल से की थी। उसे छोड़ दिया गया और  महज़ दो दिन बाद ही वह अपने साथी सैनिकों के साथ वापस आया। उन लोगों ने हमारी सीमा पर गश्त कर रहे रामपाल व एक कॉन्सटेबल शिवदयाल पर गोलियाँ चलाईं। रामपाल जख्मी हो गया व शिवदयाल शहीद हो गया। रामपाल की गोलियों से भी चार दुश्मन सैनिक मारे गये। इसके बाद मौके पर पहुँचे हनीफ़ पर भी उन सैनिकों ने गोलियाँ चलाईं। हनीफ़ ने तीन पाक सैनिकों का सफ़ाया कर दिया। इस मुठभेड़ में दुश्मन के कुल सात सैनिक मारे गये, लेकिन शिवदयाल और हनीफ़ शहीद हो गये। 

यह सच है कि हनीफ़ ने अपना रिश्तेदार होने के कारण पाक सैनिक अहमद को छोड़ देने की इच्छा जताई थी, किन्तु यह भी सच है कि सहमति देने का गुनाह स. उप निरीक्षक रामपाल ने किया। दो दिन बाद ही दुबारा वापस आये पाकिस्तानी अहमद व उसके साथी सैनिकों का रामपाल व हनीफ़ ने बहादुरी से मुकाबला किया और दोनों ने उनके सात सैनिकों को मार कर उन्हें बहुत नुकसान पहुँचाया।… लेकिन अगर अहमद को छोड़ देने की  ग़लती न की गई होती, तो शायद पाकिस्तानी सैनिक दुबारा इतना जल्दी आने की हिमाकत नहीं करते और हमारे दो आदमी मारे नहीं जाते। इस सब के मद्देनज़र रामपाल पर चौकी व वहाँ तैनात सुरक्षा कर्मियों की सुरक्षा में कोताही बरतने का इल्जाम है। स. उप निरीक्षक रामपाल अपनी सफाई में अगर कुछ कहना चाहता है, तो उसे इसकी इजाज़त दी जाती है।”


उद्घोषक ने जैसे ही अपनी बात का समापन किया, रामपाल ने अपने स्थान से उठ कर अधिकारियों का अभिवादन किया व बोलना शुरू किया- “महोदय, यह सच है कि पाक सैनिक अहमद को स्व. अब्दुल हनीफ़ का बहनोई होने के कारण छोड़ दिया गया था। यह भी सच है कि अहमद अपने साथियों के साथ दुबारा आया और तब उन लोगों के साथ हुई मुठभेड़ में मेरे साथी हनीफ़ और शिवदयाल शहीद हो गये।…लेकिन महोदय, यह बात बिल्कुल ग़लत है कि स्व. हनीफ़ ने अहमद को छोड़ने की गुज़ारिश की थी। मैंने ही हनीफ़ की बहन व उसके बच्चों का ख़याल कर के, कुछ जज़्बाती हो कर अहमद को छोड़ देने के लिए कहा था, जिसका हनीफ़ ने विरोध भी किया था। निश्चित ही मुझे तोहमत से बचाने के लिए ही हनीफ़ ने सारा इल्ज़ाम अपने सिर ले लिया था। मैं उसकी पवित्र आत्मा को इस नेकनीयती के लिए सेल्यूट करता हूँ। महोदय, हम अहमद को उस दिन नहीं छोड़ते, तब भी पाक सैनिक चौकी पर हमला करने को आ ही सकते थे।… लेकिन श्रीमान ग़लती तो मुझसे हुई है। मैं अपना अपराध स्वीकार करता हूँ।” अपनी बात पूरी कर रामपाल ने अपना सिर झुका लिया। 

हॉल में बैठे अधिकांश अधिकारी व कर्मचारी रामपाल की साफगोई व ईमानदारी देख कर आश्चर्यचकित थे तथा उसे कुसूरवार मानते हुए भी फुसफुसा कर उसकी तारीफ कर रहे थे। 


बेंच के अन्य अधिकारियों के साथ दस मिनट के मनन के बाद महानिरीक्षक ने घोषणा की-  “रामपाल BSF का एक बहादुर व काबिल मुलाज़िम है, इसमें कोई शुबहा नहीं है। लकिन उसने गुनाह किया है, इसमें भी कोई शक नहीं है। सेना और सीमा सुरक्षा बल के अधिकारी, सैनिक या कर्मचारी जज़्बाती हो जाएँ, तो अपने काम को सही अंजाम नहीं दे सकते। 'No imotions on duty’. रामपाल ने इल्ज़ाम खुद पर ले कर अपना गुनाह कबूल कर के ईमानदारी का सबूत भी दिया है, लेकिन गुनाह तो गुनाह है और उसकी सज़ा भी मिलनी ही चाहिए। रामपाल की सज़ा तजवीज़ करने के लिए हम एक कमेटी बना रहे हैं, जो एक सप्ताह में अपना फैसला देगी। तब तक के लिए रामपाल को हैड क्वार्टर में ड्यूटी देनी होगी।”


एक सप्ताह बाद रामपाल को कमेटी के द्वारा दिए गए फैसले की सूचना मिली। तदनुसार, पूर्व में उसके द्वारा की गई ईमानदार व कर्तव्यनिष्ठ सेवा को ध्यान में रखते हुए, उसकी नौकरी बहाल रखी जा कर एक वर्ष के लिए उसे पदावनत कर हैड कॉन्स्टेबल के पद पर कार्य करने की सज़ा दी गई थी। रामपाल को सज़ा मिलने का कोई शिकवा नहीं था, अलबत्ता उसे इस बात की ख़ुशी थी कि सज़ा के रूप में आगे के लिए मिली नसीहत के साथ ही विभाग में दी गई सेवाओं के लिए उसे सराहना भी मिली है। 


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Comments

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (12-10-2022) को  "ब्लॉग मंजूषा"  (चर्चा अंक-4579)  पर भी होगी।
    --
    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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    1. धन्यवाद आ. शास्त्री जी... आभार!

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  2. सैनिकों की ड्यूटी बहुत ज़िम्मेदारी की होती है । शानदार कहानी ।

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    1. सही कहा संगीता जी! सीमा सुरक्षा बल के कार्य कई मायनों में सेना से पृथक हुआ करते हैं, तथापि ज़िम्मेदारी कम महत्त्वपूर्ण नहीं हुआ करती। कहानी की सराहना के लिए आपका बहुत आभार!

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  3. प्रेरक कहानी

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  4. हृदयस्पर्शी कहानी सही कहा मैंने भी बहुत किस्से सुने है ऐसे। भावनाएं जब पसर जाती हैं हृदय पर...। सराहनीय सृजन 👌
    सादर प्रणाम सर

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    1. प्रणाम अनीता जी!... सारगर्भित टिप्पणी के लिए आभार आदरणीया!

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  5. आपकी लिखी रचना सोमवार 17 अक्टूबर 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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    1. आपका सन्देश आज देख पाया हूँ महोदया संगीता जी! अत्यधिक विलम्ब के लिए क्षमा चाहता हूँ।

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  6. सैनिकों की कर्तव्य निष्ठा भावनाओं से ऊपर होती है इसी भाव को पोषित करती नायाब कहानी ।

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    1. बहुत आभार महोदया!टिप्पणी देरी से देख पाया हूँ, तदर्थ क्षमा चाहता हूँ

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  7. पहले वतन फिर रिश्ते
    सादर

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  8. देश भक्ति और कर्तव्यबोध एक सैनिक की महान और अतुल्य पूंजी होती है, ये कहानी कई महत्वपूर्ण संदेश देने में कामयाब रही जिनमें सौहार्द और त्याग का सुंदर सामंजस्य है ।
    आभार आपका बहुत सार्थक विषय चयन के लिए।

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    1. अंतस्तल से आभार आ.जिज्ञासा जी!

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  9. बेहद शानदार कहानी।
    एक सैनिक के त्याग और बलिदान को
    किसी भी देश और उसकी प्रजा के लिए महत्वपूर्ण है।
    बेहतरीन लेखन सर।
    सादर।

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    1. आभार प्रकट करता हूँ स्नेहा जी!

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  10. देशभक्ति और कर्तव्य का बोध कराती बहुत ही सुन्दर कहानी आदरणीय सर 🙏

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    1. सराहना के लिए आभारी हूँ आ. कामिनी जी! टिप्पणी देरी से देख पाया हूँ, तदर्थ क्षमा चाहता हूँ

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  11. प्रेरक कहानी !देश की सुरक्षा हर भावना से ज्यादा महत्वपूर्ण है, रामपाल की संवेदना और हनीफ की कर्तव्य निष्ठा और त्याग सभी अपनी जगह सही होते हुए भी देश हित के लिए सही नहीं थी।
    संवेदना और कर्तव्य दोनों का अहसास करवाती कहानी।

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    1. सुन्दर, सारगर्भित टिप्पणी के लिए आभारी हूँ आ. कुसुम जी!

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  12. सही कहा सज्जनता का दण्ड ही मिला दोनों को...हनीफ ने तो जीवन ही खो दिया... ऐसे कर्तव्यों के सामने भावुकता सज्जनता नजरअंदाज ही करनी थी दोनों को..एक सिपाही ड्यूटी के समय सिर्फ सिपाही होता है किसी भी रिश्ते और भावनाओं से बाहर ।
    कहानी में हिन्दू मुस्लिम किरदारों में भाईचारा एवं सद्भाव के साथ देश के प्रति प्रेम और देशसेवा में समानता के भाव बहुत सुंदर संदेश प्रद है।

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    1. 'हिन्दू-मुस्लिम किरदारों में भाईचारा एवं सद्भाव' वाले मेरे मन्तव्य को भी आपने देखा, इसके लिए साधुवाद आ. सुधा जी! सनातन धर्म तो सदैव से ही इस भाईचारे का पक्षधर रहता आया है। उसके इस सद्भाव को अन्य धर्मावलम्बी भी समझें व तदनुसार आचरण का निर्वाह करें, ऐसी ही अपेक्षा है और यही देशहित में है।

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  13. हृदयस्पर्शी कहानी बेहतरीन लेखन

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  14. दीपावली की शुभकामनाएं। सुन्दर प्रस्तुति व अनुपम रचना।

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    1. आपको भी दीपावली की बधाई एवं शुभकामनाएँ प्रिय शांतनु जी! कहानी की सराहना के लिए आपका आभार प्रकट करता हूँ।

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