"एक तो रास्ता इतना ख़राब, ऊपर से अंधेरे में बाइक की हैडलाइट के सहारे चलना... तौबा-तौबा! यार अनिरुद्ध! अब और कितना दूर है तुम्हारा माधोपुर?" -बाइक पर पीछे बैठे डॉ. आलोक सिन्हा ने हल्की झुंझलाहट के साथ अपने मित्र से पूछा। "बस, एक किलोमीटर दूर है अब तो। पहुँचने को ही हैं हम लोग।" -सड़क पर नज़र गड़ाए डॉ. अनिरुद्ध ने जवाब दिया। माधोपुर पहुँचे दोनों मित्र, तो रात के साढ़े आठ बज रहे थे। अपने चाचा पण्डित गोरख नाथ की तबीयत ख़र...