ग़ज़ल
धोखा खुद को अब, दिया नहीं जाता।
बढ़ गया है तुझसे फ़ासला इतना,
कि मुझसे अब तय, किया नहीं जाता। ज़माने के पहरे हैं, सांसों पे मेरी,
कदम कोई अब, लिया नहीं जाता।
बन चुका है छलनी, दिल ये मेरा,
ज़ख्म अब मुझसे, सीया नहीं जाता।
समन्दर तो मिलते हैं हर कदम पे,
पर पानी उनका, पीया नहीं जाता।
हर कूचे, हर ग़ुंचे में, नूर है तेरा,
हर कूचे, हर ग़ुंचे में, नूर है तेरा,
किसी और पे अब, हिया नहीं जाता।
जीना तो मैंने चाहा था लेकिन,
क्या करूँ तुझ बिन,जीया नहीं जाता।
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अनुराग रंग रंगी सुंदर , भावपूर्ण गजल आदरणीय सर | हार्दिक शुभकामनाएं|
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत शुक्रिया रेणु महोदया!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद बंधुवर!
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