समर्पित है मेरी यह कविता, CRPF के उन वीर जवानों को, जो फरवरी, 2019 में पुलवामा (कश्मीर) में पाकिस्तानी आतंककारियों के द्वारा प्रशिक्षित एक स्थानीय गद्दार के आत्मघाती हमले की चपेट में आकर काल-कवलित हो गये; जो चले गए यह कसक लेकर कि काश, जाने से पहले कुछ पापियों को ऊपर पहुँचा पाते! 'मेरे आँगन में धूप नहीं आती...' मेरे आँगन के छोटे-बड़े पौधे जिन्हें लगाया है पल्लवित किया है मेरे परिवार ने, बड़े जतन से, जो दे रहे हैं मुझे जीवन चिन्ताविहीन हूँ कि वह जी रहे हैं मेरे लिए। वह जी रहे हैं मेरे लिए, पर उन्हें भी तो चाहिए मेरा प्यार, दुलार और संरक्षण। मैं नहीं दे रहा जो उन्हें चाहिए, मुझे तो बस उन्हीं से चाहिए, अपेक्षा है तो उन ही से। अपनी पंगुता पर, अपनी विवशता पर, झुंझलाता हूँ जब, तो दोषी ठहराता हूँ दूर गगन के बादलों को। हाँ, दोषी हैं वह भी, ढँक लेते हैं सूरज को और नहीं मिल पाती धूप, मेरे आँगन...