समर्पित है मेरी यह कविता, CRPF के उन वीर जवानों को जो पुलवामा (कश्मीर) में कुछ गद्दारों व आतंककारियों के कुचक्र की चपेट में आकर काल-कवलित हो गये , जो चले गए यह कसक लेकर कि काश, जाने से पहले दस गुना पापियों को ऊपर पहुँचा पाते ! 'मेरे आँगन में धूप नहीं आती...' मेरे आँगन के छोटे-बड़े पौधे जिन्हें लगाया है पल्लवित किया है मेरे परिवार ने, बड़े जतन से, जो दे रहे हैं मुझे जीवन। चिन्ताविहीन हूँ कि वह जी रहे हैं मेरे लिए। वह जी रहे हैं मेरे लिए, पर उन्हें भी तो चाहिए मेरा प्यार, दुलार और संरक्षण। मैं नहीं दे रहा जो उन्हें चाहिए मुझे तो बस उन्हीं से चाहिए, अपेक्षा है तो उन्हीं से। अपनी पंगुता पर, अपनी विवशता पर झुंझलाता हूँ जब, तो दोषी ठहराता ...