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संदेश

'अदावत' (कहानी)

     किसी खड़खड़ के चलते अहमद की नींद अचानक खुल गई। आँखें मलते हुए उसने उठ कर देखा, कमरे में बेभान सो रही उसकी बेगम रशीदा के अलावा और कोई नहीं था। घड़ी में देखा, रात के दो बज रहे थे। धीमे क़दमों से वह खिड़की की ओर बढ़ा और बाहर निगाह डाली तो चौंक पड़ा, पड़ोसी कासिम की खिड़की अधखुली थी। उसे ताज्जुब हुआ, 'कासिम का परिवार ईद मनाने के लिए दो दिन के लिए आज ही अपने गाँव गया है और वह लोग अपनी सभी खिड़कियाँ बंद कर के गये थे, फिर इनकी खिड़की खुली कैसे पड़ी है?' ध्यान से सुनने की कोशिश की तो आहिस्ता-आहिस्ता बोलने की आवाज़ भी उसे सुनाई दी। कुछ ही देर में कासिम के कमरे में दो पल के लिए एक रोशनी झपकी। 'शायद मोबाइल की टॉर्च की रोशनी थी',अहमद ने अंदाज़ लगाया। वह समझ गया, कासिम के घर में चोर घुस आये हैं। चाँदनी रात थी और कासिम के घर के पीछे से आ रही बादलों में छिपे चाँद की रोशनी दोनों मकानों के बीच के गलियारे को हल्का-सा रोशन कर रही थी, लेकिन कासिम के कमरे में रोशनी नहीं के बराबर थी।     वह यूँ ही खिड़की के पास खड़ा देख रहा था कि उसे एक इन्सानी साया कासिम की खिड़की के भीतर नज़र आया। अहमद को केवल उसकी आकृ

जय माँ शारदे! (स्तुति)

     'बसन्त पञ्चमी' के पुनीत पर्व पर मैं अपने शब्द-पुष्पों से सृजित "सरस्वती वन्दना" अपने प्रिय मित्रों व अन्य सुधि पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ :-                                                                                                                          *****

'KBC - एक हास्यान्वेषण'

                                                                 KBC के एपिसोड्स का गहन अध्ययन करने के बाद निष्कर्ष:-  1) जया बच्चन इन दिनों बहुत खुश नज़र आ रही हैं। सम्भवतः इसलिए कि KBC में इस बार कोरोना-काल के चलते महानायक अमिताभ बच्चन व महिला प्रतिभागी परस्पर गले नहीं लग पा रहे हैं 😜 ।                                                                        *********  2) KBC में हॉट सीट पर आने वाले कई प्रतिभागी या तो उच्च आदर्शों वाले व त्याग और सद्भावना की प्रतिमूर्ति हुआ करते हैं जो अपने द्वारा जीती गई राशि का अधिकांश भाग परोपकार में लगाने का निश्चय किये होते हैं या फिर अपनी आर्थिक समस्याओं से इतना ग्रसित होते हैं 😜  कि न केवल अमिताभ जी की सहानुभूति का लाभ पाते हैं, अपितु कुछ भोले दर्शक भी चाहने लगते हैं कि वह वहाँ से अच्छी राशि ले कर जाएँ।                                                                         ********* 3) इस सीजन में अभी तक में केवल महिलाएँ करोड़पति बनी हैं। सम्भवतः पुरुष-वर्ग बॉर्नविटा खा कर नहीं आता 😜 ।                                                           

'कुत्ते की पूँछ' (हास्य-व्यंग्य)

                                                                    जानकारी मिली कि कोरोना का प्रकोप थोड़ा मंदा हुआ है, तो अपने मित्र, विमलेश से मिलने की प्रबल इच्छा हो आने से पहुँच गया एक दिन उनके घर।    मेरे सद्भावी मित्र परेशान न हों, मैंने बाकायदा मास्क लगा रखा था और हर राह चलते शख़्स से छः-सात फ़ीट की दूरी बनाये रखते हुए सर्पाकार गति से चलते हुए विमलेश के घर तक की एक किलोमीटर की दूरी तय की थी।    विमलेश के वहाँ पहुँचा तो उनके घर का दरवाज़ा संयोग से खुला मिला। भीतर जा कर देखा, वह महाशय अपने सिर को एक हाथ पर टिकाये कुर्सी पर उदास बैठे थे। मुझे देख कर सामने रखी एक अन्य कुर्सी पर बैठने का इशारा करते हुए फीकी हँसी के साथ बोले- “आओ भाई, अच्छे आये तुम!” “क्या हुआ विमलेश जी, भाभी से झगड़ा हो गया या वह मायके गई हुई हैं?” -मैंने मुस्कराते हुए पूछा।  “नहीं यार, ऐसा कुछ भी नहीं है। वह तो अपने रूम में बैठी स्वैटर बुन रही हैं।” “तो फिर यूँ मुँह लटकाये क्यों बैठे हो? अगर दूध नहीं है घर में तो चिन्ता न करो, मैं चाय पी कर आया हूँ।”  “अरे नहीं भाई, बात कुछ और ही है। मेरा कुत्ता कहीं चला गया है।” “ओह,

छुटंकी लाल (कहानी)

     शहर का बहुत पुराना मोहल्ला था वह। निम्नवर्ग, मध्यम वर्ग तथा उच्च मध्यम वर्ग, के, शिक्षित, अल्पशिक्षित, सभी प्रकार के परिवार इस मोहल्ले में रहते थे। सभी लोग अपने-अपने ढंग से अपना जीवन जी रहे थे। मोहल्ले के एक हिस्से में कुछ खाली जमीन पड़ी थी, जिस पर मोहल्ले के कुछ समर्थ लोगों ने कुछ तो अपने अंशदान से तो कुछ प्रशासन की मदद से एक छोटा-सा पार्क बनवाया था। पार्क में चार पत्थर की बेंच भी बनवाई गई थीं, जिन पर यदा कदा शाम के समय मोहल्ले के कुछ लोग आकर बैठते, बतियाते थे। पार्क की मुलायम दूब पर कुछ बच्चे उछलते-कूदते और खेला करते थे। उन्हीं बच्चों में से एक बारह वर्षीय छुटंकी लाल भी था।    छुटंकी लाल को बचपन में उसके माता-पिता 'छुटकू' कह कर पुकारते थे। जब वह आठ वर्ष का हुआ तो उसके छोटे भाई ने जन्म लिया। नये नन्हे मेहमान को घर में सब 'ननकू' कहने लगे। अब क्योंकि घर में एक छोटा सदस्य और आ गया था तो छुटकू ने अपना नाम 'छुटंकी लाल' मनोनीत कर मोहल्ले में घोषित भी कर दिया। शायद उसकी इस घोषणा को ही उसके माता-पिता ने उसका नामकरण संस्कार मान लिया था। कुछ लोग उसकी ख़ुशी देख कर उसे

डायरी के पन्नों से ..."प्रियतमे, तब अचानक..." (कविता)

     विरहाकुल हृदय प्रकृति के अंक में अपने प्रेम को तलाशता है, उसी से प्रश्न करता है और उसी से उत्तर पाता है।     मन के उद्गारों को अभिव्यक्ति दी है मेरी इस कविता की पंक्तियों ने।    कविता की प्रस्तुति से पहले इसकी रचना के समय-खण्ड को भी उल्लेखित करना चाहूँगा।    मेरे अध्ययन-काल में स्कूली शिक्षा के बाद का एक वर्ष महाराजा कॉलेज, जयपुर में अध्ययन करते हुए बीता। इस खूबसूरत वर्ष में मैं प्रथम वर्ष, विज्ञान का विद्यार्थी था। इसी वर्ष मैं कॉलेज में 'हिंदी साहित्य समाज' का सचिव मनोनीत किया गया था। यह प्रथम अवसर था जब मेरे व अध्यक्ष के सम्मिलित प्रयास से हमारे कॉलेज में अंतरमहाविद्यालयीय कविता-प्रतियोगिता का आयोजन किया जा सका था। मेरा यह पूरा वर्ष साहित्यिक गतिविधियों के प्रति समर्पित रहा था और यह भी कि मेरी कुछ रचनाओं ने इसी काल में जन्म लिया था। साहित्य-आराधना के साइड एफेक्ट के रूप में मेरा परीक्षा परिणाम 'अनुत्तीर्ण' घोषित हुआ।      मुझे पूर्णतः आभास हो गया था कि अध्ययन सम्बन्धी मेरा भविष्य मुझे यहाँ नहीं मिलने वाला है अतः मैंने  जयपुर छोड़कर रीजनल कॉलेज ऑफ़ एजुकेशन, अजमेर मे

आत्मबोध (कहानी)

                                                                           घर से बाहर आ कर आयुषी सड़क पर पहुँची और एक ऑटो रिक्शा को आवाज़ दी। ऑटो के पास में आने पर वह आदर्श नगर चलने को कह उसमें बैठ गई। आदर्श नगर यहाँ से करीब अठारह कि.मी. दूर था। ऑटो चलने लगा। ऑटो में लगी सी.डी. से गाना आ रहा था- 'जाने वाले, हो सके तो लौट के आना...'   "उफ़्फ़, चेंज करो यह गाना।" -वह झुंझलाई व धीरे-से बुदबुदाई, 'नहीं आना मुझे लौट के।'   "इतना तो अच्छा गाना है मैडम!" -ऑटो वाले ने बिना मुँह फेरे आश्चर्य से कहा।    "देखो, चेंज नहीं कर सकते तो बन्द कर दो इसे, मुझे नहीं सुनना यह गाना।"   ऑटो वाले ने गाना बदल दिया। नया गाना आने लगा- 'आजा, तुझको पुकारे मेरा प्यार..।'     गाना सुन कर आयुषी का मन खिल उठा। 'हाँ, आ रही हूँ तुम्हारे पास', मन ही मन मुस्करा दी वह।     गाना चल रहा था और वह खो गई उसके जीवन के उस  घटनाक्रम के चक्र में, जिसने उसके जीवन में हलचल मचा दी थी।    निखिल आलोक का दोस्त था। आलोक के ऑफिस में जॉब लगने कारण लगभग चार माह पहले ही वह इस शहर मे