प्रस्तावना :- मैं तब स.वा.क. अधिकारी के पद पर कार्यरत था। एक बार मैं अपने वॉर्ड के एक विभागीय केस, जिसमें एक व्यापारी ने उस पर लगाई गई पेनल्टी के सम्बन्ध में रेवेन्यू बोर्ड में अपील की थी, के मामले में अपने विभाग का पक्ष प्रस्तुत करने हेतु अजमेर गया था। मैं अपने साथ एक ब्रीफ़केस ले गया था, जिसमें विभाग की केस-पत्रावली तथा मेरे दो जोड़ी कपड़े रखे थे। रेवेन्यू बोर्ड में काम हो जाने के बाद घर लौटने के लिए बस स्टैंड पर पहुँचा व एक खाली सीट पर ब्रीफ़केस रख कर पड़ोस में बैठे व्यक्ति को ब्रीफ़केस का ध्यान रखने को कह कर टिकिट लेने गया। कुछ पांच-सात मिनट में ही सीट पर पहुँचा तो देखा कि वह सज्जन (दुर्जन) मेरे ब्रीफ़केस सहित गायब थे। बस से बाहर निकल कर आसपास देखा, लेकिन वह अब कहाँ मिलने वाला था। यदि मैं उस समय सामान्य मनःस्थिति में होता तो स्वयं पर हँसता कि बस के आस-पास मुझे वह चोर क्या यह कहने के लिए मिल जायगा कि साहब मैं आपका ब्रीफ़केस आपको सम्हलाने के लिए ही यहाँ खड़ा हूँ। मैं बदहवास हो उठा था। मेरे दिमाग़ में विचार आया कि मामला सरकारी फाइल खो जाने का था और मुझ पर आरोप लग सकता था कि मैंने व...