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Showing posts from 2020

छुटंकी लाल (कहानी)

     शहर का बहुत पुराना मोहल्ला था वह। निम्नवर्ग, मध्यम वर्ग तथा उच्च मध्यम वर्ग, के, शिक्षित, अल्पशिक्षित, सभी प्रकार के परिवार इस मोहल्ले में रहते थे। सभी लोग अपने-अपने ढंग से अपना जीवन जी रहे थे। मोहल्ले के एक हिस्से में कुछ खाली जमीन पड़ी थी, जिस पर मोहल्ले के कुछ समर्थ लोगों ने कुछ तो अपने अंशदान से तो कुछ प्रशासन की मदद से एक छोटा-सा पार्क बनवाया था। पार्क में चार पत्थर की बेंच भी बनवाई गई थीं, जिन पर यदा कदा शाम के समय मोहल्ले के कुछ लोग आकर बैठते, बतियाते थे। पार्क की मुलायम दूब पर कुछ बच्चे उछलते-कूदते और खेला करते थे। उन्हीं बच्चों में से एक बारह वर्षीय छुटंकी लाल भी था।    छुटंकी लाल को बचपन में उसके माता-पिता 'छुटकू' कह कर पुकारते थे। जब वह आठ वर्ष का हुआ तो उसके छोटे भाई ने जन्म लिया। नये नन्हे मेहमान को घर में सब 'ननकू' कहने लगे। अब क्योंकि घर में एक छोटा सदस्य और आ गया था तो छुटकू ने अपना नाम 'छुटंकी लाल' मनोनीत कर मोहल्ले में घोषित भी कर दिया। शायद उसकी इस घोषणा को ही ...

डायरी के पन्नों से ..."प्रियतमे, तब अचानक..." (कविता)

                  विरहाकुल हृदय प्रकृति के अंक में अपने प्रेम को तलाशता है, उसी से प्रश्न करता है  और उसी से उत्तर पाता है।  मन के उद्गारों को अभिव्यक्ति दी है मेरी इस कविता की  पंक्तियों ने।  कविता की प्रस्तुति से पहले इसकी रचना के समय-खण्ड को भी उल्लेखित करना चाहूँगा।  मेरे अध्ययन-काल में स्कूली शिक्षा के बाद का एक वर्ष महाराजा कॉलेज, जयपुर में अध्ययन करते हुए बीता। इस खूबसूरत वर्ष में मैं टी. डी. एस. प्रथम वर्ष (विज्ञान) का विद्यार्थी था। इसी वर्ष मैं कॉलेज में 'हिंदी साहित्य समाज' का सचिव मनोनीत किया गया था। मेरा यह पूरा वर्ष साहित्यिक गतिविधियों के प्रति समर्पित रहा था और यह भी कि मेरी कुछ रचनाओं ने इसी काल में जन्म लिया था। साहित्य-आराधना के साइड एफेक्ट के रूप में मेरा परीक्षा परिणाम 'अनुत्तीर्ण' घोषित हुआ। मुझे पूर्णतः आभास हो गया था कि अध्ययन सम्बन्धी मेरा भविष्य मुझे यहाँ नहीं मिलने वाला है, अतः मैंने  जयपुर छोड़कर रीजनल कॉलेज ऑफ़ एजुकेशन, अजमेर में प्रवेश लिया। वहाँ की आगे की कहानी अभी न कह कर, इसका ...

आत्मबोध (कहानी)

                                                                           घर से बाहर आ कर आयुषी सड़क पर पहुँची और एक ऑटो रिक्शा को आवाज़ दी। ऑटो के पास में आने पर वह आदर्श नगर चलने को कह उसमें बैठ गई। आदर्श नगर यहाँ से करीब अठारह कि.मी. दूर था। ऑटो चलने लगा। ऑटो में लगी सी.डी. से गाना आ रहा था- 'जाने वाले, हो सके तो लौट के आना...'   "उफ़्फ़, चेंज करो यह गाना।" -वह झुंझलाई व धीरे-से बुदबुदाई, 'नहीं आना मुझे लौट के।'   "इतना तो अच्छा गाना है मैडम!" -ऑटो वाले ने बिना मुँह फेरे आश्चर्य से कहा।    "देखो, चेंज नहीं कर सकते तो बन्द कर दो इसे, मुझे नहीं सुनना यह गाना।"   ऑटो वाले ने गाना बदल दिया। नया गाना आने लगा- 'आजा, तुझको पुकारे मेरा प्यार..।'     गाना सुन कर आयुषी का मन खिल उठा। 'हाँ, आ रही हूँ तुम्हारे पास', मन ही मन मुस्करा दी व...

विकल्प (लघुकथा)

                                                                    अस्पताल के वॉर्ड में एक बैड पर लेटे वृद्ध राधे मोहन जी अपने पुत्र का इन्तज़ार कर रहे थे।  बारह पेशेंट्स के इस वॉर्ड में अभी केवल चार पेशेंट्स थे, जिनमें से एक की आज छुट्टी होने वाली थी। उन्हें संतोष था कि वॉर्ड में शांत वातावरण था और स्टाफ भी चाक-चौबंद किस्म का था। नर्स दो बार आ कर गई थी और कह रही थी कि अगर आधे घंटे में इंजेक्शन नहीं आया तो उनकी जान को खतरा हो सकता है। 'पता नहीं कब आएगा मानव? अब तक तो उसे आ जाना चाहिए था', वह चिन्तित हो रहे थे। उसी समय नर्स वापस आई और राधे मोहन जी को एक इंजेक्शन लगा कर बोली- "इंजेक्शन आने में देर रही है तो डॉक्टर ने अभी यह लाइफ सेवर इंजेक्शन लगाने के लिए बोला है। अब वह आप वाला इंजेक्शन एक घंटे के बाद लगेगा।      पाँच-सात मिनट में मानव आ गया। उसने डॉक्टर के...