फेसबुक में एक परम्परा है, ‘तू मेरी पोस्ट लाइक करे तो मैं तेरी पोस्ट लाइक करूँ’...और इसी परम्परा का निर्वाह अधिकांश लोग करते हैं। यदि आपने कई लोगों की पोस्ट लाइक की हैं, तो आपकी कचरा-पोस्ट को भी तीन अंकों में लाइक्स और प्यारे-प्यारे कमैंट्स मिल जाएँगे और यदि आप व्यस्ततावश या किसी अन्य कारण से लोगों की पोस्ट लाइक करने से चूक गए तो आपकी दमदार पोस्ट को भी लाइक्स का सूखा झेलना पड़ेगा। जी हाँ, मेरी साफ़गोई के लिए मुझे मुआफ़ करें, लेकिन हक़ीकत यही है। तो जनाब, यही वह वज़ह है कि पान की दूकान पर खड़े-खड़े अफलातूनी तुकबन्दी करने वाले सूरमा जब ‘कवि’ कहलाने के शौक से दो-तीन बेतुकी पंक्तियाँ फेसबुक पर चिपका देते हैं तो ‘वाह-वाह’, ‘क्या बात है’, ‘क्या लिखा है’, ‘बहुत खूब’, जैसे जुमलों की बख्शीश फेसबुकिये दोस्तों की तरफ से मिल जाती है। जब ऐसे हालात नज़र आते हैं और क़ाबिलेबर्दाश्त नहीं रहते तो देखने-पढ़ने वालों को झुंझलाहट तो होगी ही (जो क़ायदे से नहीं होनी चाहिए, पर हो जाती है), लेकिन अच्छे हाज़मे वाले लोग इसे पचा जाते हैं। मेरे जैसे इंसान से जब नहीं रहा गया तो मैं