सेठ गणपत दयाल के घर के दरवाजे के पास दीनू जाटव जैसे ही पहुँचा, उसने मकान के भीतर से आ रही रोने की आवाज़ सुनी। ठिठक कर वह वहीं रुक गया। कुछ रुपयों की मदद की उम्मीद लेकर वह यहाँ आया था। उसकी जानकारी में था कि सेठ जी आज घर पर अकेले हैं, क्योंकि सेठानी जी अपने बेटी को लेने उसके ससुराल गई हुई थीं। वह लौटने लगा यह सोच कर कि शायद सेठानी जी बेटी-नातिन को ले कर वापस आ गई होंगी, बाद में आना ही ठीक रहेगा। पाँच-सात कदम ही चला होगा कि दबी-दबी सी एक चीख उसे सुनाई दी। सड़क के दूसरी तरफ बैठा एक कुत्ता भी उसी समय रोने लगा था। किसी अनहोनी की आशंका से वह घबरा गया और वापस गणपत दयाल के घर की तरफ लौटा। 'किसकी चीख हो सकती है यह? सेठ जी की नातिन अगर आई हुई है तो भी वह चीखी क्यों होगी? क्या करूँ मैं?', पशोपेश में पड़ा दीनू दरवाजे के पास आकर रुक गया। तभी भीतर से फिर एक चीख के साथ किसी के रोने की आवाज़ आई। अब वह रुक नहीं सका। उसने निश्चय किया कि पता तो करना ही चाहिए, आखिर माज़रा क्या है! हल्का सा प्रहार करते ही दरवाजा खुल गया। दरवाजा भीतर से बन्द किया हुआ नहीं था। भीतर आया तो बायीं ओर के कमरे से आ रही किसी के...