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छुटंकी लाल (कहानी)

     शहर का बहुत पुराना मोहल्ला था वह। निम्नवर्ग, मध्यम वर्ग तथा उच्च मध्यम वर्ग, के, शिक्षित, अल्पशिक्षित, सभी प्रकार के परिवार इस मोहल्ले में रहते थे। सभी लोग अपने-अपने ढंग से अपना जीवन जी रहे थे। मोहल्ले के एक हिस्से में कुछ खाली जमीन पड़ी थी, जिस पर मोहल्ले के कुछ समर्थ लोगों ने कुछ तो अपने अंशदान से तो कुछ प्रशासन की मदद से एक छोटा-सा पार्क बनवाया था। पार्क में चार पत्थर की बेंच भी बनवाई गई थीं, जिन पर यदा कदा शाम के समय मोहल्ले के कुछ लोग आकर बैठते, बतियाते थे। पार्क की मुलायम दूब पर कुछ बच्चे उछलते-कूदते और खेला करते थे। उन्हीं बच्चों में से एक बारह वर्षीय छुटंकी लाल भी था।    छुटंकी लाल को बचपन में उसके माता-पिता 'छुटकू' कह कर पुकारते थे। जब वह आठ वर्ष का हुआ तो उसके छोटे भाई ने जन्म लिया। नये नन्हे मेहमान को घर में सब 'ननकू' कहने लगे। अब क्योंकि घर में एक छोटा सदस्य और आ गया था तो छुटकू ने अपना नाम 'छुटंकी लाल' मनोनीत कर मोहल्ले में घोषित भी कर दिया। शायद उसकी इस घोषणा को ही ...