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Showing posts from June, 2018

किसको जगाना चाह रहे हो...

     किसको जगाना चाह रहे हो भाई सिकन्दर! क्या चलती फिरती लाशों को? नहीं सुनेगा कोई तुम्हारी आवाज़ को, क्योंकि खुदगर्जी ने सब की आंखों पर पर्दा डाल रखा है और उन्हें वही दिखाई देता है जो वह देखना चाहते हैं। बात-बहादुर यह लोग सोशल मीडिया पर मानवता की दुहाई देने और बड़ी-बड़ी डींगें हांकने तक सीमित हैं। अपने आसपास हो रहे अत्याचार, लूट या हत्या-बलात्कार से इनकी सम्वेदना जागृत नहीं होती, जागृत हो भी तो कैसे क्योंकि वह तो मर चुकी है। यह लोग हर दुर्घटना या अनहोनी होने पर पुलिस और सरकार का मुँह देखेंगे और उनकी ही जिम्मेदारी मान कर अपनी आंखें फेर लेंगे, जब कि जिनकी जिम्मेदारी वह मान रहे हैं वह भी हद दर्जे तक गैरजिम्मेदार हैं, कुछ अपवाद छोड़कर।      अंधेरा ही अंधेरा है मेरे दोस्त, दूर-दूर तक रौशनी की एक झलक भी दिखाई नहीं देती। बस हम भारत की प्राचीन गौरव-गाथा और हमारी संस्कृति का गुणगान कर कर के खुश होते रहें...

स्वच्छता अभियान (लघुकथा)

        मेरा शहर स्मार्ट सिटी बनने जा रहा था और इस कड़ी में अभियान को चलते एक वर्ष से कहीं अधिक समय निकल चुका था।        शहर के एक प्रतिष्ठित दैनिक समाचार पत्र की टीम ने स्वच्छता अभियान के तहत नए वित्त वर्ष में सर्वप्रथम स्थानीय कलक्टर कार्यालय के सम्पूर्ण परिसर की जाँच-पड़ताल की तो समस्त परिसर में गन्दगी का वह आलम देखा कि टीम के सदस्य भौंचक्के रह गये। कहीं सीढियों के नीचे कबाड़ का कचरा पड़ा था, तो कहीं कमरों के बाहर गलियारों की छतें-दीवारें मकड़ियों के जालों से अटी पड़ी थीं। एक तरफ एक कोने में खुले में टूटे-फूटे फर्नीचर का लम्बे समय से पड़े कबाड़ का डेरा था तो सीढियों से लगती दीवारों पर जगह-जगह गुटखे-पान की पीक की चित्रकारी थी। साफ़ लग रहा था कि महीनों से कहीं कोई साफ-सफाई नहीं की गई है।      समाचार पत्र ने अगले ही दिन अपने मुखपृष्ठ पर बड़े-बड़े अक्षरों में उपरोक्त हालात उजागर कर शहर की समस्त व्यवस्थाओं को सुचारू रखने के लिए ज़िम्मेदार महकमे की प्रतिष्ठा की धज्जियाँ उड़ा दी।      कहने की आवश्यकता नहीं कि मुखपृष्ठ पर नज़र प...