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Showing posts from September, 2015

आरक्षण पर पुनर्विचार......???

  राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ-प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण पर पुनर्विचार के बयान से कुछ अवसरवादी नेता ठीक इस तरह कुलबुला उठे हैं  जैसी कुलबुलाहट गन्दी नाली में इकठ्ठा कीड़ों  पर फिनॉइल छिड़कने पर देखी जाती है। भारतीय राजनीति के द्वारा कोने में धकेल दिए गये लालू और मायावती जैसे नेताओं को तो मानो पुनर्स्थापित होने के लिए फुफकारने का अवसर मिल गया है। मोहन भागवत के बयान पर कुछ भी उलटी-सीधी प्रतिक्रिया व्यक्त करने से पहले भारतीय समाज के हर वर्ग के हर बुद्धिजीवी (नेता नहीं) को सोचना-समझना होगा कि वर्तमान आरक्षण नीति क्या आरक्षण की मूल भावना के आदर्शों के अनुकूल है और क्या इसके वांछित परिणाम हम प्राप्त कर सके हैं ?    स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद आरक्षण-व्यवस्था केवल दस वर्षों के लिए लागू की जानी थी, लेकिन अनुकूल परिणाम नहीं मिलने पर इसे अगले दस वर्षों के लिए और बढ़ाया गया था। यहाँ तक तो फिर भी सही था, लेकिन बाद में इसे सत्ता के सिंहासन पर चढ़ने की सीढ़ी ही बना दिया गया। जब आरक्षण के इस स्वरुप की निरर्थक...